गोवर्धन यादव
सिंधी, हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी तथा तेलुगु भाषा में निष्णात, कवि, लेखक, कहानीकार, गजलकार, अनुवादक देवी नागरानी द्वारा अनुवादित यह कहानी संग्रह अपने अनुक्रम में छठवां है. इससे पूर्व ‘और मैं बड़ी हो गई’ (सिंधी से हिन्दी में अनुदित कहानी संग्रह), (2) ‘बारिश की दुआ’ (हिन्दी से अरबी सिंधी में अनुदित कहानी संग्रह), (3) ‘अपनी धरती’ (हिन्दी से अरबी सिंधी में), (4) ‘सरहदों की कहानियां’ (हिंदी से अरबी सिंधी कहानियां) (5) ‘भाषायी सौंदर्य की पगडंडिया’ं (सिंधी से हिन्दी में), (6) ‘अपने ही घर में’ (सिंधी से हिन्दी कहानी संग्रह). यह आपका सातवां पड़ाव ‘पंद्रह सिंधी कहानियां’ हैं, जिसे हिंदी साहित्य निकेतन बिजनौर ने प्रकाशित किया है. अनुवाद एवं संपादन स्वयं लेखिका ने किया है. आने वाले कल में एक और संग्रह ‘‘दर्द की एक गाथा’’ अनूदित कहानी संग्रह प्रकाशित होकर आने वाला है.
शोध दिशा के संपादक एवं हिंदी साहित्य निकेतन के निदेशक. डॉ. श्री गिरिराजशरण अग्रवाल जी ने अपने प्रकाशकीय में लिखा है, ‘‘अनुवाद मूल लेखन से कहीं अधिक कठिन कार्य है’’. यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है. मेरा भी अपना मानना है कि अनुवाद प्रक्रिया ‘‘परकाया प्रवेश’’ करने जैसा कठिन और दुष्घर्ष कर्म है. जितनी ऊर्जा लेखक को इसमें खपानी पड़ती है, उससे कहीं ज्यादा परिश्रम अनुवादक को करना होता है और यह तभी संभव हो पाता है जब आपका दो भाषाओं पर समान रूप से अधिकार हो. ऐसा होने पर ही कहानी की आत्मा बची रहती है. प्रस्तावना में हैदराबाद (सिंध) के श्री शौकत हुसैन शोरो जी के अनुसार सिंधी भाषा की लिपि तैयार करने के लिए सर बारटिक फ्रेअर की कोशिशों से 1953 में सिंधी लिपि तैयार हुई, जो आगे चलकर अरबी-सिंधी लिपि कहलाई जाने लगी. आपने उन तमाम लेखकों के नामों का उल्लेख किया है, जिनके कठिन परिश्रम और लगन से सिंधी भाषा की सरिता प्रवाहित होती रही है. केनेडा से प्रकाशित ‘‘हिन्दी चेतना’’ की संपादिका सुश्री सुधा ओम ढींगरा जी ने देवी नागरानी के कलात्मक अनुवाद की प्रशंसा करते हुए कहा है- ‘‘अनुवाद करना एक ऐसी कला है, जो सबमें नहीं होती. यह गुण उनमें कूट-कूट कर भरा है और सिंधी भाषा के प्रति उनका समर्पण सराहनीय है. वे लिखती हैं-‘‘मुझे विभिन्न भाषाओं में लिखी कहानियां पढ़ने का बहुत शौक है. सिंधी कहानियों से परिचय करवाने के लिए मैं देवी नागरानी को धन्यवाद देती हूं.’’ मुंबई के के. सी. कॉलेज की प्राचार्या कु. मंजू नेचाणी ने इस संग्रह को ‘‘हिंदी साहित्यमाला का एक चमकता मोती’’ निरूपित किया है. प्रख्यात कथाकार संतोश श्रीवास्तव कहती हैं-‘‘बेहतरीन सौगात है सरहद पार की कहानियां.’’ तेजाबी तेवरों में ओतप्रोत सिन्ध की कहानियों के बारे में स्वयं लेखिका ने अपने मन के उद्गार प्रस्तुत किए हैं. एक भाषा के प्रति सच्चा समर्पण और उन्हें अन्य किसी भाषा के माध्यम से, जिन पर उनका अधिकार है, प्रस्तुत करने की बेचैनी-छटपटाहट और बेकली स्पष्ट देखी जा सकती है. इसी का सुपरिणाम है कि सरहद पार की कहानियां अपना रास्ता तय करते हुए दूसरे देश यानि भारतवर्ष तक आ पहुंची है. संग्रह के अन्त में रचनाकारों का परिचय प्रकाशित करने की यह पहल सराहनीय है.
देवी नागरानी ने विगत तीन सालों में एक मौन साधक की तरह इस पार और उस पार के बीच की लक्ष्मण रेखा को विलीनता के हाशिये पर लाने का सफल प्रयास किया है. मई-जून 2005 में प्रकाशित ‘‘समकालीन भारतीय साहित्य’’ में उन सभी रचनाकारों के नामों का उल्लेख किया गया है, जिन्होंने अन्य भाषाओं में प्रकाशित कहानियों का अनुवाद अपनी भाषा में या अन्य भाषा में किया है. इसको आधार बनाते हुए यह कहा जा सकता है कि देवी नागरानी देश की पहली अनुवादक हैं, जिन्होंने सिंधी भाषा में लिखी गई कहानियों का हिन्दी में अनुवाद किया है. वे साधुवाद की पात्र हैं. अतः उन्हें कोटिशः बधाइयां-शुभकामनाएं.
संग्रह में शेख अयाज की पहली कहानी है ‘जिन्दा दिली’. यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो अपने प्यार को अंत तक समझ ही नहीं पाता. ‘‘सीमेंट की पुतली’’ (रशीदा हिजाब) धनकुबेरों के चोंचले, शोषण और अत्याचार पर केन्द्रित कहानी है. ‘‘यह जहर कोई तो पिएगा’’ (हमीद सिंधी) कहानी एक आदर्श शिक्षक के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन उसका बेटा अफीम के व्यापार में संलग्न हो जाता है. मार्मिक कहानी बन पड़ी है. ‘‘उलझे धागे’’ (नसीम खरल) की कहानी-समाज में फैलती जा रही विद्रूपता को उजाकर करती है. ‘‘सूर्योदय से पहले’’ (अमर जलील) फाकामस्ती और बेरोजगारी में कटते दिनों पर आधारित कहानी है. उसकी जिन्दगी में एक फरिश्ता आता है जो उसे नेकी से पैसा कमाने और खुशहाल जिन्दगी जीने की सलाह देता है. कुछ दिन चोरी करने के बाद वह साइकिल की फैक्ट्री में काम करने लगता है. चिकनाई से लदे कपड़ों और थकान से चूर जब वह फैक्ट्री से बाहर निकलता है तो उस फरिश्ते को सामने खड़ा पाता है. मिलते ही फरिश्ता कह उठता है कि आज मैं बेहद खुश हूं. श्रम के मूल्य को रेखांकित करती यह कहानी अपने उद्देश्य और रास्ते से भटके नवयुवकों के लिए है. ‘‘घाव’’ (तारिक अशरफ)– यह कहानी भी उन नवयुवकों को सीख देने के लिए है जो मेहनत से किनारा कर जीवन जीना चाहते हैं. ‘‘काला तिल’’ (गुलाम नबी मुगल)– अपनी प्रेमिका की कोई बात अथवा कोई निशानी देखकर प्रेमी दीवानगी की हद तक जा पहुंचता है. काला तिल देखकर दीवाना बने गिल्लू को बाद में पता चलता है कि वह तो नकली तिल था. ‘‘होंठों पर उडती तितली’’ (शौकत हुसैन शोरो), बताती है कि जीवन में कुछ क्षण ऐसे भी आते हैं कि जिसे हम चाहते हैं उसके साथ शादी न होकर किसी और से हो जाती है. पहले प्यार की कशिश ताउम्र बनी रहती है. उसका ध्यान आते ही उसके होंठो पर खुशी की तितली उड़ने लगती है. ‘‘बीमार आकांक्षाओं की खोज’’ (मुश्ताक अहमद शोरो)– मन की गहराई तक धंसा डर आदमी को इतना निकम्मा कर देता है कि वह अपनी लड़ाई खुद नहीं लड़ सकता. डरा-सहमा आदमी फिर एकाकी जीवन जीने लगता है. यह कहानी उन लोगों की प्रेरणा बन सकती है, जो डर से ग्रसित हैं. ‘‘हृदय कच्चे रेशे-सा’’ (मदद अली सिन्धी)– संग्रह की सबसे लम्बी और मार्मिक कहानी है जो पाठक को अंत तक
बांधे रहती है. इस कहानी के केन्द्र में एक ऐसी खूबसूरत युवती की कहानी है, जो महलों में रहती है. धन-दौलत की कमी नहीं है उसके पास, लेकिन पति की उपेक्षा और प्रताड़ना से वह टूट जाती है और नीरस-उबाऊ जिन्दगी जीने लगती है. अच्छी कहानी बन पड़ी है. ‘‘मजाक’’ (हलीम बरोही)– शादी से पहले लंदन में रहते हुए उसने ‘‘फैमिली प्लानिंग’’ को जिंदा रखने के लिए ऑपरेशन करवा लिया था. लेकिन आदत के मुताबिक भूल गया. और अपनी पत्नी को बता नहीं पाया कि वह कभी बाप नहीं बन पाएगा. पति-पत्नी आपस में खूब मजाक करते हैं और खिलखिला कर हंस पड़ते हैं, उसी हंसी के बीच वह ऑपरेशन की बात बताता है. कुछ देर तक तो पत्नी खामोशी ओढ़े रहती है फिर ठहाका मारकर हंस पड़ती है. शायद उस गम को भुला देने के लिए या फिर परिस्थिति से समझौता करने के लिए. ‘‘किस-किसको खामोश करोगे?’’ (नसीम थेबो)– खुद्दार और देशभक्त सोढ़ा को पहले जेल और फिर फांसी हो जाती है क्योंकि अन्याय के आगे उसने कभी झुकना नहीं सीखा था. ‘‘अलगाव की अग्नि’’ (राजन मंगरियो)– अपने पति की अनुपस्थिति में किसी गैर मर्द के साथ हम बिस्तर होना, शादी से पहले अथवा मंगनी के बाद शारीरिक संबंध बना लेना आज के तथाकथित सभ्य समाज में एक फैशन-सा बन गया है. परिणाम इसके घातक ही सिद्ध होते आए हैं, लेकिन सब चलता है कि तर्ज पर चलते हुए ऐसे लोगों को पूरी जिन्दगी पश्चाताप की अग्नि में जलते रहना पड़ता है. समाज में आए इस बड़े बदलाव को रेखांकित करती यह कहानी प्रभाव छोड़ती है. ‘‘जड़ों से उखड़े’’ (अनवर शेख) विश्वास कब अविश्वास में बदल जाएगा, कोई नहीं जानता. इसी तरह अमानत, कब खयानत में तब्दील हो जाएगी, कहा नहीं जा सकता. इसी विश्वास और अविश्वास पर लिखी गई रोचक कहानी है.
इन कहानियों को पढ़ते हुए मुझे यहां और वहां की आम जिन्दगी में रोजमर्रा की कशमकश, इच्छाएं, आकांक्षाएं, स्मृतियां, विस्मृतियां, विस्मय, विडम्बनाएं और वेदनाएं आदि देखने को मिलती हैं…जिस दुख और संताप को हम यहां महसूस करते हैं, ठीक उसी तरह समूची धरती पर आदम जात के मन में उन्हीं भावनाओं की कश्मकश दिखलायी देती है. कहानियों के पात्र और स्थान भले ही अलग-अलग हों, लेकिन वास्तविकताएं लगभग एक जैसी ही होती हैं. शायद यही कारण है कि मुझे बार-बार ‘निदा फाजली साहब’ की गजल याद हो आती है. वे लिखते हैं-
‘‘इन्सान में हैवान, यहां भी हैं वहां भी,’
अल्लाह निगहबान यहां भी है, वहां भी हैं.
खूंखार दरिंदों के फकत नाम अलग हैं,
शहरों में बयाबान, यहां भी हैं, वहां भी हैं.
रहमान की कुदरत हो, या भगवान की मूरत,
हर खेल का मैदान, यहां भी हैं वहां भी हैं.
हिंदू भी मजे में हैं, मुस्लमां भी मजे में हैं,
इन्सान परेशान, यहां भी हैं, वहां भी हैं.
उठता है दिलोजां से धुआं दोनों तरफ ही,
ये मीर का दीवान, यहां भी हैं, वहां भी हैं.’’
आज दुनिया के हर कोने से, यहा तक कि चांद-सितारों से भी सूचनाएं हम तक आ रही हैं. इनकी सतह पर सत्ता की बंजर पर्त है, लेकिन इस बंजर पर्त को खुरचकर इन सूचनाओं में अनुभूति की रागात्मक ऊर्जा को रोपना आज कहानीकार का अपना दायित्व है. आज जहां-जहां कहानी ने सूचनाओं को जीवंतता प्रदान कर उन्हें अनुभव में रूपान्तरित करने में सफलता प्राप्त की है, वहां-वहां उसने अपनी अनुभूति के संसार में अभूतपूर्व विस्तार किया है.
प्रकृति का अंग मनुष्य ही है किन्तु वह प्रकृति का एक ऐसा अंग है जो चेतना संपन्न है, आत्म सजग है. इसी आत्म चेतना और सजगता के बल पर देवी नागरानी ने दो विभिन्न भाषाओं के मध्य एक सेतु का निर्माण किया है, एक ऐसे पुल की निर्मित जो एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य के बीच परस्पर संप्रेषण और सौहार्द का माध्यम बनाता है. अपने छोटे-छोटे निजी दुःखों के बीच रहते हुए अपनी कहानियों का सफरनामा लिखने को उत्सुक देवी नागरानी की कहानियों में उनका आत्मगत संसार बार-बार व्यक्त होता है. असंभव की संभावनाओं पर इस दौर में उन्होंने काफी कुछ लिखा है जो एक नयी समझ देता है.
‘‘पंद्रह सिंधी कहानियां’’ की सारी कहानियां, कहानीकार के आत्म का पारदर्शी प्रतिरूप है. छल-छद्म और दिखावेपन के बुनावटों से दूर, लाभ-लोभ वाली आज की खुदगर्ज दुनियां में एक सहज-सरल-निर्मल प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और
बधाइयां, इस आशा के साथ कि आने वाले समय में उनके नए संग्रह से परिचित होने का सुअवसर प्राप्त होगा।
संपर्कः 103, कावेरीनगर,
छिन्दवाडा (म.प्र.)-480-001
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