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 *सार्वजनिक क्षेत्र – राष्ट्र की जीवन रेखा।*

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*एआईबीईए द्वारा बैंक राष्ट्रीयकरण की 52 वीं वर्षगांठ पर जुलाई 2021 में आयोजित वेबिनार से*

*पद्मश्री कुमार केतकर – पत्रकार और सांसद*

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1969 में दुनिया पुरी तरह से अलग थी और किसी को भी यह एहसास नहीं हुआ होगा कि 50 साल भारत सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं को खत्म करने की कोशिश करेगी।

1962 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण करने की मांग को लेकर दिल्ली में एक विशाल जुलूस निकला था। 1964 में पंडित नेहरू के निधन के तुरंत बाद दक्षिण पंथी दल सक्रिय हो गए। 1962 में चीन के साथ और 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत को आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ा। निजी क्षेत्र को और अधिक बढ़ावा देने के पक्ष में आवाज उठने लगी।

1960 के दशक में विश्व बैंक भी दक्षिणपंथी नीतियों के समर्थन में सरकारों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा था। श्रीमती इंदिरा गांधी पर भी दबाव था। बेरोज़गारी और  ग़रीबी बढ़ रही थी, इसलिए इंदिरा गांधी ने अहमदाबाद और बैंगलोर में हुए कांग्रेस पार्टी के सम्मेलनों में आर्थिक नीतियों में बदलाव की बात रखी। राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद, कांग्रेस में दक्षिणपंथियों ने श्रीमती इंदिरा गांधी को हटाने के लिए श्री संजीवा रेड्डी को राष्ट्रपति बनाने की कोशिश की लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी के समर्थन से श्री वी.वी. गिरि राष्ट्रपति बने।

19 जुलाई 1969 को 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।

अंतरराष्ट्रीय पूंजी के समर्थन से जनसंघ (अभी की बीजेपी), स्वतंत्र पार्टी, दक्षिणपंथी राजनेताओं, उद्योगपतियों ने उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप से बैंकों के राष्ट्रीयकरण को विफल करने की कोशिश की। इंदिरा गांधी विचलित नहीं हुई और उन्होंने खामियों को दूर किया, बैंकों के राष्ट्रीयकरण के अध्यादेश को फिर से संसद में पेश किया।

उसकी सफलता और देश के विकास में उसके महत्व को समझते हुए इंदिरा जी ने 1980 में 6 और बैंकों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के दायरे में लाया।

आज का मध्यमवर्ग राष्ट्रीयकृत बैंकों का बहुत ॠणी है जिसकी मदद ने उन्हें इस स्तर तक पहुंचाया हैं। बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में फैले हुए हैं। प्राथमिकता क्षेत्र को ॠण और कृषि ॠण सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों द्वारा ही दिए जाते हैं। बैंकों के राष्ट्रीयकरण ने ग्रामीण क्षेत्र में नई समृद्धि लाई और ग़रीबी को कम करने में मदद की। 1969 में मध्यमवर्ग की आबादी लगभग 15 प्रतिशत थी और अब यह लगभग 40 प्रतिशत है तो यह बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कारण है। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बिना यह समृद्धि मध्यमवर्ग के पास नहीं आती। वही मध्यमवर्ग आज वर्तमान घोर दक्षिणपंथी सरकार का समर्थन कर रहा है। अमेरिका में 40 लाख भारतीय है और वे भाजपा जैसी दक्षिणपंथी पार्टी का समर्थन और फंडिंग कर रहे हैं। यही कारण है कि सरकार की नीतियां सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों के खिलाफ है।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से भारत की संप्रभुता और देश के समग्र विकास में अवनति आएगी।

अगर हम निर्णायक लड़ाई लड़ें तो हम सरकार को आगे बढ़ने से रोक सकते हैं, जैसा कि किसानों ने कृषि कानूनों को लागू करने से रोकने के लिए 8 महीने लंबे आंदोलन द्वारा किया है। एआईबीईए को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व करना चाहिए।

संकलन एवं सम्पादन –

विजय दलाल संयोजक मेहनतकश 

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