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जनसंख्या वृद्धि स्वयं में कोई समस्या नही है

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अजय असुर*

इधर कुछ दिनो पहले जनसंख्या कम करने के नाम पर टू चाइल्ड पॉलिसी यानी जनसंख्या नियंत्रण कानून 2021 की खबर जोरों पर थी और ये बात आज ही नहीं सैकड़ो साल पहले से चली आ रही है कि सारी समस्यायों की जड़ जनसंख्या वृधि है। यानी जनता ही दोषी है। इसीलिए भारत में समय-समय पर ये प्रोपगेंडा चलाते रहते हैं, असल में इसके पीछे की असली मंशा कुछ और ही है! ज्यादातर हिन्दुओं के दिमाग़ में ये बात अफीम के नशे की तरह डाल दी गयी है कि सारी समस्याओ का जड़ ये जनसंख्या है और जनसंख्या ज्यादा होने की वजह से ही बेरोगारी, भुखमरी, गरीबी, सूदखोरी, महंगाई, जमाखोरी आदि कई समस्याएं पैदा होती हैं और भारत की जनसंख्या मुसलमानों की वजह से बढ़ रही है। ऐसे रहा तो अगले कुछ सालों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो जायेंगे और मुसलमान बहुसंख्यक! और तो और भारत को पाकिस्तान बना देंगे इस गति से मुसलमान ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा कर मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ा रहा है। दरसल ये जनता की अपनी सोच नहीं है। शासक वर्ग पूरी तरह से नफरत हमारे दिलों में डाल रहा है, ताकि असल समस्या की तरफ ध्यान ना जाए हमारा और जो नकली समस्या शासक वर्ग ने क्रिएट किया हुवा है वही असल समस्या है मानकर, हम दिलों में नफरत पालकर एक दूसरे को कोसते रहें, कोसना तो आम बात! मौका मिले तो एक-दूसरे को काट डालें! इतनी नफरत हमारे दिलों-दिमाग में भर दिया है और वही नफरत हम अपने बच्चों में डाल दे रहें हैं और नफरती व्यक्ति कभी भी तरक्की नहीं कर सकता है। इस तरह की नीति के पीछे मंशा नफरती ही है पर दिखने पर सीधे तौर पर तो मंशा नफरती नहीं लगता है। शासक वर्ग की मंशा एकदम साफ है कि फूट डालो और राज करो।
आखिर सरकार क्यों नहीं बताती है कि कितने ऐसे नौजवान हैं जिनके दो से अधिक बच्चे हैं और वे सरकारी भर्ती की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं? क्या इनकी तादाद इतनी है कि सरकार को क़ानून लाना पड़ रहा है? दूसरा सवाल कि कुछ ऐसे नौजवान तो होंगे ही जो कई साल से अपनी भर्ती की प्रक्रिया पूरी होने का इंतज़ार कर रहे हैं, इनमें से कितने हैं जिनके दो से अधिक बच्चे हैं? जो लोग पहले से सरकारी सेवा में हैं और जिनके दो से अधिक बच्चे हैं उनका क्या? यह क़ानून बैक डेट से कैसे लागू हो सकता है कि दो से अधिक बच्चे होने पर प्रमोशन नहीं मिलेगा? फिर वही सवाल! क्या सरकार के पास ऐसा कोई डेटा है? जिससे पता चले कि यूपी सरकार में काम करने वाले कितने ऐसे कर्मचारी हैं जिनके दो से अधिक बच्चे हैं?
तो क्या सभी राजनैतिक दल के ऐसे सांसदों और विधायकों के टिकट काट देगी जिनके दो से अधिक बच्चे हैं? दूसरे दल की बात तो छोड़ दें ये कानून भारतीय जनता पार्टी और उनके अलायंस लाने को कह रहें है तो क्या बीजेपी और उनके सहयोगी सांसदों और विधायकों के टिकट काट देगी जिनके दो से अधिक बच्चे हैं? जब भी ऐसे क़ानून की बात होगी तो बड़े नेताओं को इनसे अलग रखा जाता है। गाज गिरेगी तो सिर्फ छुट भैये नेताओं और जनता के ऊपर। अब पंचायत चुनाव छुट भैये नेता ही लड़ेंगे तो पंचायत का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे, अब जब जिसकी औकात पंचायत चुनाव की है वो विधान सभा और लोक सभा का चुनाव क्यों लड़ेंगे? और यदि लड़ेंगे भी तो टिक भी नहीं पाएंगे? क्या सरकारी नौकरियों में इस आधार पर वर्गीकरण किया गया है? आज सरकारी नौकरी का कोई अता-पता नहीं, लेकिन क़ानून लाएंगे कि दो से अधिक बच्चे तो नौकरी नहीं। ऐसे कह रहें हैं जैसे जिनके दो या दो से कम बच्चे हैं उनको तुरंत ही नौकरी दे देंगे! एलेक्ट्रानिक मीडिया, प्रिंट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक हल्ला मचा रहें कि यूपी सरकार एक क़ानून ला रही है और इस प्रस्तावित क़ानून के मुताबिक़ जिनके दो से अधिक बच्चे हैं उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। जो सरकारी नौकरी में हैं और दो से अधिक बच्चे हैं, उन्हें कई सुविधाएं नहीं मिलेंगी। यह पढ़कर मैं उन लाखों नौजवानों के बारे में सोच रहा हूं जिनकी शादी सरकारी नौकरी न मिलने के कारण नहीं हुई है। ऐसे बच्चों को तय समय में भर्ती प्रक्रिया पूरी कर नौकरी देने के मामले में यूपी ने क्या प्रगति की है, वहां के नौजवान भलीभांति जानते होंगे, पर सरकार और उनके भक्त मुस्लिम एंगल निकालकर भविष्य में इस लागू होने वाले कानून को जायज ठहराने में लगे हैं। उत्तर प्रदेश में में सरकारी भर्ती का क्या हाल है? किसी से छिपा नहीं! उत्तर प्रदेश में कुल तकरीबन 5 लाख सरकारी नौकरियां ही बची हुई हैं। यूपी ही नहीं आप इसमें दूसरों राज्यों को भी शामिल करें, चाहें किसी की सरकार को। लेकिन सरकार क़ानून लाती है कि दो से अधिक बच्चे होंगे तो सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। सरकार और उनकी दलाल मीडिया तो ऐसे कह रही है कि जैसे जिनके दो बच्चे हों उनको तुरंत ही नौकरी दे देगी। जो सरकार युवाओं को नौकरी नहीं दे पा रही है वो क़ानून ला रही है कि दो से अधिक बच्चे होंगे तो नौकरी नहीं देंगे। लग रहा है जिनके कोई बच्चे नहीं हैं उनकी नौकरी के लिए यूपी सरकार ने काउंटर खोल रखा है। गजब की बकलोली कर रहा ये शासक वर्ग और उसी में उलझ के रह गए हैं हम सब। असल में जनता को असल मुद्दे पर बात ना कर, ये जो नकली मुद्दा क्रिएट किया हुवा है उसी पर उलझे रहें।
*भाग-2*
15 अगस्त, 2019 के भाषण में माननीय प्रधानमंत्रीजी ने आबादी पर नियंत्रण की बात कही थी। कहा था जिनके परिवार छोटे हैं वो देश की तरक़्क़ी में योगदान करते हैं। तीन साल बाद यूपी को ख़्याल आया है कि आबादी नियंत्रण के लिए क़ानून लाया जाए और वो भी देश के लिए नहीं, प्रदेश के लिए! तो उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण से देश के बाकी अन्य राज्य में जनसंख्या वृधि रुक जायगी? एक्चुअल में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सर पर है, इसीलिए इस जनसंख्या वृधि कानून के जरिए मुसलमान कार्ड खेला जा रहा है। माननीय प्रधानमंत्री मोदी भी लगता है कि 15 अगस्त 2019 का भाषण भूल गए हैं, तभी तो इसी एक जुलाई को वे आबादी का गुणगान कर रहे थे। बता रहे थे कि अधिक आबादी ने भारत को अवसर को दिया है। 2014 के समय भी डेमोग्राफिक डिविडेंड यानी आबादी के लाभांश की बात किया करते थे। अब क्या हुआ….? फेल हो गए तो आबादी को समस्या बताने आ गए….? अब बलि का बकरा कोई ना कोई तो चहिए ही, तो अपनी नाकामी छुपाने के लिए सारा का सारा दोष जनता पर मढ़ दो। 
जनसंख्या यानी आबादी का ताल्लुक गरीबी से है। जैसे-जैसे आर्थिक तरक़्क़ी आती है और शिक्षा बढ़ती है तो आटोमेटिक ही आबादी की रफ़्तार धीमी होती जाती है। भारत में यह धारणा अंग्रेजों के समय से ही बनाई गई है कि मुसलमानों के दो से अधिक बच्चे होते हैं इसके साथ में एक और धारणा भी बना दी गई कि मुसलमान एक से अधिक चार-चार शादियां कर लेते हैं, जिससे अधिक बच्चे पैदा करते हैं। हर जगहं लाजिक काम नहीं करता और इससे उलट हो जाता है। शादी कर ज्यादा बीवी रखने से ज्यादा बच्चे नहीं होते हकीकत में, क्योंकि अमूमन भौतिक परिस्थियाँ नहीं बन पाती ज्यादा बीवी से ज्यादा बच्चे होने के लिए और यदि ऐसा होता तो जंहा भी जिस भी देश में चार बीवी रखने का अधिकार मिला हुवा है वंहा तो जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ गयी होती और अभी तक जनसंख्या विस्फोट भी हो गया होता, पर जनसंख्या विस्फोट तो दूर की बात बहुत तेजी से भी नहीं बढ़ी है। अमूमन देखा गया है कि एक बीवी से ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं, ज्यादा बीवी की अपेक्षा, क्योंकि हमारे सोचने या चाहने से कुछ भी नहीं होता इन सबके लिए भौतिक परिस्थियों का होना अनिवार्य है। बगैर भौतिक परिस्थियों(आन्तरिक और बाह्य भौतिक पारिस्थिति) के बच्चा तो बहुत दूर की बात एक तिनका भी नहीं पैदा हो सकता। किसी भी चीज के उत्पन्न होने के लिए भौतिक पारिस्थिति (आन्तरिक और बाह्य भौतिक पारिस्थिति) का होना अनिवार्य है।
अभी तक सरकार के पास कोई भी ऐसा डेटा भी नहीं है कि कितने मुसलमान ऐसे हैं जिन्होंने चार शादियां किया हुवा है? फिर भी इस धारणा को बढ़ावा दिया गया और हम सब अपने दिमाग में शासक वर्ग द्वारा डाली गयी धारणा को सच मान बैठे। जबकि सच्चाई यह है कि हिन्दू परिवारों में भी दो से अधिक बच्चे हैं और कंही-कंही तो 7-8-10-12 बच्चे हैं, बेटे की चाह में! खासकर उन परिवारों में जो गरीब हैं। कई लोगों के परिवार में अधिक बच्चे मिलेंगे। कई-कई के तो 7-8-12 बच्चे तक मिल जाएंगे और ये सब गरीबी से उपजी भौतिक परिस्थियों के कारण है। 
*शेष आगे भाग 3 में*
*अजय असुर* *राष्ट्रीय जनवादी मोर्चा उ. प्र.*

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