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बेकसूर को सज़ा, अफ़सर तक ख़ता के लिए आज़ाद

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पुष्पा गुप्ता 

       सरकार जब फेक न्यूज फैलाकर लोगों को गुमराह करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई कर रही है तो फिर उसे भी झूठे मामले बनाकर बेकसूरों की जिंदगी खराब करने वाले पुलिस-प्रशासन तंत्र के अधिकारियों के खिलाफ भी कठोर दंडात्मक कार्रवाई करते हुए उनकी निजी सम्पत्ति से पीड़ित पक्ष को पर्याप्त मुआवजा देना चाहिए। 

       आज जब पेड़ों तक की उम्र का अंदाजा लगा कर उनसे मिलने वाले सभी लाभों का आकलन कर उसका मूल्यांकन किया जा रहा है तो फिर एक निरपराध मनुष्य को जेल में डाल देने से उसके घर-परिवार तथा देश व समाज को होने वाली हानि तथा उसके द्वारा भोगी गई जेल यातना का मूल्यांकन कर उसका भुगतान क्यों नहीं किया जाना चाहिए?

      आधुनिक वैज्ञानिक युग में पर्याप्त संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद भी मामलों की छानबीन वैज्ञानिक व सटीक तरीके से कम से कम समय में क्यों नहीं की जाती? 

यदि दुष्कर्म के झूठे केस में फंसाकर 666 दिन जेल काटने के बाद बरी होकर लौटे युवक ने मध्य प्रदेश शासन-प्रशासन के खिलाफ क्षतिपूर्ति के लिए 10 हजार 6 करोड़ 2 लाख रुपए का दावा ठोक दिया है तो बिल्कुल ठीक किया है और उसे इसका भुगतान किया ही जाना चाहिए क्योंकि अपने पुलिस-प्रशासन तंत्र को दुरुस्त रखने और जनहित के संरक्षण की जिम्मेदारी सरकार की ही होती है।

        प्राप्त सूचना के अनुसार गैंगरेप के एक मामले में 666 दिन जेल में बिताने के बाद लगभग दो महीने पहले बरी हुए घोड़ाखेड़ा निवासी एक आदिवासी दिहाड़ी मजदूर कांतिलाल भील उर्फ कांतू (30) ने मध्य प्रदेश के रतलाम जिले की एक अदालत में याचिका दायर कर झूठा फंसाने के लिए शासन-प्रशासन के खिलाफ क्षतिपूर्ति के लिए 10 हजार करोड़ से अधिक का दावा ठोक दिया है। 

      कांतिलाल को 2018 में रतलाम जिले की बाजना पुलिस ने दो अन्य लोगों के साथ दो बच्चों वाली एक महिला से गैंगरेप करने का मामला दर्ज किया था। 

इस आदिवासी युवक का आरोप है कि पुलिस ने उसे जबरदस्ती झूठे केस में फंसा दिया। पांच साल हो गए, उसे परेशान होते हुए। तीन साल तक पुलिस परेशान करती रही। बेगुनाह होने के बाद भी पुलिस ने उसे सामूहिक दुष्कर्म के झूठे मामले में फंसाया और दो साल तक उसे जेल में रहना पड़ा। 

      मुताबिक, उसे पुलिस ने सामूहिक दुष्कर्म के एक ऐसे मामले में आरोपी बनाया जिससे उसका कोई लेना-देना ही नहीं था। यह ग़लती जिसकी है, उसका तो कुछ भी नहीं बिगड़ा लेकिन उसने जेल में कई तरह की यातनाएं सही हैं और परिवार भी सड़क पर आ गया है।

      उसकी घरगृहस्थी, बच्चों की परवरिश और पढ़ाई, परिवार, सामाजिक प्रतिष्ठा सबकुछ बर्बाद हो गया। इसीलिए उसने अपने वकील के माध्यम से हर्जाने का यह दावा किया है।

अब जब उसे रतलाम जिला एवं सत्र न्यायालय ने दोषमुक्त करार दिया है तो उसके अभिभाषक विजय सिंह यादव ने राज्य शासन और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ 10 हजार छह करोड़ दो लाख रुपये का क्षतिपूर्ति दावा इसी न्यायालय में पेश किया है।

       कांतिलाल के वकील विजय सिंह यादव का कहना है कि मानव जीवन का कोई मूल्य तय नहीं किया जा सकता है। पुलिस और राज्य सरकार की वजह से कांतु का जीवन बर्बाद हो गया। उसे बेगुनाह होने के बावजूद दो साल जेल में रहकर प्रताड़ना सहनी पड़ी।

        उसके परिवार में बुजुर्ग मां, पत्नी और तीन बच्चे हैं। सभी के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उसी पर है। कांतिलाल के दो साल तक जेल में रहने के कारण उसका परिवार भुखमरी की स्थिति में आ गया। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई छूट गई।

       समाज में वापस जाने के लिए और रोजगार के लिए उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसी वजह से दावा लगाया गया है। वे समाज को यह भी संदेश देना चाहते हैं कि महिलाएं अपने अधिकारों का दुरुपयोग न करें।

इस पूरे मामले की सुनवाई अब आगामी 10 जनवरी को होगी।

    बहरहाल, न्यायालय इस मामले में क्या फैसला देता है, यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन इतना अवश्य विचारणीय है कि राजनीतिक, निजी या फिर अन्य कारणों से किसी भी नागरिक को ऐसे अपराध के लिए जेल में बंद करना किसी भी दृष्टि से न्यायोचित नहीं है जो उसने कभी किया ही नहीं।

       ऐसा करने के लिए जिम्मेदार लोगों का कुछ भी नहीं बिगड़ता, यह और भी अधिक ग़लत है। जबकि उनके कारण आरोपी ही नहीं बल्कि सरकारी तंत्र तथा न्यायालय को भी परेशानी उठानी पड़ती है।

       अतः अब समय आ गया है जब इस प्रवृत्ति पर न सिर्फ रोक लगनी चाहिए बल्कि इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति को दोषी पाये जाने पर उसके विरुद्ध उचित दंडात्मक कार्रवाई भी की जानी चाहिए।

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