अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

पूरे नहीं हुए भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में ‘अन्नदाताओं’ से किए गए वादे

Share

नई दिल्ली: पंजाब और हरियाणा में गुस्साए किसानों द्वारा सत्तारूढ़ भाजपा और उसके सहयोगी पार्टियों के उम्मीदवारों को खदेड़ने की नई रिपोर्ट और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। सवाल यह उठता है कि किसान इतने गुस्से में क्यों हैं? यह गुस्सा केवल उन पर हुए तब के दमन के बारे में नहीं है जब वे निरस्त किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन करना चाहते थे, या एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के लिए कानूनी गारंटी की मांग कर रहे थे। यह गुस्सा इससे कहीं अधिक है।

आइए, नागरिक समाज संगठनों, यूनियनों, जन-आंदोलनों, और चिंतित नागरिक के एक समूह द्वारा बनाए गए वित्तीय जवाबदेही नेटवर्क इंडिया (एफएएन इंडिया) द्वारा तैयार किए गए ‘किसान रिपोर्ट कार्ड’ में नरेंद्र मोदी सरकार के 10 वर्षों में किसानों की दुर्दशा और कुछ टूटे हुए वादों पर नजर डालते हैं।

याद करें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में वादा किया था कि सरकार एमएस स्वामीनाथन आयोग द्वारा प्रस्तावित सी2+50 फीसदी फॉर्मूले के अनुसार उत्पादन की व्यापक लागत का कम से कम डेढ़ गुना एमएसपी पर किसानों की उपज खरीदेगी।

तब 2016 में, मोदी सरकार ने फिर से “2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने” का वादा किया था। अब आइए मोदी के “2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने” के वादे की जमीनी हकीकत पर नज़र डालते हैं।

“2021 में कृषि से जुड़े परिवारों की आकलन करने वाले सर्वेक्षण के 77वें दौर से पता चलता है कि 2018-19 में किसान परिवारों की अनुमानित मासिक आय नाममात्र रही जो केवल 10,218 रुपये प्रति माह थी। यह प्रति माह 22,610 रुपये के अनुमानित लक्ष्य के कहीं भी नजदीक नहीं है,’ यह तथ्य एफएएन-इंडिया रिपोर्ट कार्ड में दिया गया है, जो मुख्य रूप से सरकारी दस्तावेजों और उपलब्ध आंकड़ों पर आधारित है।

रिपोर्ट में बाजार हस्तक्षेप योजना और मूल्य समर्थन (एमआईएस-पीएसएस) पर सरकार की चुप्पी पर भी ध्यान दिया गया है, जो देश में एमएसपी-आधारित खरीद सुनिश्चित करती है।

रिपोर्ट कार्ड में कहा गया है कि, “पिछले दो वर्षों में इस योजना में भारी कटौती देखी गई है। बजट अनुमान के अनुसार, 2022-23 में इस योजना के मद में आवंटन 1,500 करोड़ रुपये से घटकर क्रमशः 2023-24 और 2024-25 में 0.01 करोड़ रुपये हो गया है।”

इस बात पर रोशनी डालते हुए रिपोर्ट कार्ड में कहा गया है कि 7 जून, 2023 को घोषित खरीफ सीजन 2023-24 के लिए एमएसपी न तो “उचित और न ही लाभकारी” है, किसानों की आय दोगुनी करने’ के बजाय, अनुचित एमएसपी के साथ बढ़ती इनपुट लागत किसानों के बड़े वर्गों को प्रभावित कर रही है। विशेषकर इसने छोटे, सीमांत, मध्यम किसानों के साथ-साथ काश्तकारों को भी कर्जदार बना दिया है।

साथ ही, मोदी सरकार ने दावा किया है कि कर्जदार किसानों का प्रतिशत 2013 में 52 फीसदी से घटकर 2019 में 50.2 फीसदी हो गया है।

आइएअब सच्चाई पर एक नजर डालते हैं

हाल ही में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, नरेंद्र मोदी के शासनकाल में 2014 से 2022 तक 1,00,474 किसानों ने आत्महत्या की है।

“ये आत्महत्याएं इन नौ वर्षों में प्रति दिन लगभग 30 आत्महत्याओं के बराबर है। खोखली बयानबाजी, विफल योजनाएं और अपर्याप्त आवंटन हमारे देश के “अन्नदाताओं” को गहरी निराशा की तरफ धकेल रहे हैं। रिपोर्ट कार्ड में कहा गया है कि इस शासन के तहत किसान आत्महत्याओं में भयावह वृद्धि व्यवस्थित उपेक्षा का लक्षण है।

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा दिए गए सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मोदी शासन के दूसरे कार्यकाल यानी 2019-2024 में कुल किसान आत्महत्याएं 10,281 से बढ़कर 11,290 हो गईं थी।

“इसके भीतर, कृषि मजदूरों के बीच आत्महत्याओं की संख्या में वृद्धि हुई है जो 4,324 से 6,083 यानी 41 फीसदी की तीव्र वृद्धि हुई लगती है। रिपोर्ट कार्ड में कहा गया है कि विदर्भ और मराठवाड़ा के इलाकों के साथ महाराष्ट्र में आत्महत्याओं की फिर से सबसे खराब स्थिति देखी गई है।

मोदी शासन द्वारा किए गए अन्य वादों में, भारतीय खाद्य निगम में सुधार लाना, 2022-23 तक कृषि निर्यात को 100 बिलियन डॉलर तक ले जाना, जल्दी खराब होने वाली कृषि उपज के लिए एक कृषि-रेल नेटवर्क स्थापित करना शामिल है (इसके बजाय हमने देखा कि पिछले 5 वर्षों में प्रधानमंत्री ने वंदे भारत ट्रेनों को अधिक हरी झंडी दिखाई है), जबकि छोटे और सीमांत किसानों के लिए 3,000 रुपये की पेंशन का वादा था।

एफएएन-इंडिया के रियलिटी-चेक से पता चलता है कि कृषि के साथ-साथ किसानों के कल्याण पर सार्वजनिक व्यय (कुल बजट व्यय के संबंध में) लगातार गिर रहा है।

रिपोर्ट कार्ड में कहा गया है कि, “2014-15 और 2021-22 के बीच वास्तविक मजदूरी की वृद्धि दर को देखते हुए, जो कि कृषि श्रम सहित सभी क्षेत्रों में मजदूरी प्रति वर्ष 1 फीसदी से नीचे रही है। इसका प्रभाव चिंताजनक रूप से कम ग्रामीण मांग में स्पष्ट है, जो एफएमसीजी बिक्री का लगभग 36 फीसदी है।”

जहां तक ग्रामीण नौकरी गारंटी योजना, मनरेगा की बात है, जो ग्रामीण भारत के लिए एक जीवन रेखा रही है, खासकर महामारी के दौरान, मजदूरी के लिए आधार-आधारित भुगतान प्रणाली की शुरूआत ने 57 फीसदी श्रमिकों को प्रभावित किया है और यह एक तरह से मजदूरों का रोजगार से “बहिष्कार” साबित हुआ है।

रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक, “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के लिए आवंटन, जो संकट के ऐसे समय में जीवन रेखा के रूप में काम करता है, पिछले कुछ वर्षों में इसके आवंटन में कमी देखी जा रही है। यह वित्त वर्ष 2014-15 में कुल बजट के 1.85 फीसदी से घटकर वित्त वर्ष 2023-24 में मात्र 1.33 फीसदी रह गया है, जो एक ऐतिहासिक तौर पर काफी निचला स्तर है। पिछले वर्ष के 60,000 करोड़ रुपये के आवंटन में पिछले वर्ष की तुलना में 33 फीसदी की भारी कमी दर्ज की गई है और यह कुल सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.198 फीसदी ही बैठता है। 2023-24 के संशोधित अनुमान में यह 86,000 करोड़ रुपये था और 2024-25 के अनुमान में इसे बढ़ाया नहीं गया गया है।”

इन सब में यह भी जुड़ जाता है कि, केंद्र पर “निर्देशों का अनुपालन न करने” के आधार पर पश्चिम बंगाल का 7,000 करोड़ रुपये बकाया है। इस राशि में 2,800 करोड़ रुपये की वेतन देनदारियां शामिल हैं। सवाल यह उठता है कि, ग़रीब मज़दूरों को सज़ा क्यों दी जाए और उनकी मज़दूरी क्यों छीनी जाए?

बहुप्रचारित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर, रिपोर्ट कार्ड कहता है कि 14,600 करोड़ रुपये का आवंटन मुख्य रूप से किसानों की नहीं बल्कि बीमा कंपनियों की जेब में गया है। उदाहरण के लिए, “रबी 2022-23 के दौरान 7.8 लाख किसानों को दावों में केवल 3,878 करोड़ रुपये की छोटी सी राशि का ही भुगतान किया गया था।”

किसानों को दिए जाने वाले कर्ज़ पर, रिपोर्ट कार्ड में कहा गया है कि ग्रामीण शाखाओं की तुलना में बैंकों की शहरी और महानगरीय शाखाओं (कुल ऋण का लगभग 1/3) के माध्यम से अधिक से अधिक कर्ज़ दिए जा रहे हैं।

“जैसा कि यहां स्वीकार किया गया है, सरकार ने अपने 2019 के घोषणापत्र में किए गए वादे के अनुसार किसानों को 1 रुपए लाख का तक कोई शून्य प्रतिशत ब्याज कर्ज़ नहीं दिया है।”

जलवायु परिवर्तन और खराब मौसम की स्थिति के कारण कृषि अर्थव्यवस्था बर्बाद हो रही है, किसान बढ़ते वित्तीय बोझ, इनपुट लागत, बढ़ती महंगाई/मुद्रास्फीति आदि के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। यदि भारत के गांवों में “हमें मौत के तांडव में सुधार लाना है” तो रिपोर्ट कार्ड नीतियों में बुनियादी बदलाव की मांग करता है, जो आम चुनाव अभियान के दौरान कृषक समुदाय के बढ़ते गुस्से को भी स्पष्ट करता है।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें