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चोरी-छुपे ब्राडकास्टिंग सर्विसेज (रेगुलेशन) बिल को लाने की तैयारी

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ब्राडकास्टिंग सर्विसेज (रेगुलेशन) बिल अर्थात प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक को लेकर देश में नई सनसनी फैली हुई है।  ऐसा माना जा रहा है कि सरकार वक्फ बोर्ड कानून और प्रसारण सेवा (विनियमन) बिल के जरिये अपने तीसरे कार्यकाल के लिए एजेंडा सेट करना चाहती है। एक विधेयक मुस्लिम वक्फ बोर्ड के अधिकार क्षेत्र को बड़े पैमाने पर सीमित कर सकता है, जिससे हिंदुत्ववादी शक्तियों को साफ़ संदेश जा सकता है कि सरकार भले ही अल्पमत में हो, लेकिन वह 2019 की तरह अभी भी बहुसंख्यकवाद की भावनाओं की सवारी गांठ सकती है।

वहीं दूसरी ओर, ब्राडकास्टिंग सर्विसेज (रेगुलेशन) बिल 2023 में व्यापक बदलाव कर अब उसके भीतर केबल टीवी ही नहीं बल्कि ओटीटी सहित स्वतंत्र यूट्यूबर्स, पत्रकारों और ब्लॉगर्स के न्यूज़ कंटेंट को भी इस कानून के दायरे में लाकर उनके ऊपर शिकंजा कसने की तैयारी चल रही है।  

ऐसा जान पड़ता है कि अपने तीसरे कार्यकाल में मोदी-शाह की जोड़ी के लिए राहत के बजाय एक के बाद एक आफत का दौर चल निकला है। एक तरफ विपक्ष पहले की अपेक्षा बेहद संगठित और सशक्त है, तो दूसरी तरफ पार्टी और पितृ संगठन भी बगावती तेवर के साथ मोर्चा खोले हुए है।

पिछले दिनों, सात राज्यों में हुए उपचुनावों में पार्टी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा, जो खुलासा करता है कि मोदी मैजिक के हटते ही 10-15% स्विंग वोटर्स भी अब छिटक रहे हैं। विपक्षी दलों के नेताओं को मेनस्ट्रीम मीडिया में कवरेज भी अब ज्यादा मिलने लगा है, जबकि ऐसा माना जा रहा है कि सोशल मीडिया और यूट्यूब पर उसकी बढ़त ने ही 2024 के आम चुनाव में भाजपा के नैरेटिव को धूल चटाई है। 

सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वेक्षण से भी इसकी पुष्टि होती है। जिसमें 64.20 करोड़ मतदाताओं और 92.40 करोड़ ब्रॉडबैंड कनेक्शन की कहानी सामने आती है। आज भारत में टेलीविजन न्यूज़ की लोकप्रियता तेजी से गिरी है, और ज्यादा से ज्यादा लोग सोशल मीडिया या इंटरनेट के माध्यम से देश-दुनिया की खबरों से रूबरू हो रहे हैं। हालांकि, 42% कवरेज के साथ टेलीविजन अभी भी पहले स्थान पर बना हुआ है।

लेकिन 29% लोग विभिन्न डिजिटल प्लेटफार्म के माध्यम से यदि न्यूज़ कंटेंट देख रहे हैं, तो यह संख्या वास्तव में काफी ज्यादा है, जिस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। केंद्र और राज्य सरकारों के माध्यम से जिस प्रकार से गोदी मीडिया का निर्माण हुआ था, और स्थापित समाचारपत्रों की सरकारी विज्ञापनों और टेंडर्स पर निर्भरता बनी हुई है, उसके बनिस्बत ये डिजिटल प्लेटफार्म लाखों की संख्या में नया दर्शक वर्ग तैयार कर रहे हैं, जो विभिन्न विषयों पर अपनी स्वतंत्र राय निर्मित करने लगा है।   

ऐसा भी नहीं है कि केंद्र सरकार इस बारे में 4 जून 2024 से पहले पूरी तरह से अनभिज्ञ थी। इससे पहले 2021 में भी आईटी रूल में बदलाव कर स्थिति को अपने नियंत्रण में लाने की कोशिश की गई, जो विफल साबित हुई।  इसके बाद अप्रैल 2023 में डिजिटल कंटेंट में फेक, भ्रामक और झूठी खबरों पर लगाम लगाने के लिए फैक्ट चेकिंग को लाने का प्रयास किया गया, जिसे सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा रोक लगा दी गई थी।

इसके अलावा, केंद्र सरकार नवंबर 2023 में ही ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेज (रेगुलेशन) बिल, 2023 का ड्रॉफ्ट लेकर आ चुकी थी, जिसके तहत सूचना प्रसारण मंत्रालय के पास डिजिटल मीडिया को नियंत्रित करने के असीमित अधिकार हासिल हो सकते हैं। 

लेकिन जून 2024 के बाद से मोदी सरकार जैसी स्थिति बिल्कुल गायब है। शपथ ग्रहण हुए दो माह बीत चुके हैं, लेकिन सरकार संसद हो या देश, कहीं भी विपक्ष और आम लोगों की नाराजगी का सामना कर पाने की स्थिति में नहीं दिखती है। जेडीयू और टीडीपी के समर्थन पर टिकी सरकार, भले ही दिखावे के लिए माहौल बना रही हो कि वह आज भी सारे फैसले अपने मन से ले रही है।

लेकिन आम बजट में बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए विशेष आवंटन या 4 करोड़ इंटर्नशिप प्रोग्राम साफ़ बता रहा है कि सरकार चौतरफा दबाव महसूस कर रही है। तो क्या प्रस्तावित बिल के माध्यम से डिजिटल न्यूज़ कंटेंट को सीमित कर विपक्ष और आम जनता की आवाज को घोंटा जा सकता है, और उसके बाद वन वे ट्रैफिक के माध्यम से फिर से भाजपा अपने नैरेटिव को 144 करोड़ भारतीयों के भीतर पेवश्त करने में सफल हो सकती है?

इस मुद्दे पर 2 अगस्त को तृणमूल कांग्रेस के राज्य सभा सांसद जवाहर सरकार ने जानकारी साझा करते हुए बताया था कि मोदी सरकार इस प्रस्तावित बिल के सच को संसद के साथ साझा नहीं कर रही है। लेकिन व्यापारिक घरानों और ‘हितधारकों’ के साथ इस जानकारी को साझा कर रही है। सरकार ने ब्राडकास्टिंग बिल को संशोधित कर दिया है और इसे गुप्त तरीके से कुछ लोगों के बीच प्रसारित किया जा रहा है। फिर भी जब लिखित तौर पर सरकार से सवाल किया जाता है, तो वह इसे स्पष्ट रूप से बताने से इंकार कर रही है। यह बाकी सवालों से बचती है, क्योंकि विश्व में किसी भी लोकतांत्रिक देश में ऐसा कठोर कानून नहीं है। 

कांग्रेस पार्टी के मीडिया प्रभारी पवन खेड़ा ने भी 2 अगस्त को अपने सोशल मीडिया हैंडल से जानकारी साझा करते हुए लिखा था, “प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वतंत्र मीडिया के लिए सीधा खतरा है। इसलिए हम सभी को सरकार के अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए: 

** यह विधेयक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स से लेकर स्वतंत्र समाचार आउटलेट और कंटेंट क्रिएटर्स पर सरकार के बढ़ते नियंत्रण और प्रेस की स्वतंत्रता को ख़तरे में डालता है और मुक्त भाषण को प्रतिबंधित करता है। 

** यह बिल वीडियो अपलोड करने, पॉडकास्ट बनाने या समसामयिक मामलों के बारे में लिखने वाले किसी भी व्यक्ति को ‘डिजिटल समाचार प्रसारक’ के तौर पर लेबल करता है। यह स्वतंत्र समाचार कवरेज प्रदान करने वाले व्यक्तियों और छोटे-छोटे टीमों को अनावश्यक तौर पर विनियमित कर सकता है।

 **ऑनलाइन क्रिएटर्स के सामने कंटेंट मूल्यांकन कमेटी को स्थापित करने की बाध्यता, एक प्रकार से प्रकाशन-पूर्व सेंसरशिप के तौर पर बढ़ जाती है। इससे समय पर समाचार पाने में विलंब होगा और मुक्त अभिव्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। 

**बिल छोटे कंटेंट क्रिएटर्स पर भारी विनियामक बोझ डालता है, और उन्हें बड़े मीडिया हाउस के तौर पर मानता है। कई स्वतंत्र पत्रकारों के पास अनुपालन करने के लिए संसाधनों की कमी है, जिससे उनके शटडाउन होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। 

**अपने प्लेटफॉर्म से पैसे कमाने वाले कंटेंट क्रिएटर्स को पारंपरिक ब्रॉडकास्टर्स की तरह ही कड़े नियमों का सामना करना पड़ता है। यह नए प्रवेशकों को हतोत्साहित करता है और स्वतंत्र क्रिएटर्स की आर्थिक व्यवहार्यता को नुकसान पहुंचाता है। ठीक इसी तरह सरकार ने भारत में क्रिप्टो बाजार को खत्म कर दिया। 

**बिल की मसौदा प्रक्रिया में नागरिक समाज, पत्रकारों और प्रमुख हितधारकों को शामिल नहीं किया गया है, जिससे पारदर्शिता और समावेशिता को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। ‘नकारात्मक प्रभावकों’ की निगरानी और गैर-अनुपालन के लिए आपराधिक दायित्व को थोपकर असल में असहमति की आवाज़ों और स्वतंत्र पत्रकारिता को ख़तरे में डाला जा रहा है।

यह बिल ऑनलाइन दुनिया में अत्यधिक निगरानी का मार्ग प्रशस्त करने जा रहा है।”

अंग्रेजी अखबार मनी कंट्रोल ने आज के अपने एक लेख में बताया है कि उसके द्वारा प्रस्तावित बिल की एक प्रतिलिपि का मूल्यांकन किया गया है। अखबार का कहना है कि, इस बिल के प्रावधानों से सेंसरशिप तथा भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन की चिंताएं बढ़ जाती हैं।

मनी कंट्रोल ने इस बिल को लेकर उठ रहे सवालों को कुछ सेट बनाकर उसका जवाब देने की कोशिश की है। जैसे कि न्यूज़ इन्फ्लुएंसर्स को डिजिटल ब्रॉडकास्टर के तौर पर कैसे वर्गीकृत किया जा सकता है? इसके जवाब में अख़बार का कहना है कि अप्रकाशित मसौदा ‘डिजिटल समाचार प्रसारक’ को किसी भी इकाई के रूप में परिभाषित करता है, जो ऑनलाइन पेपर, समाचार पोर्टल, वेबसाइट, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म या किसी अन्य माध्यम से समाचार और समसामयिक मामलों के कार्यक्रम प्रसारित करता है। यह किसी भी व्यवसाय, पेशेवर या वाणिज्यिक गतिविधि का हिस्सा हो सकता है। बिल में इसका उल्लेख किया गया है, लेकिन विनियमन के दायरे में आने के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए ग्राहकों या दर्शकों की न्यूनतम सीमा निर्दिष्ट नहीं की गई है।

इसी प्रकार, क्या न्यूज़ एवं गैर-समाचार इन्फ्लुएंसर्स को अपने संचालन के बारे में सरकार को सूचित करना होगा या नहीं, के बारे में अख़बार का साफ कहना है कि मसौदा बिल में कहा गया है कि इस प्रस्तावित कानून की अधिसूचना से एक महीने की अवधि के भीतर, ओटीटी प्रसारण सेवा ऑपरेटरों और डिजिटल समाचार प्रसारकों को अपने संचालन के बारे में केंद्र सरकार को सूचना देनी होगी।

कंटेंट क्रिएटर्स के लिए शिकायत निवारण प्रणाली के निर्माण की जरूरत पर पत्र का कहना है कि उनके लिए ऐसा करना बाध्यकारी होगा। मसौदा विधेयक में कहा गया है कि प्रत्येक प्रसारक को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के कार्यक्रम एवं विज्ञापन संहिता का उल्लंघन करने वाली शिकायतें प्राप्त करने और उनकी सुनवाई के लिए “एक शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी।

इसी प्रकार कंटेंट क्रिएटर्स को 90 दिनों के भीतर स्व-नियामक निकाय का हिस्सा बनना होगा। यूट्यूब या इंस्टाग्राम पर कंटेंट क्रिएटर्स को प्रकाशन से पहले अपनी सामग्री को स्वयं प्रमाणित करना होगा। इसके लिए एक या इससे अधिक कंटेंट मूल्यांकन कमेटी का गठन करना होगा, जिसके कई सदस्य पहले अपने कंटेंट को प्रमाणित करेंगे, जिसके बाद ही क्रिएटर इसे प्रकाशित कर सकता है। 

इसके अलावा भी कई तरह के नियमों के तहत अब छोटे-छोटे यूट्यूबर्स और ब्लॉग के माध्यम से करोड़ों लोगों की आवाज बनने वाले स्वतंत्र मीडियाकर्मियों के लिए काम करने को लगभग असंभव बना देने की तैयारी में जुटी सरकार इस आस में है कि इसके बाद वह प्रभावी तौर पर विपक्ष और आम लोगों की आवाज को कुचल सकती है।

वो चाहे नीट परीक्षा में धांधली का प्रश्न हो या आये दिन रेल दुर्घटनाओं की खबरें हों, या पिछले दस वर्षों में आयकर दाताओं की गाढ़ी कमाई से निर्मित लाखों करोड़ के इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे कि राजमार्ग, हवाई अड्डे या स्वंय नई संसद ही क्यों न हो, जिस पर सोशल मीडिया पर लगातार मीम बन रहे हैं, और सरकार के पास जवाब में कहने के लिए कुछ नहीं है। 

शायद यही कारण है कि प्रस्तावित बिल की प्रतियों को इतने गोपनीय ढंग से कॉर्पोरेट और चंद लोगों को वाटरमार्क करके दिया गया है। अभी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि, मौजूदा सरकार वास्तव में इस बिल को सदन में लाना चाहती है, या गुपचुप तरीके से असल में देश का मूड भांपना चाहती है? लेकिन दोनों ही सूरत में, यह तो तय है कि सरकार के पास वास्तव में इसके अलावा अपनी तेजी से बढ़ती अलोकप्रियता को रोकने का कोई दूसरा विकल्प उपलब्ध नहीं है।

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