प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन दिनी अमेरिका यात्रा को लेकर भारतीय मीडिया में काफी उत्साह भरी खबरें चलाई जा रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रथम अमेरिकी महिला जिल बाइडेन के लिए बहुत-सी भारतीय सौगात लेकर गए थे। यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा, व्यापार, अंतरिक्ष, तकनीकी आदि सहित कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण वार्ता और समझौते हुए। इस यात्रा को लेकर जो सबसे ख़ास और चर्चित बात सामने आई है, वह यह है कि अमेरिका के व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ भारत देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त प्रेसवार्ता की। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने नौ साल के कार्यकाल में भारत में कभी भी प्रेसवार्ता नहीं की है। संभवतः भारतीय मीडिया इसे भी आने वाले समय में प्रधानमंत्री का कोई मास्टर स्ट्रोक बता दे या किसी प्रधानमंत्री के हिस्से में एक नए विश्वरिकार्ड की बात करने लगे। मीडिया के कुछ अन्तरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर इस प्रेसवार्ता को दुर्लभ’ जैसे विशेषण से भी नवाजा गया है।
सीएनएन ने लिखा है कि, ‘2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने भारत में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित नहीं किया है। सीएनएन ने प्रेसवार्ता पर चुटकी लेते हुए लिखा है कि ‘नरेंद्र मोदी जो बाइडेन के साथ दुर्लभ प्रेस कॉन्फ्रेंस में दो सवालों के जवाब देंगे।’
खबर में कहा गया है कि, इसके लिए भी मोदी बड़ी मुश्किल से तैयार हुए थे। खबर के अनुसार, दो अज्ञात अमेरिकी अधिकारियों ने सीएनएन को बताया कि भारतीय अधिकारियों ने शुरू में व्हाइट हाउस के इस प्रस्ताव पर आपत्ति भी जताई थी कि मोदी और बाइडेन एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन आयोजित करेंगे।’
प्रेसवार्ता में वॉल स्ट्रीट जर्नल की सबरीना सिद्दीकी के सवाल, “भारत खुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहता है। लेकिन कई मानवाधिकार संस्थाओं का कहना है कि आपकी सरकार ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव किया है, आलोचकों का मुंह बंद किया है। आप व्हाइट हाउस के ईस्ट रूम में हैं, जहां कई विश्व नेताओं ने लोकतंत्र की रक्षा का संकल्प लिया। मुस्लिम समुदाय और दूसरे अल्पसंख्यकों की रक्षा और फ्री स्पीच की रक्षा के लिए आप और आपकी सरकार क्या करेगी?” जवाब देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि, ‘मुझे वास्तव में आश्चर्य होता है जब लोग ऐसा कहते हैं। भारत तो लोकतंत्र है ही। जैसा कि राष्ट्रपति बाइडन ने कहा, भारत और अमेरिका, दोनों के डीएनए में लोकतंत्र है। लोकतंत्र हमारी रगों में है। हम लोकतंत्र जीते हैं। हमारे पूर्वजों ने इस बात को शब्दों में ढाला है। ये हमारा संविधान है। हमारी सरकार लोकतंत्र के मूल्यों को ध्यान में रखकर बनाए गए संविधान पर ही चलती है। हमने सिद्ध किया है कि लोकतंत्र अच्छे नतीजे दे सकता है। हमारे यहां, जाति, उम्र, लिंग आदि पर भेदभाव की बिल्कुल भी जगह नहीं है। जब आप लोकतंत्र की बात करते हैं तब अगर मानव मूल्य न हों, मानवता न हो, मानवाधिकार न हों, तब उसको लोकतंत्र कहा ही नहीं जा सकता। जब आप लोकतंत्र को स्वीकार करते हैं, उसे जीते हैं, तो भेदभाव की कोई जगह नहीं होती। भारत सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास, इस मूलभूत सिद्धांत पर चलता है। भारत में जनता को जो लाभ मिलते हैं, वो उन सभी के लिए हैं, जो उसके हक़दार हैं। इसीलिए भारत के मूल्यों में कोई भेदभाव नहीं है। न धर्म के आधार पर, न जाति, उम्र या भूभाग के आधार पर।’
सबरीना का सीधा सवाल था प्रधानमंत्री से कि ‘आप भारत में मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों में सुधार के लिए कौन से कदम उठाना चाहते हैं, ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखा जा सके।’
इसके जवाब में पहले तो प्रधानमंत्री के जवाब से डीएनए में लोकतंत्र, फिर संविधान का सहारा लिया, उसके बाद चुनावी भाषण की तरह सबका साथ-सबका विकास आदि आदि करके चुप हो गये।
इस जवाब को सुनने के बाद सबसे पहले प्रधानमंत्री का वो बयान जेहन में आता है- “आग लगाने वाले कपड़ों से पहचान में आ जाते हैं”।
वहीं, प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी के दिए वक्तव्य के अगले ही दिन बीजेपी नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने ट्वीट कर लिखा- ‘भारत में भी कई हुसैन ओबामा हैं। वॉशिंगटन जाने के विचार से पहले हमें उनपर कार्रवाई को प्राथमिकता देनी चाहिए।’
दरअसल, अमेरिकी के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 22 जून को सीएनएन के साथ बातचीत में कहा कि पीएम मोदी के साथ बैठक के दौरान राष्ट्रपति जो बाइडेन को बहुसंख्यक हिंदू भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के मुद्दे पर बात करनी चाहिए। ओबामा ने कहा कि अगर वह राष्ट्रपति होते तो पीएम मोदी से कहते कि भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा नहीं होती है तो इसकी प्रबल संभावना होगी कि भारत में बंटवारे का संघर्ष शुरू हो जाए।
इसके बाद पत्रकार रोहिणी सिंह ने ओबामा के इंटरव्यू पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पूछा कि, ‘क्या भावनाओं को आहत करने के लिए ओबामा के खिलाफ गुवाहाटी में अभी तक एफआईआर दर्ज की गई है?’
रोहिणी सिंह के इस ट्वीट का हिमंत बिस्वा सरमा ने बराक की जगह ‘हुसैन ओबामा’ लिख कर जवाब दिया।
इस तरह से प्रधानमंत्री की बातों को हिमंत बिस्वा सरमा ने झूठा साबित कर दिया!
सरमा के इस ट्वीट के बाद कांग्रेस की नेता और प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने चुटकी लेते हुए ट्वीट किया- ‘मेरे मित्र बराक अब हुसैन ओबामा हो गए! वास्तव में हिमंत ने उसका उत्तर दिया है जो पीएम मोदी से व्हाइट हाउस में पूछा गया था। उनका इशारा- राष्ट्रपति ओबामा के एक मुस्लिम होने पर और भारतीय मुसलमानों को एक पाठ पढ़ाए जाने की जरूरत के बारे में- प्रश्न का आधार था। इस पर प्रधानमंत्री, विदेश मंत्रालय और भारत सरकार का क्या रुख है?’
सवाल यहां सिर्फ हिमंत बिस्वा सरमा का नहीं, बीजेपी में ऐसे तमाम नेता और उनके नफरती वक्तव्य, भाषण तमाम जगहों पर मौजूद हैं। इतना ही नहीं दिल्ली में संसद भवन से सटे हुए जंतर-मंतर पर हिन्दू संगठनों ने मुसलमानों के खिलाफ घृणित नारे लगाये। वहीं, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री मज़ार जिहाद की बात करते हैं।
साल 2019 में झारखंड में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए सीएए के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों के लिए यह बात कही थी। वहीं गोरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग हो या फिर किसी समुदाय विशेष के खान-पान को लेकर भी इनके कैबिनेट मंत्री और पार्टी नेता जब तब विवादित बयान देते रहते रहे हैं। ऐसी बहुत सी बाते और घटनाएं हैं, जिन पर सवाल उठाये जा सकते हैं। लेकिन सवालों का सामना करने का साहस होना चाहिए।
यह भी गौरतलब है कि मोदी की इस अमेरिकी यात्रा के दौरान डेमोक्रेटिक पार्टी के कई सांसदों ने राष्ट्रपति बाइडेन से भारत में धार्मिक असहिष्णुता, प्रेस की आजादी, इंटरनेट पर प्रतिबंध और नागरिक समाज समूहों को निशाना बनाए जाने के मुद्दे मोदी के साथ बातचीत में उठाने का दबाव बनाया, वहीं अमेरिका के 75 सांसदों ने राष्ट्रपति बाइडेन को चिट्ठी लिख प्रधानमंत्री का भाषण बहिष्कार करने की बात कही।
एक और महत्वपूर्ण घटना प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान यह हुई कि ह्यूमन राइट्स मेजरमेंट इनीशिएटिव (एचआरएमआइ) की वार्षिक रिपोर्ट में इस बार 2023 की रिपोर्ट में भारत में मानवाधिकार की स्थिति को बेहद ख़राब बताया गया। इस रिपोर्ट में कहा है कि, ‘जीवन की गुणवत्ता से संबंधित अधिकारों, राज्य द्वारा नागरिकों को दी जाने वाली सुरक्षा और नागरिक तथा राजनीतिक स्वतंत्रता के मामले में भारत का प्रदर्शन नमूना संग्रह में शामिल अन्य देशों के मुकाबले औसत से भी खराब है।’
इन सभी मुद्दों पर यदि सवाल पूछे जाते और प्रधानमंत्री उनका सिलसिलेवार जवाब देते तो इस ‘अनोखे और दुर्लभ’ प्रेस कांफ्रेंस की कुछ सार्थकता होती। लेकिन भारत में ‘मुख्यधारा’ की मीडिया पर चर्चा रहा श्रीमती बाइडेन द्वारा रात्रि भोज का निमंत्रण, आयोजन और भव्य स्वागत!
यह इसलिए भी चर्चा का विषय है, क्योंकि 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से बीते नौ सालों में मोदी ने कोई प्रेसवार्ता नहीं की है। और अब वे ऐसे वक्त में अमेरिका की यात्रा पर गये हैं जब इधर देश में भाजपा शासित पूर्वोत्तर का राज्य मणिपुर जातीय हिंसा के कारण बीते पचास दिनों से अशांत है और बच्चों-महिलाओं सहित अब तक सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। सैकड़ों गांव, चर्च जल कर राख हो चुके हैं। ऐसे में अमेरिका में प्रेस कॉन्फ्रेंस की जब ख़बर आई तो पहले लगा कि वहां देशी-विदेशी पत्रकारों को उनसे कई सवाल पूछने का अवसर मिलेगा, लेकिन शाम होते-होते खबर आई कि, वे केवल दो ही सवाल लेंगे।
बेशक प्रधानमंत्री के इस अमेरिकी दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच जो आपसी समझौते हुए उनका महत्त्व है और वतर्मान वैश्विक राजनीति में इसका प्रभाव पड़ेगा। खासकर, दक्षिण एशिया में जहां चीन और पाकिस्तान जैसे भारत के पड़ोसी देशों की राजनीति और रणनीति पर भी इसका असर होगा। वहीं देश में भी सरकार इस यात्रा के राजनैतिक फायदे गिनाकर लाभ उठाएगी। लेकिन सवाल जो अनुत्तरित रह गये उनका जवाब कब मिलेगा यही सवाल है…।