इन दिनों मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) में दायर एक याचिका की खूब चर्चा हो रही है। यह याचिका है इनकम टैक्स (Income Tax) को लेकर। दरअसल, एक व्यक्ति ने याचिका डाल कर पूछा है कि जब आर्थिक रूप से कमजोर (Economic Weaker Section) सवर्णों को आरक्षण देने का आधार आठ लाख रुपये से कम की आमदनी रखी गई है तो फिर ढाई लाख रुपये से ज्यादा कमाने वालों पर इनकम टैक्स क्यों लगता है।
इनकम टैक्स एक्जंप्शन की लिमिट क्या है?
जब तक भारत में मनमोहन सिंह की सरकार थी, तब इनकम टैक्स में बेसिक एक्जंप्शन लिमिट (Minimum basic tax exemption limit) दो लाख रुपये हुआ करता था। यह व्यवस्था वर्ष 2013-14 तक बनी रही। उसी साल की शुरूआत में लोक सभा चुनाव हुए और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। उनके प्रधानमंत्री बनते ही मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री (Finance Minister) की जिम्मेदारी अरुण जेटली (Arun Jaitely) को मिली थी। उन्होंने अपना पहला बजट जुलाई 2014 में पेश किया था। इसमें उन्होंने इनकम टैक्स के लिए बेसिक एक्जंक्शन लिमिट Income Tax exemption limit) दो लाख रुपये से बढ़ा कर 2.5 लाख रुपये कर दिया था। इसके बाद इस लिमिट में कोई बदलाव नहीं किया गया।
हर साल बजट से पहले होती है मांग
हर साल जब बजट (Budget) पेश करने का मौसम आता है, तो आम नागरिक से लेकर उद्योग संगठन तक इनकम टैक्स में बेसिक एक्जंप्शन लिमिट बढ़ाने की मांग करते हैं। लेकिन अभी तक करदाताओं को राहत नहीं मिली है। इस बीच अर्थव्यवस्था का आकार काफी बढ़ चुका है। लोगों की औसत आमदनी मतलब परकैपिटा इनकम (Per capita Income) भी बढ़ी है।
मद्रास हाई कोर्ट में आई याचिका
तमिलनाडु के किसान और डीएमके (Dravida Munnetra Kazhagham) पार्टी के सदस्य कुन्नूर सीनीवासन (Kunnur Seenivasan) ने मद्रास हाई कोर्ट के मदुरै बेंच (Madurai bench of the Madras high court) में एक याचिका डाली है। इसमें कहा गया है कि जब आठ लाख रुपए से कम (7,99,999) आय वाले लोग ईडब्ल्यूएस (Economic Weaker Section) में हैं तो ढाई लाख रुपए से ज्यादा आय वाले लोगों को इनकम टैक्स क्यों देना चाहिए। इस मद्रास हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति आर महादेवन और न्यायमूर्ति सत्य नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने बीते सोमवार को केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय, वित्त तथा कुछ और मंत्रालय को नोटिस देने का आदेश दिया और सुनवाई को 4 सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया।
क्या कहना है कुन्नूर सीनीवासन का
कुन्नूर सीनीवासन का कहना है कि फाइनेंस एक्ट 2022 के फस्ट शेड्यूल में संशोधन किया जाए। यह प्रावधान कहता है कि कोई भी व्यक्ति जिसकी कमाई साल में 2.5 लाख रुपये से कम है, उसे इनकम टैक्स की सीमा से बाहर रखा जाएगा। याचिका दायर करने वाले ने हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को आधार बनाया है जिसमें सवर्णों में EWS श्रेणी के लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था को सही ठहराया है।
रद्द हो संंबंधित प्रावधान
सीनिवासन का कहना है कि एक बार सरकार ने सकल आय यानी Gross Income का स्लैब आठ लाख रुपये तय कर दिया है तो फिर फाइनेंस एक्ट 2022 के संबंधित प्रावधानों को निरस्त घोषित कर दिया जाना चाहिए। इन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह साबित हो गया है कि आठ लाख से कम सालाना आय वाले गरीब हैं। ऐसे लोगों से इनकम टैक्स वसूलना ठीक नहीं हैं। ये ऐसे लोग हैं जो पहले से ही शिक्षा और अन्य क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं। उनका कहना है कि वर्तमान आयकर अधिनियम का प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ है।
गरीबों से इनकम टैक्स वसूलना ज्यादती
हमारा मानना है कि आमदनी के आधार पर गरीब घोषित करने के मामले में पूरे देश में एक आधार का पालन हो। यदि आठ लाख रुपये से कम कमाने वाले सवर्ण व्यक्ति गरीब माने जाते हैं तो इतना कमाने वाले समाज के सभी वर्ग के लोगों को भी गरीब माना जाए। जाहिर है कि सरकार द्वारा घोषित गरीबों से इनकम टैक्स वसूला जाना किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं होगा।