सुसंस्कृति परिहार
सन् 1975का 26जून से लेकर 21मार्च 1977का वह काला दौर जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल को समय की जरूरत बताते हुए उस दौर में लगातार कई संविधान संशोधन किये. 40वें और 41वें संशोधन के जरिये संविधान के कई प्रावधानों को बदलने के बाद 42वां संशोधन पास किया गया।जो कतई उचित नहीं थे उस दौरान जो बुुुरी स्थितियां बनी उसका जवाब जयप्रकाश नारायण के आंदोलन ने दिया जिसके कारण तत्कालीन इंदिरा सरकार को मुंह की खानी पड़ी ।आज 46वर्ष बाद भी उसे बुरे समय के रूप में याद किया जाता है। लेकिन उस काले दौर के लिए इंदिरा गांधी ने सार्वजनिक तौर पर इसे अपनी बड़ी भूल मानकर ना केवल स्वीकार किया बल्कि उसके लिए जनता से क्षमा भी मांगी थी।इसका परिणाम ही था उनकी पुनः सत्ता में वापसी हुई पत्रकारिता जगत ने इस गलती के लिए इंदिरा से ज्यादा उनके काकस को भी जिम्मेदार ठहराया था। बहरहाल जब सत्ता में उनकी पुनर्वापसी हुई उन्होंने सबसे पहले उस कानून को जिसके तहत उन्होंने आपातकाल लगाया था उसे जटिल बना दिया ताकि फिर कभी इस तरह का दुरुपयोग ना हो सके।यह लोकतांत्रिक रूप से उठाया एक महत्वपूर्ण कदम था।
बहरहाल,आज जिस तरह के भयावह आपातकाल के दौर में हम हैं वह घोषित नहीं बल्कि अघोषित है ।अब किसान आंदोलन को ही देखिए तीन काले कानूनों की वापसी हेतु वे सात माह से संघर्षरत हैं सु को ने भी इसे उनके मौलिक अधिकार मान कर उनके आंदोलन को जायज़ मान लिया है पर सरकार और प्राकृतिक सख़्ती के बावजूद उनकी मांगे जस की तस बनी हुई है लगता है आंदोलन की कमर तोड़ने इसे लंबा खींचा जा रहा है।यह कैसी जनता की सरकार है जो देश के लगभग 50%किसानों की उपेक्षा कर रही है।
इस बावत किसान संयुक्त मोर्चा 26 जून को देशभर में राजभवनों पर धरना देंगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि वे 26 जून को अपने विरोध प्रदर्शन के दौरान काले झंडे दिखाएंगे और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ज्ञापन भेजेंगे। जिसे उन्होंने रोष पत्र नाम दिया है।कल तमाम जगह एक बार फिर किसान इकट्ठा होंगे।इससे पूर्व भी लंबे समय से चल रहे शाहीन बाग आंदोलन को कोरोना की वजह से समाप्त करना पड़ा था। लेकिन किसान कोरोनावायरस काल में भी नहीं मिले वे बिना मांगे पूर्ण हुए जाने तैयार नहीं है। उनके पांच सौ से अधिक साथी इस दौरान शहीद भी हुए । इसलिए उनमें सरकार के खिलाफ रोष निरंतर बढ़ रहा है ।यह सब भयावह है और याद दिलाता है उस आपातकाल की जब जनमेदिनी ने सरकार उखाड़ कर फेंक दी थी। किसान इसकी याद दिलाने की भी पूरी कोशिश में हैं इसीलिए उनका नारा है “खेती बचाओ लोकतंत्र बचाओ” राष्ट्रपति को लिखे पत्र में किसान संयुक्त मोर्चा ने लिखा है कि पिछले सात महीने से भारत सरकार ने किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए के लोकतंत्र की हर मर्यादा की धज्जियां उड़ाई हैं। देश की राजधानी में अपनी आवाज सुनाने के लिए आ रहे अन्नदाता का स्वागत करने के लिए इस सरकार ने हमारे रास्ते में पत्थर लगाए, सड़कें खोदीं, कीलें बिछाई, आंसू गैस छोड़ी, वाटर कैनन चलाए, झूठे मुकदमे बनाए और हमारे साथियों को जेल में बंद रखा। किसान के मन की बात सुनने की बजाय उन्हें कुर्सी के मन की बात सुनाई, बातचीत की रस्म अदायगी की, फर्जी किसान संगठनों के जरिए आंदोलन को तोड़ने की कोशिश की, आंदोलनकारी किसानों को कभी दलाल, कभी आतंकवादी, कभी खालिस्तानी, कभी परजीवी और कभी कोरोना स्प्रेडर कहा। मीडिया को डरा, धमका और लालच देकर किसान आंदोलन को बदनाम करने का अभियान चलाया गया, किसानों की आवाज उठाने वाले सोशल मीडिया एक्टिविस्ट के खिलाफ बदले की कार्यवाही करवाई गई। हमारे 500 से ज्यादा साथी इस आंदोलन में शहीद हो गए। आप ने सब कुछ देखा-सुना होगा, मगर आप चुप रहे।
पिछले सात महीने में हमने जो कुछ देखा है वो हमे आज से 46 साल पहले लादी गई इमरजेंसी की याद दिलाता है। आज सिर्फ किसान आंदोलन ही नहीं, मजदूर आंदोलन, विद्यार्थी-युवा और महिला आंदोलन, अल्पसंख्यक समाज और दलित, आदिवासी समाज के आंदोलन का भी दमन हो रहा है। इमरजेंसी की तरह आज भी अनेक सच्चे देशभक्त बिना किसी अपराध के जेलों में बंद हैं, विरोधियों का मुंह बंद रखने के लिए यूएपीए जैसे खतरनाक कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है, मीडिया पर डर का पहरा है, न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है, मानवाधिकारों का मखौल बन चुका है। बिना इमरजेंसी घोषित किए ही हर रोज लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है। ऐसे में संवैधानिक व्यवस्था के मुखिया के रूप में आपकी सबसे बड़ी जिम्मेवारी बनती है।26जून से संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले चल रहा यह ऐतिहासिक किसान आंदोलन खेती ही नहीं, देश में लोकतंत्र को बचाने का आंदोलन है।यदि इस राष्ट्रीय आंदोलन को समय रहते समाप्त नहीं किया गया तो यह तमाम दुनिया में देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुनः कलंकित करेगा हालांकि सु को द्वारा सरकार को कई दफा मनमानी करने के प्रति सावधान किया भी है जिनमें कोरोना काल के दौरान मौलिक अधिकार के हनन,कश्मीर में धारा 370हटाने,जिस तिस पर राजद्रोह कायम करने जैसे असंवैधानिक कार्य प्रमुख हैं।इस अघोषित आपातकाल को रोकने जन जन को ही उठकर अलख जगानी होगी वरना अधिनायक वाली ताकतें हमें खामोश देखकर लोकतंत्र को खत्म करने से नहीं चूकेंगी ।