एक लंबे अंतराल के बाद वसुधा का 101वाँ अंक प्रकाशित हुआ है। हरिशंकर परसाई और कमला प्रसाद इस पत्रिका के संस्थापक सम्पादक रहे जिसे बाद में अनेक प्रसिद्ध साहित्यकारों ने सम्पादित किया।
यह अंक 312 पृष्ठों का है जिसमें सईद नक़वी का अफ़ग़ानिस्तान पर हरनाम सिह चँदवानी द्वारा लिप्यन्तरित व्याख्यान, अहमद करीम का आनंद पटवर्धन की डॉक्युमेंट्री फ़िल्मों का विहंगावलोकन करता लेख, अजित हर्षे द्वारा बॉदलेयर की कविताओं का अनुवाद, कुमार अंबुज द्वारा किया गया ऑस्कर वाइल्ड की कविताओं का अनुवाद, हरमान हैसे पर जयप्रकाश सावंत का लेख (अनुवाद: सुनीता डागा), डॉ सुखदेव सिंह का पंजाबी कवयित्री पीरो पर शोध लेख, कश्मीर की औरतों के हालात पर स्वतंत्र महिला दल की रिपोर्ट, शैलेय, शेखर मलिक और सारंग उपाध्याय की कहानियाँ, चीन के सांस्कृतिक प्रयासों पर नंदिता चतुर्वेदी का लेख, शुभा, हरिओम राजोरिया, प्रकाश चंद्रायन, अनुज लुगुन, विहाग वैभव, पियूष पंड्या, स्वप्ना मिश्र (ओडिया से अनुवाद: राधू मिश्र) की कविताएँ, रोज़ा लक्ज़मबर्ग का अपने क़त्ल के ठीक पहले लिखा गया महत्त्वपूर्ण संपादकीय तथा इस बीच गुजरी हुई साहित्यिक हस्तियों पर स्मृति लेख इस अंक में शामिल हैं। इसमें नामवर सिंह पर आशीष त्रिपाठी, खगेंद्र ठाकुर पर अरुण कमल, अली जावेद पर फरहत रिज़वी, ईश मधु तलवार पर सत्यनारायण और चंद्रिका प्रसाद चंद्र ने कैलास चन्द्र को याद किया है। अंक में चित्र हैं अवधेश वाजपेयी के, अंतिम आवरण है अशोक दुबे का और आवरण सज्जा व पृष्ठ सज्जा रजनीश साहिल व नितिन पंजाबी की है।
वसुधा को ऑनलाइन उपलब्ध करवाने में नीलाभ श्रीवास्तव सहयोग करते रहे हैं। यह अंक ₹100 का ऑनलाइन भुगतान करके निम्नलिखित लिंक से पीडीएफ रूप में डाउनलोड किया जा सकता है-
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