अगले कुछ दिनों में देश के पांच राज्यों में चुनाव की औपचारिक अधिसूचना जारी हो जाएगी। हालांकि हर चुनाव महत्वपूर्ण होता है लेकिन इस बार पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी के विधानसभा चुनाव के कई मायने निकल सकते हैं। असम में अभी बीजेपी गठबंधन की सरकार है तो केरल में लेफ्ट समर्थित गठबंधन की सरकार है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी सत्ता में है जबकि तमिलनाडु में एआईडीएमके और पुडुचेरी में कांग्रेस।
इस बार बड़े सवाल ये हैं कि क्या बंगाल में बीजेपी पहली बार सत्ता की कुर्सी तक पहुंच पाएगी? क्या तमिलनाडु में वैकल्पिक राजनीति का प्रवेश होगा? क्या केरल में हर पांच साल बाद सरकार बदलने का ट्रेंड जारी रहेगा? असम में क्या बीजेपी अपना सिक्का जमाए रखेगी? तय कार्यक्रम के अनुसार चुनाव आयोग ने उन सभी राज्यों का दौरा शुरू कर दिया है जहां चुनाव होने हैं। सूत्रों के अनुसार चुनाव की तारीखें बोर्ड परीक्षा को देखते हुए तय की जाएंगी। इस बार कोविड के कारण बोर्ड परीक्षा 4 मई से 10 जून के बीच होने हैं। आयोग के सूत्रों के अनुसार बोर्ड परीक्षा से पहले अप्रैल और मई के बीच सभी चुनाव हो जाएंगे
बीजेपी के लिए आसान नहीं राह
अपने स्वर्णिम काल से गुजर रही बीजेपी के लिए भी पांच राज्यों में चुनावों की राह आसान नहीं है। पार्टी को पता है कि इन राज्यों के नतीजों को सीधे मोदी सरकार के कामकाज से जोड़कर देखा जा सकता है। ऐसे में उसकी चिंता चुनाव जीतने के साथ ही चुनाव नतीजों से बनने वाली छवि को लेकर भी है। बीजेपी को सबसे ज्यादा उम्मीद पश्चिम बंगाल से है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि वहां ममता बनर्जी की अगुआई में टीएमसी लंबे समय से सत्ता में है। ऐसे में वहां उसे एंटी इन्कम्बेंसी का फायदा मिल सकता है।
ध्रुवीकरण की उम्मीद
लोकसभा में राज्य की 18 सीटें जीतने से उसके हौसले पहले ही बुलंद हैं। राज्य में मुख्य विपक्षी दल के रूप में स्थापित होने के बाद पार्टी को लगता है कि अब ममता विरोधी वोट उसे ही मिलेंगे। दिक्कत यह है कि वहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण नहीं हुआ तो बीजेपी की राह में अड़चन आ सकती है। पिछले दिनों आए ओपीनियन पोल में भी सीटें कम होने के बावजूद ममता बनर्जी आगे बताई गई हैं।
मोदी-शाह के करिश्मे का भरोसा
2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को महज तीन सीटें मिली थीं, लेकिन बीजेपी के लिए समस्या यह है कि उसके प्रदर्शन की तुलना विधानसभा चुनाव के बजाय लोकसभा चुनाव से की जाएगी। वैसे पार्टी का मानना है कि जब मोदी-शाह की जोड़ी मैदान में उतरेगी तो बीजेपी के लिए बंगाल फतह अधिक मुश्किल नहीं होगा। खासकर जिस तरह एक के बाद एक कई दिग्गज टीएमसी छोड़कर बीजेपी की ओर मुड़े हैं, उससे पार्टी का मनोबल बढ़ा हुआ है।
असम में वापसी के प्रति आश्वस्त
असम बीजेपी के लिए दूसरी बड़ी चुनौती है। वहां जब 2016 में पार्टी ने चुनाव जीता तो इसे बहुत बड़ा राजनीतिक संदेश माना गया। लेकिन असम ने हाल के सालों में नागरिकता कानून पर मजबूत आंदोलन देखा है। बीजेपी का गठबंधन भी छोटे दलों से टूट गया है। अभी चुनाव से ठीक पहले विपक्ष ने वहां महागठबंधन बनाने का ऐलान किया है। फिर भी बीजेपी असम को लेकर आश्वस्त नजर आती है। बीजेपी नेताओं का कहना है कि पार्टी पिछले सालों में वहां और मजबूत ही हुई है।
तमिलनाडु और केरल में भी दांव
तमिलनाडु और केरल में भी बीजेपी ने स्थानीय दलों से हाथ मिलाया है लेकिन इन दोनों राज्यों में वह अपने दम पर सत्ता की रेस में नहीं है। फिर भी मिशन विस्तार के तहत वह यहां भी पूरी ताकत लगा रही है।
नतीजों के बाद कुछ यूं होगा पोस्टमॉर्टम
चूंकि अब बीजेपी भारतीय राजनीति के केंद्र में है इसलिए अगर चुनाव नतीजे उसके पक्ष में नहीं आते तो इस बात का पोस्टमार्टम ज्यादा होगा कि यह हार बीजेपी राज्य संगठन की है या फिर केंद्र में उसकी अगुआई में चल रही सरकार की। कुल मिलाकर परोक्ष रूप में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर सवालिया निशान लगाए जाएंगे। अगले साल ही यूपी और पंजाब में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इन पांच राज्यों के चुनाव परिणामों से बनने वाले माहौल का असर यूपी के वोटरों को भी प्रभावित कर सकता है। स्वाभाविक ही बीजेपी इन्हें लेकर काफी संवेदनशील है।
कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति पर असर
उधर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के लिए यह ‘मेक ऑर ब्रेक’ चुनाव होगा। विपक्ष को पता है कि जिस तरह नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी चुनावी समर में लगातार बीस पड़ती रही है, अगर इस बार भी उसका वैसा ही प्रदर्शन रहा तो विपक्ष की हालत आगे और खराब हो सकती है। सबसे खराब दौर से गुजर रही कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति भी इन चुनावों से प्रभावित हो सकती है। पार्टी एक बार फिर राहुल गांधी को नया अध्यक्ष चुनने की संभावना पर विचार कर रही है। हालांकि कई शीर्ष नेता हाल में नेतृत्व संकट को लेकर मुखर रहे हैं। ऐसे में चुनाव परिणाम इस बार पार्टी के लिए बहुत अहम है।
गुटबाजी का शिकार कांग्रेस
केरल से खुद राहुल गांधी सांसद हैं। अगर केरल में कांग्रेस सत्ता में आने में विफल रही तो सबसे पहला सवाल उन पर ही उठेगा। हाल में आए एक ओपीनियन पोल में कांग्रेस को पीछे बताया गया। वहां स्थानीय निकाय चुनाव में भी पार्टी पिछड़ गई थी। असम में भी पार्टी गुटबाजी का शिकार है। लेकिन दो दिन पहले पार्टी ने महागठबंधन बनाने में भूमिका निभाई जिससे वह अब तक बचती रही है। पश्चिम बंगाल में उसका वाम दलों के साथ और तमिलनाडु में डीएमके के साथ गठबंधन है।
बंगाल में हारी बीजेपी तो…
कांग्रेस और विपक्ष का अपना आकलन है कि वह तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी में सरकार बनाने के रेस में है और अगर ममता बीजेपी को बंगाल में रोकने में सफल हो गई तो यह बीजेपी के पतन की शुरुआत हो सकती है। लेकिन हाल के सालों में बीजेपी ने चुनाव में सबकुछ झोंक कर अपने पक्ष में परिणाम लाने का जो दमखम दिखाया है, उसे देखते हुए विपक्ष को दूनी मेहनत करनी होगी।