विजय प्रसाद
Translated by महेश कुमार
गांधी जयंती के ठीक अगले दिन, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के पांच सौ से अधिक कर्मियों/अधिकारियों ने पूरे भारत में 100 से अधिक पत्रकारों और शोधकर्ताओं को या तो अपने स्पेशल सेल स्टेशन पर या उनके घरों पर हिरासत में ले लिया। उन्हें पूरे दिन पूछताछ के लिए रोके रखा – प्रति व्यक्ति औसतन आठ घंटे का समय लगा – और उनसे पूछा कि क्या उन्होंने 2020-21 के किसान आंदोलन, फरवरी 2020 में पूर्वी दिल्ली में हुई मुस्लिम विरोधी हिंसा और कोविड-19 पर सरकार की प्रतिक्रिया को कवर किया है। ये तीन घटनाएँ हमारे समय की महान प्रक्रियाओं का हिस्सा हैं, और इन्हें कवर न करना किसी पत्रकार और शोधकर्ता के लिए कर्तव्य की उपेक्षा होगी।
सरकार के जाल में आए ये पत्रकार बड़े पैमाने पर न्यूज़क्लिक से हैं, जो 2009 में शुरू हुई एक वेब-आधारित न्यूज़ साइट है; शोधकर्ता ट्राइकॉन्टिनेंटल रिसर्च सर्विसेज से से हैं, जो ट्राइकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च को मैटेरियल प्रदान करते हैं। पूरे दिन उत्पीड़न और धमकी के बाद, जिसमें हिरासत में लिए गए कुछ लोगों के ख़िलाफ़ हिंसा भी शामिल थी, दिल्ली पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया – प्रबीर पुरकायस्थ और अमित चक्रवर्ती, क्रमशः न्यूज़क्लिक के संस्थापक एवं मुख्य संपादक और पोर्टल के एचआर प्रमुख।
प्रबीर और अमित दोनों वर्षों से मेरे दोस्त हैं। मैं पहली बार प्रबीर से लगभग 30 साल पहले तब मिला था, जब मैं दिल्ली में एक युवा पत्रकार और शोधकर्ता था, और वे दिल्ली साइंस फोरम (डीएसएफ) में प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे। साकेत में डीएसएफ कार्यालय (मुझे लगता है कि यह जे ब्लॉक में था) में एक छोटी डेस्क पर बैठे हुए, मेरी मुलाकात डॉ. अमित सेनगुप्ता (जिनकी 2018 में दुखद मृत्यु हो गई थी) और प्रबीर से हुई थी। अमित सेनगुप्ता बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के अग्रणी वकील थे, जिन्होंने ड्रग इंडस्ट्री एंड द इंडियन पीपल, 1986 का संपादन किया था, और प्रबीर एक इंजीनियर हैं जिन्होंने सार्वजनिक ऊर्जा प्रणालियों के निर्माण की लड़ाई का नेतृत्व किया था जो लड़ाई लोगों को लाभ से तरजीह देने की वकालत करती थी। हमने 1986 के व्यापार और टैरिफ के समझौते के दौर के बारे में बात की, जो बौद्धिक संपदा अधिकारों के नियमों को बदलने का एक प्रयास था; जिसके तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधित पहलू, ट्रिप्स, को 1995 में अंतरराष्ट्रीय कानून के रूप में स्थापित किया जाना था। मुझे याद है कि मैं उनकी बुद्धि, लोगों के प्रति उनकी मोहब्बत और उनके हास्य की भावना से चकित था (अमित और प्रबीर दोनों की हंसी बहुत खास है।)
दिल्ली साइंस फोरम में प्रबीर, अमित सेनगुप्ता और उनके जैसे अन्य लोगों ने संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के 1948 चार्टर के पक्ष में एक शोध एजेंडा बनाया, जिसका अनुच्छेद 27 कहता है कि, “हर किसी को स्वतंत्र रूप से समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में, कला का आनंद लेना और वैज्ञानिक उन्नति और उसके लाभों को साझा करना और भाग लेने का अधिकार है।” चार्टर पर 194 देशों, यानी दुनिया के सभी देशों ने हस्ताक्षर किए थे, जो उन्हें इसके जनादेश का पालन करने के लिए बाध्य करता है।
प्रतिबंधात्मक बौद्धिक संपदा कानून यूनेस्को चार्टर के ख़िलाफ़ था, जिसे अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता था। लेकिन प्रबीर जैसे लोगों ने इसे कभी नज़रअंदाज़ नहीं किया, उन्होंने 1988 में पहली अखिल भारतीय पीपुल्स साइंस कांग्रेस के आयोजन में मुख्य भूमिका निभाई, उन्होंने ऑल-इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क की स्थापना की, और बाद में फ्री सॉफ्टवेयर के निर्माण और आंदोलन के नेतृत्व (अध्यक्ष के रूप में) में भूमिका निभाई।
साल 2002 में, प्रबीर और मैंने भारत में तरलीकृत प्राकृतिक गैस संयंत्र बनाने के लिए एनरॉन कॉरपोरेशन के नेतृत्व में हुए घोटाले पर एक किताब प्रकाशित की थी, किताब का शीर्षक था – एनरॉन ब्लोआउट: कॉर्पोरेट कैपिटलिज्म एंड द थेफ्ट ऑफ द ग्लोबल कॉमन्स। कुछ साल बाद, मुंबई वर्ल्ड सोशल फोरम में, जिसे आयोजित करने में प्रबीर ने मदद की थी, हम हज़ारों लोगों के सामने इस तरह के तकनीकी-आधारित घोटाले पर अपने विचार साझा करने में सक्षम हुए।
प्रबीर, जो पेशे से एक इंजीनियर हैं, फिर भी वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लोकतंत्रीकरण के प्रबल समर्थकों में से एक हैं। लेफ्टवर्ड बुक्स की उनकी नई किताब – नॉलेज ऐज़ कॉमन्स: टुवर्ड्स इनक्लूसिव साइंस एंड टेक्नोलॉजी (2023) – यह सुनिश्चित करने की उनकी जीवन भर की लड़ाई पर आधारित है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लाभ सिर्फ कुछ लोगों को न मिलें, बल्कि सबको मिलने चाहिए।
न्यूज़क्लिक
जैसे ही इराक के ख़िलाफ़ हुए अमेरिकी युद्ध ने पश्चिम एशिया को अस्थिर किया था, और जैसे ही ईरान के ख़िलाफ़ हाइब्रिड युद्ध का ख़तरा बढ़ने लगा, हममें से एक समूह (प्रबीर, ऐजाज़ अहमद, डी. रघुनंदन, मैं और अन्य) ने भारत में एक मीडिया आउटलेट बनाने की ज़रूरत पर चर्चा की। एक घर के बेसमेंट में, जिसकी पृष्ठभूमि में ऐजाज़ की किताबें थीं, एक कैमरा प्रबीर द्वारा और दूसरा ऐजाज़ द्वारा खरीदा गया था, के साथ न्यूज़क्लिक का जन्म हुआ। यहां, हम शाम को इकट्ठा होते थे – जब हर कोई अपने वास्तविक रोज़गार से आकर पश्चिम एशिया और विज्ञान के बारे में एक-दूसरे का साक्षात्कार लेते थे। “नमस्कार और न्यूज़क्लिक में आपका स्वागत है। आज हमारे साथ प्रोफेसर ऐजाज़ अहमद हैं,” मैं अपने दिमाग में यह सब आज भी सुन सकता हूं, और आज मैंने इसे फिर से सुना जब मैंने प्रबीर को जेल ले जाते हुए देखा, मेरी आंखों में आंसू आ गए थे।
न्यूज़क्लिक पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका, विशेषकर इराक और ईरान (2006 से परमाणु ऊर्जा पर अमेरिकी दबाव के आसपास) की घटनाओं को गंभीरता से कवर करने वाले भारत के कुछ आउटलेट्स में से एक था। रघु, सत्यजीत रथ, और प्रबीर – कई अन्य लोगों के साथ – हमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी की दुनिया में वर्तमान बहसों, ज़बरदस्त संभावनाओं के बारे में अद्भुत विचारों से परिचित कराया।
इन वर्षों में, न्यूज़क्लिक जन-केंद्रित समाचारों को कवर करने वाली सबसे महत्वपूर्ण आवाज़ों में से एक बन गया है। यह सर्वविदित था कि न्यूज़क्लिक में शामिल मुख्य लोग वामपंथी थे, और यह भी सब जानते थे कि न्यूज़क्लिक के कवरेज में लोगों के आंदोलनों और लोगों के जीवन के विचारों को गंभीरता से लिया जाता था। जैसे ही न्यूज़क्लिक ने भारत को अधिक गंभीरता से कवर करना शुरू किया, वेबसाइट उन कुछ स्थानों में से एक बन गई जिसने श्रमिकों, किसानों, महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और अन्य लोगों के संघर्षों पर ध्यान दिया जो देश को बेहतर बनाने लड़ रहे थे।
पिछले तीन वर्षों में, मुख्यधारा के अखबारों/प्रकाशनों में काम करने वाले भारत भर के पत्रकार, श्रमिकों की हड़तालों और केयरगिवर्स के संघर्षों, किसानों के विरोध और दलितों और आदिवासियों के विरोध के साथ-साथ आम तौर पर मुसलमानों और विशेष रूप से कश्मीरियों पर गंभीर हमले के समाचार न्यूज़क्लिक पर पढ़ने थे। वेबसाइट इस तरह के काम का एक उल्लेखनीय निकाय बन गया, लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिए भारत के अंदर चल रहे विरोध प्रदर्शनों की एक सूची बनाई, जिस लोकतंत्र के बारे में लेखिका अरुंधति रॉय ने हाल ही में कहा था कि इसे “व्यवस्थित रूप से ध्वस्त किया जा रहा है।” जिन पत्रकारों का दिल जनता के साथ धड़कता है, उन्हें जब खामोश कर दिया जाता है तो पता ही नहीं चल पाता कि जनता अपने देश को बेहतर बनाने के लिए संघर्ष कर रही है या नहीं।
फरवरी 2021 में, भारत के प्रवर्तन निदेशालय ने न्यूज़क्लिक से जुड़े आठ स्थानों पर छापे मारे। प्रबीर के घर पर छापेमारी 113 घंटे तक चली। यह एक कठिन प्रक्रिया थी, हुक्मरानों ने न्यूज़क्लिक को मिलने वाले फंड में रुचि रखते हुए आरोप लगाया कि न्यूज़क्लिक, भारत को कमज़ोर करने और विदेशी हितों को पूरा करने के लिए फंड ले रहा है। विचार यह था कि किसानों के विरोध प्रदर्शन और श्रमिकों की हड़ताल पर रिपोर्टिंग करना भारत के ख़िलाफ़ है, जो जताता है कि मानो भारतीय किसान और श्रमिक भारतीय नहीं हैं। इस कठिन परीक्षा के तुरंत बाद एक साक्षात्कार में, प्रबीर से उस फंड के बारे में पूछा गया जिसने न्यूज़क्लिक को बढ़ने में मदद की। प्रबीर का उत्तर शिक्षाप्रद है:
“जो निवेश आया है वह कंपनी की बैलेंस शीट के ज़रिए सार्वजनिक है – और जो भारतीय रिज़र्व बैंक के माध्यम से आया है। अब, हमारी आय का जहां तक सवाल है – आज डिजिटल प्लेटफॉर्म में 26 प्रतिशत तक विदेशी निवेश वैध है। हमारा विदेशी निवेश उससे कहीं कम, लगभग नौ प्रतिशत है। किसी भी मामले में इसमें कुछ भी गैरकानूनी नहीं था क्योंकि तब तक डिजिटल प्लेटफॉर्म में विदेशी निवेश पर कोई रोक नहीं थी। तो, मुझे समझ नहीं आया कि माजरा क्या है? इसे क्यों उठाया जा रहा है, ये भी मुझे समझ नहीं आ रहा है।”
न्यूयॉर्क टाइम्स की भूमिका
न्यूज़क्लिक और प्रबीर के ख़िलाफ़ मामला जारी रहा, जैसा कि ट्राइकॉन्टिनेंटल रिसर्च सर्विसेज़ पर उत्पीड़न जारी रहा। ऐसा लग रहा था कि उत्पीड़न ही सज़ा है। ख़ुफ़िया सेवाओं और पुलिस के निचले स्तर के अधिकारियों का मानना था कि किसी भी अपराध का कोई सबूत नहीं है, लेकिन जांच को ज़िंदा रखने के लिए उन पर दबाव डाला जा रहा था।
फिर न्यूयॉर्क टाइम्स (5 अगस्त, 2023) में नेविल रॉय सिंघम द्वारा वित्त पोषित फाउंडेशनों के बारे में एक भ्रामक लेख सामने आया, जिसने तकनीकी उद्योग से अपना पैसा कमाया था और जिसने अपना पैसा बिना किसी प्रचार या हो-हल्ले के देने का फैसला किया था – जो आम प्रथा के विपरीत कदम था। वास्तव में कोई सिंघम फाउंडेशन नहीं है और न ही कोई सिंघम है। रॉय का विचार लोगों की आवाज़ को कवर करने वाले मीडिया को बढ़ाने और दुनिया भर में वामपंथी संस्थानों का निर्माण करने के लिए अपने पैसे को लोगों को देना था। इसमें से कुछ भी अवैध नहीं है। टाइम्स की कहानी सार्वजनिक सूचना पर आधारित थी लेकिन यह एक प्रमुख पर्दाफ़ाश/स्कूप होने का दिखावा कर रही थी, जो चीनी सरकार द्वारा निर्देशित नेटवर्क के अस्तित्व का पर्दाफाश करने का दावा कर रही थी। लेख गलत/असंगत था, लेकिन इसका प्रभाव पड़ा।
टाइम्स लेख छपने के अगले दिन, भारत के सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जहां उन्होंने न्यूज़क्लिक पर एक और हमला किया। टाइम्स के लेख में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि मोदी सरकार ने न्यूज़क्लिक पर छापा मारा था और उस पर “चीनी सरकार से संबंध रखने आरोप लगाया था लेकिन कोई सबूत नहीं दिया” था। टाइम्स ने 2020 के अपने लेख को इस शीर्षक के साथ जोड़ा, “मोदी के तहत, भारत की प्रेस अब इतनी स्वतंत्र नहीं है।” लेकिन टाइम्स ने खुद को ठाकुर जैसे लोगों के हाथों में हथियार बनने का मौका दे दिया।
भारत में सारा बवाल न्यूज़क्लिक को लेकर भी नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी को लेकर उठा था। क्योंकि, गांधी की लोकप्रियता उनकी भारत जोड़ो यात्रा (2022-2023) के कारण तब बढ़ रही थी, जब वे देश के लिए एक अलग व्यवस्था के लिए बहस करने के लिए भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक चले। उन्होंने व्यवसायी गौतम अडानी के साथ मोदी की निकटता पर एक भयंकर हमला किया – जिनके व्यवसायों को एक धोखाधड़ी योजना द्वारा वित्तपोषित बताया गया (जैसा कि अगस्त 2023 में फाइनेंशियल टाइम्स द्वारा रिपोर्ट किया गया है) – जिसके कारण गांधी को मार्च 2023 में संसद से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। 7 अगस्त को, भारत के सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के कारण, राहुल गांधी को वापस संसद की सदस्यता मिल गई। ठाकुर ने न्यूयॉर्क टाइम्स के लेख का इस्तेमाल यह तर्क देने के लिए किया कि राहुल गांधी का न्यूज़क्लिक और सिंघम से संबंध है। हालांकि, इनमें से कुछ भी सच नहीं है, लेकिन यह न्यूज़क्लिक की भयंकर क्षति के रूप में उपयोग में लाया जाने वाला एक राजनीतिक रंगमंच था।
अनुराग ठाकुर की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दस दिन बाद, और भारत में समाचार मीडिया द्वारा, रॉय, प्रबीर और मेरे बीच की ईमेल (सरकार द्वारा लीक) के प्रकाशित होने के बाद, दिल्ली पुलिस ने बेहद कठोर, गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम [यूएपीए] के तहत प्रबीर और अमित के ख़िलाफ़ स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया। (2022 में, फाउंडेशन ऑफ मीडिया प्रोफेशनल्स ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट में एक प्रस्ताव दायर किया था जिसमें कहा गया था कि इस अधिनियम में “स्पष्ट रूप से मनमाने ढंग से” प्रावधान हैं और इसमें “गैरकानूनी गतिविधि” की बहुत व्यापक परिभाषा है)। प्रबीर और अमित के घरों पर छापेमारी और गिरफ्तारी इसी यूएपीए कानून के तहत की गई। “यह भारत का मैककार्थी वाल पल है,” यह कहना था द हिंदू के पूर्व संपादक एन.राम का। राम ने भारत के प्रमुख टेलीविजन एंकरों में से एक राजदीप सरदेसाई से कहा, “यह प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है।”
76 वर्षीय प्रबीर और अमित अब हिरासत में हैं। वे दोनों अत्यधिक संवेदनशील लोग हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन दुनिया को एक बेहतर बनाने की कोशिश में बिताया है। मेरे दोस्त जेल में हैं। जब से यह मामला शुरू हुआ, प्रबीर हंसते थे और कहते थे कि वह कहानी बनने के बजाय कहानियों को कवर करना पसंद करते हैं। एक पंक्ति जो पत्रकार अक्सर इस्तेमाल करते हैं। कुछ हफ्ते पहले, प्रबीर (काउंटरपंच में नियमित योगदानकर्ता) और मैंने पीपल्स डिस्पैच के लिए उनकी नई किताब के बारे में बात की थी, जहां उन्होंने याद किया था कि कैसे हम “अपने उस छोटे से बेसमेंट में बैठते थे।”
मुझे वे दिन अच्छे से याद हैं। हम एक ऐसे मीडिया/प्रेस के निर्माण में विश्वास करते थे जो मज़दूरों और किसानों की ज़रूरतों के प्रति जागरूक हो और युद्ध की नहीं बल्कि शांति की आवश्यकता से प्रेरित हो। यही वह मीडिया/प्रेस है जिसकी हमें तब ज़रूरत थी, और यही वह प्रेस है जिसकी हमें अब ज़रूरत है।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में गिने जाने वाले 180 देशों में से भारत 161वें स्थान पर है। जैसे-जैसे अधिक से अधिक भारतीय पत्रकार हुकूमत के मेहमान बनते जाएंगे, भारत संभवतः सबसे निचले पायदान पर खिसक जाएगा।
(विजय प्रसाद भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वे ग्लोबट्रॉटर में राइटिंग फेलो और मुख्य संवाददाता हैं। वे लेफ्टवर्ड बुक्स के संपादक और ट्राइकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं।)
विजय प्रसाद की सबसे हालिया किताब (नोम चॉम्स्की के साथ) द विदड्रॉल: इराक, लीबिया, अफगानिस्तान एंड द फ्रैगिलिटी ऑफ यूएस पावर (न्यू प्रेस, अगस्त 2022) है। विचार निजी हैं।
सौजन्य: काउंटरपंच