अग्नि आलोक
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सत्ता बंदूक की नली से नही अब बुलडोजर के नीचे से निकल रही है

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रश्मी त्रिपाठी

माओत्से तुंग के समय बंदूक थी आज बुलडोजर हर समस्या का समाधान है।समस्याएं वही हैं समाधान ही युग अनुसार बदलेंगे।
नही बदलेंगी वो अपेक्षायें होंगीं। एक कहावत है कि सुबह का भूला शाम को घर वापस आयेगा ही अर्थात हम कितनी भी मनमर्जियां करें अंत में ठिकाना हमें खुद के घर में ही मिलता है।
सच बताऊं कल का दिन बुलडोजर का दिन रहा रात में भी यही सोचती रही कि जिनके घर उजड़े वे कैसे सो रहे होंगे ? क्या उन्हें नींद आयेगी ? एक घुटन थी जो अभी तक समाई हुई है पर बीच में कहीं सांस आ जा रही है जब कोई पूछ रहा है राहुल क्यों नही गये या राहुल को जरूर जाना था।
जो अपेक्षायें नही बदलेंगी वो ऐसी ही होती हैं कि हम कितनी ही तरक्की कर लें पर मुसीबत में मां बाप या कोई ऐसा जरूर याद आता है जो हमेशा हमसे कहता है “मैं हूं न “
और हम वापस उसके पास लौट आते हैं।
दरअसल इस समय राजनीति हो ही नही रही है, हां जबकि उसमें नैतिकता , त्याग और जिम्मेदारी समाप्त हो चुकी हो तो वो बस स्वार्थ नीति हुई न ! राजनीति का पहला दायित्व ही जिम्मेदारी है।
इस समय तो इसे भाजपा के रणनीतिकारों का कमाल ही कहेंगे कि उन्होंने देश के सभी आवश्यक मुद्दों से लोगों का ध्यान भटका कर बस उसे हिन्दूमुस्लिम बना दिया है । और अपने समर्थकों की एक ऐसी फ़ौज तैयार कर ली है जो कि कुछ भी और सुनने को तैयार ही नहीं है।
और जब जनता पूरी तरह सम्मोहन में है कोई भी और राजनैतिक दल क्या कर सकता है ?
और विपक्ष जिसे कि सरकारी पार्टी ने पूरी तरह अपनी ही पिच पर खेलने के लिए मज़बूर कर दिया है उसे बस यही लग रहा है कि उसे पिच से हटकर खेलने वाले का खामियाजा भुगतना होगा। और राजनैतिक नुकसान सहकर भी अपने लोगों के लिए खड़े होने का साहस राहुल के आलावा और किसमें है ?
चाहे नोटबंदी के परिणाम हों ,जीएसटी के बारे में, मंहगाई के विरुद्ध बोलना हो ,कोरोना से बचने के बारे में या चीन का देश में घुसना हो या कहीं किसी के साथ अन्याय हो रहा हो राहुल ने हर जगह अपनी उपस्थित ही नही दर्ज कराई बल्कि निजी प्रयास भी किये ।पिछले बर्ष इन दिनों में सबको पता है सरकार से ज्यादा कांग्रेसी सक्रिय थे लोगों की जान बचाने में और लॉकडाऊन में पैदल आ रहे श्रमिकों के लिये प्रियंका यूपी बार्डर पर बस लेकर खड़ी रह गईं। आज अगर एक जगह राहुल नही पंहुचे तो लोगों को समझ आया यही राहुल होने का मकसद है। बाकी
ये समझ लीजिए कि ज्यादा जनता के हित के बारे में बोलो तो उल्टा जनता ही आपको सुनाती है ,मजाक बनाती हैं इसलिये तो यही सही रहेगा कि जनता को उसके हाल पर छोड़ देना चाहिए वैसे भी जब जनता ने 300 + सीट दी हैं और विपक्ष के लिये कुछ नहीं रखा तो कुछ सोच समझकर ही नहीं रखा होगा ।

वैसे भी लोकतंत्र में जो जीत रहा है और जैसे भी जीत रहा है सबको वही सही लगता है उसको आप अगर गलत मानोगे तो आप बेवकूफ हो आप कभी जीत नहीं पाओगे।

रश्मी त्रिपाठी

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