इंदौर के बेलेश्वर महादेव मंदिर में हुए बावड़ी कांड में मदद करने वाले कुछ ऐसे लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने पर्दे के पीछे से मदद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें पोस्टमॉर्टम डिपार्टमेंट से लेकर निजी एम्बुलेंस के कर्मचारी भी शामिल थे। कइयों ने तो अपनी जेब से पैसा लगा कर पीड़ितों की मदद की। मेडिकल डिपार्टमेंट के अधिकारियों व डॉक्टरों ने उन्हें शासन से उक्त खर्चों की वापसी के लिए बिल भी जमा कराने की बात की। लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया।
बेलेश्वर मंदिर में बावड़ी से देर रात से अलसुबह तक शवों को निकालने का सिलसिला जारी था। शवों के पोस्टमॉर्टम गुरुवार शाम से ही शुरू कर दिए गए थे। जिला अस्पताल में पोस्टमॉर्टम डिपार्टमेंट में शवों की चीरफाड़ करने वाले कर्मचारी कमल से डॉक्टरों ने संपर्क किया और एमवाय जाने के आदेश दिए। कमल ने इस दौरान जिला अस्पताल से ड्यूटी छोड़कर वहां के कर्मचारी विजय और आकाश के साथ मिलकर गुरुवार रात से लेकर शुक्रवार दोपहर तक करीब 36 शवों के पोस्टमॉर्टम में मदद की। यहां से फ्री होने के बाद वह फिर से जिला अस्पताल में ड्यूटी देने पहुंच गया था।
रात दो बजे कॉल आया, फिर भेजी 50 एम्बुलेंस
जिला अस्पताल के एंबुलेंसकर्मी रामबहादुर वर्मा ने बताया कि रात में करीब दो बजे के लगभग उन्हें सिविल सर्जन प्रदीप गोयल का कॉल आया। उन्होंने बताया कि शवों को अस्पताल से उनके घर तक पहुंचाने के लिए निजी एम्बुलेंस की आवश्यकता पड़ेगी। रामबहादुर ने पूछा कि कितनी एम्बुलेंस लगेगी। गोयल ने 30 से ज्यादा शव उस वक्त अस्पताल में होने की जानकारी दी। एम्बुलेंस संचालक वर्मा ने एम्बुलेंस यूनियन के अध्यक्ष पंकज नामदेव काे कॉल किया और बताया कि इस तरह के हालात में उन्हें मदद के लिए आगे आना चाहिए। जिसके बाद रवि वर्मा, इमरान खान, अनिल गौर और विनोद राठौर के साथ मिलकर करीब 50 एम्बुलेंस एमवाय अस्पताल में खड़ी करवाई गई। सुबह सेवा समिति की एम्बुलेंस भी वहां पहुंची। लेकिन निजी एम्बुलेंस कर्मियों ने अपनी ही गाड़ी से शवों को ले जाने की बात कही और सभी को पटेल नगर पहुंचाया।
जोबट और भीकनगांव के लिए खुद दिए रुपए
बावड़ी में गिरकर मरने वाले लोगो में दो लोग जोबट और भीकनगांव के थे। दोनों के शव वहीं पहुंचाए जाना था। एम्बुलेंस संचालकों ने अपने पास से रुपए देकर गाड़ियों में पेट्रोल डलवाया और शवों को भेजा। मामले में एम्बुलेंस संचालकों से डॉक्टरों ने सभी शवों को एमवाय अस्पताल से घर तक पहुंचाने का खर्च शासन से दिलवाने की बात कही। लेकिन एम्बुलेंस संचालकों ने मानवीय आधार पर बिल के रुपए लेने से इनकार कर दिया।
दो दिन तक नींद नही आई
एम्बुलेंस संचालक पंकज नामदेव बताते है कि रात में ही उन्होंने सभी गाड़ियों के ड्राइवरों को कॉल कर बुला लिया था। वह खुद भी एमवाय अस्पताल पहुंच गए थे। यहां परिजनों के हालत देखते रहे। लोगों से बातचीत कर उनकी आपबीती सुनी। लेकिन उसके बाद दो दिनों तक पोस्टमॉर्टम डिपार्टमेंट और पटेल नगर का मंजर उनकी आंखों के सामने घूमता रहा।