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जंगलों के बाहर किए जाने वाले वन अपराधों में सजा का प्रावधान समाप्त करने की तैयारी

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भोपाल। मध्यप्रदेश का वन महकमा यथा नाम तथा गुण को अधिक चरितार्थ करता है। यही वजह है की प्रदेश में लगातार वन क्षेत्र कम होता जा रहा है और नए पेड़ों की हालात बद से बदतर बनी हुई है, इसके बाद भी इस महकमे को जंगल बचाने की जगह राजनैतिक चिंताएं अधिक बनी रहती है। इसका उदाहरण हाल ही में तैयार किया गया वह प्रस्ताव है ,जिसमें वन क्षेत्र से बाहर किए गए वन कानूनों के उल्लघंन के मामलों में राहत देने की तैयारी की जा रही है। इस प्रस्ताव में जंगलों के बाहर किए जाने वाले वन अपराधों में सजा का प्रावधान समाप्त करने की तैयारी कर ली गई है।
अगर इस प्रस्ताव को सरकार मंजूर कर लेती है तो ऐसे मामलों में सिर्फ जुर्माना देकर छोड़ दिया जाएगा। खास बात यह है की इसके पीछे विभाग की मंशा किसानों और आदिवासियों पर दर्ज होने वाले वन अपराधों में कारावास से मुक्ति दिलाने की है। राजनैतिक विशलेषक इसे प्रशासनिक कम बल्कि राजनीति से प्रेरित अधिक मानकर चल रहे हैं। तैयार किए जा रहे प्रस्ताव में चार अधिनियमों में संशोधन करने की तैयारी वन मुख्यालय द्वारा की गई है। खासकर किसान अपनी निजी भूमि पर वृक्षारोपण कर टीपी (परमिट) लिए बिना ही वृक्षों का विक्रय कर देते हैं और बाद में उन्हें परेशानी उठानी पड़ती है। सूत्रों के मुताबिक, मुख्यालय ने इन नियमों में संशोधन करने का प्रस्ताव तैयार किया है, जिसमें अब जेल की सजा हटाए जाने के स्थान पर सिर्फ जुर्माना लगाकर किसानों और आदिवासियों को छोड़ा जा सके। वर्तमान में इन नियमों की वजह से सैकड़ों किसानों और आदिवासियों पर वन अपराध दर्ज हैं। विभाग का तर्क है की राज्य सरकार ने विधि आयोग की सिफारिशों पर आईपीसी एवं सीआरपीसी में बदलाव कर कई धाराओं को समझौता योग्य बनाया है, इसलिए इन अधिनियमों में संशोधन करने की तैयारी है। उधर, इस मामले में वन कानूनों के जानकारों का कहना है कि फॉरेस्ट एक्ट में संशोधन लोकसभा में बिल पेशकर ही किया जा सकता है। राज्य के साथ केंद्र की सहमति भी जरूरी है।
अभी यह हैं प्रावधान
प्रदेश में मौजूदा समय में  मप्र अभिवहन ( वनोपज) नियम 2000 में बिना टीपी के लकड़ियां ले जाने पर एक वर्ष की सजा और 10 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है। इसी तरह से  मप्र काष्ठ चिरान (विनियमन) अधिनियम 1984 में आरा मशीनों  का प्रावधान है। अवैध लकड़ियों का चिरान करने एवं हिसाब-किताब नहीं रखने पर एक साल का कारावास और 20 हजार रुपए का जुर्माना, मप्र तेंदूपत्ता (व्यापार विनियमन) अधिनियम 1964 में बिना अनुमति तेंदूपत्ता का संग्रहण करने एवं उसका विक्रय करने पर 3 माह से एक साल की सजा तथा 50 हजार रुपए के अर्थदंड का और वन उपज (व्यापार विनियमन) 1969 में वनोपज के अवैध व्यापार पर दो साल का कारावास एवं 25 हजार का जुर्माना लगाने का प्रावधान है।

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