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*वैश्विक फलक : निरंकुशता को और बढ़ाएगी पुतिन- किमजोंग की दोस्ती*

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     ~ पुष्पा गुप्ता

   पुतिन और किम जोंगउन की ताज़ा मुलाक़ात वाली ख़बर से 80 साल के जो बाइडेन की भृकुटियां तन गई हैं। पुतिन उत्तर कोरिया जाएंगे, और अब यह देश रूसी सैन्य सहकार के मामले में परोक्ष नहीं, प्रत्यक्ष दिखेगा। किम कोई चार साल से व्हाइट हाउस की नज़रों से उपेक्षित चल रहे थे। वजह, पिछले शासन में ट्रंप से किम जोंग उन का याराना मानकर चलें। 

       उत्तर और दक्षिण कोरिया के मुहाने पर अवस्थित पनमुनजोम के फ्रीडम हाउस में ट्रंप और किम तीसरी बार 30 जून, 2019 को मिले थे। उससे पहले जून, 2018 में सिंगापुर, और फरवरी, 2019 में हनोई में ट्रंप और किम की मुलाक़ातें हुई थीं। उन तीन मुलाक़ातों में परमाणु मामलों से लेकर सीमा विवाद के हल के तमाम वादे हुए थे। किम को अमेरिका आने के वास्ते ट्रंप ने आमंत्रित किया था। कुर्सी गई, तो बात आई-गई हो गई। अब व्हाइट हाउस के रणनीतिकार अपनी चूक पर अफ़सोस प्रकट कर रहे हैं।

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने पत्रकारों को वोस्तोचनी कॉस्मोड्रोम पर बुधवार को हुई इस हाई प्रोफाइल मुलाकात की जानकारी साझा करते हुए बताया कि पुतिन ने एक सर्वोत्कृष्ट रूसी राइफल किम को थमाई, बदले में किम ने भी पुतिन को उत्तर कोरियाई राइफल उपहार स्वरूप भेंट में दी। राइफलों के आदान-प्रदान के हवाले से पूरी दुनिया को संदेश देना काफी है कि रूस और उत्तर कोरिया आने वाले समय में क्या करेंगे।

   रूस को ऐसे थर्ड कंट्री की ज़रूरत है, जहां से वह हथियार मंगाये, और यूक्रेन में उसका इस्तेमाल करे। उत्तर कोरिया के पास हथियारों का ज़खीरा पड़ा है। व्हाइट हाउस ने ललकारा, ‘ऐसा हुआ, तो अंज़ाम भुगतने को तैयार रहें।’ तत्काल तो यही लगता है कि उत्तर कोरिया को एक बार फिर प्रतिबंध भुगतने पड़ सकते हैं। दूसरा, पुतिन की तरह किम जोंग उन भी मोस्ट वांटेड युद्ध अपराधी घोषित कर दिये जाएं।

     लेकिन उत्तर कोरिया को यह सब करके क्या मिलना है? रक्षा मामलों के जानकार और ग्लोबल टाइम्स के एडिटर इन चीफ रह चुके हू शीचिन बताते हैं कि यह सारा क़िस्सा रॉकेट टेक्नोलॉजी के स्थानांतरण पर टिका हुआ है। उत्तर कोरिया को बैलेस्टिक मिसाइल प्राविधिक को समुन्नत करने के लिए सेटेलाइट टेक्नोलॉजी चाहिए, जो इस समय केवल रूस दे सकता है। दरअसल, विगत चार महीनों में उत्तर कोरिया ने सेना के वास्ते जो दो ‘एरियल रिकॉनिसन्स राकेट टेस्ट’ किये, वो फुस्स हो गये थे।

      इस विफल परीक्षण के आधार पर पेंटागन ने निष्कर्ष निकाल लिया था कि उत्तर कोरिया बैलेस्टिक मिसाइल तकनीक में अब भी ‘मैच्योर’ नहीं हो पाया है।

      लेकिन, इन चार महीनों में फ्योंगयांग और मास्को के बीच कूटनीतिक गठजोड़ की जो कोशिशें चल रही थीं, उससे अमेरिकी खुफिया तंत्र अनजान था। पुतिन ने ऐसा ट्रंप कार्ड खेला है, जो व्हाइट हाउस के लिए अप्रत्याशित था। मुलाक़ात की जगह भी बड़ा सिंबॉलिक है। रूसी सेटेलाइट लांचिंग सेंटर वोस्तोचनी कॉस्मोड्रोम पर उत्तर कोरिया के शासन प्रमुख से मिलने का मतलब यह है कि जो कुछ तकनीक किम को चाहिए, पुतिन उपलब्ध करायेंगे। इससे घबराहट दक्षिण कोरिया से लेकर हिंद-प्रशांत के उन तमाम देशों में भी है, जिन्हें हम अमेरिकी क्लब का सदस्य मानते हैं।

एक प्रसिद्ध कहावत है कि ‘नंग बड़ा या परमेश्वर?’ अब अमेरिका चाहे इस पृथ्वी का परमेश्वर होने की ग़लतफहमी पाल ले, मगर किसी के मुंह लगने से कटता रहा है, तो वह देश है उत्तर कोरिया। बिल्कुल नंग-धड़ंग। उपग्रह प्रक्षेपित करने वाली ‘सेटेलाइट लांच टेक्नोलॉजी’ में जो देश आगे रहे हैं, उनके लिए बैलेस्टिक मिसाइल का निर्माण बाधा रहित माना जाता है। आइसीबीएम (इंटरकांटिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल) के निर्माण में जिस लांग रेंज प्रोजेक्शन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है, उत्तर कोरियाई अंतरिक्ष विज्ञानी वही रूस से हासिल करना चाहते हैं।

     10 हज़ार 300 किलोमीटर पर जो दूरी उत्तर कोरिया और अमेरिका की रही है, वह लंबे समय से चली नूराकुश्ती के लिए अब तक आसान थी। मगर, जिस दिन उत्तर कोरिया ने 11 हज़ार किलोमीटर तक भेदने वाली रूसी ‘तोपोल-एम मिसाइल’ तकनीक हासिल कर ली, अमेरिका की नींद उड़ा देने के लिए काफ़ी होगी। पुतिन का यही प्रयास है कि व्हाइट हाउस की नींद हर लो। तोपोल-एम मिसाइल तकनीक यदि फ्योंगयांग ने हासिल कर ली, तो समझिए कि अमेरिकी क्लब के तमाम देश उत्तर कोरिया की ज़द में होंगे। यह एक ख़तरनाक स्थिति को दावत देने जैसा है, जिसके जिम्मेदार कोई और नहीं, स्वयं पुतिन होंगे।

      पुतिन से किम जोंग उन की मुलाक़ात तय थी, लेकिन उसकी टाइमिंग जानबूझकर जी-20 की शिखर बैठक के बाद रखी गई। वाशिंगटन में रूसी राजदूत अनातोली अंतोनोव ने अमेरिकी घुड़की पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि प्रतिबंध लगाते रहो, रूसी फोबिया जितनी बढ़ानी है बढ़ाओ, हमें फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। एंबेसडर अनातोली ने कटाक्ष करते हुए कहा, ‘दरअसल, अमेरिका प्रतिबंध नामक अपने इस पुराने ट्रिक से ख़ु़द ही हांफने लगा है।’ ठीक से देखा जाए, तो यूक्रेन युद्ध, रोमन-पर्शियन वार की तरह 681 साल नहीं खिंचने वाला, यह आने वाले कुछ वर्षों में ही निर्णायक रूप ले लेगा।

       नवंबर, 2024 में अमेरिका में आम चुनाव हैं। जो बाइडन भी समझते हैं कि उन्होंने यूक्रेन जैसे मोर्चे को खोलकर जोखिम को दावत दे रखी है।

पुतिन का किम जोंग उन की धरती पर बतौर राजकीय मेहमान जाना भी युगांतरकारी होगा। यूक्रेन युद्ध में विनाश के कारण अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने जब से उन्हें वार क्रिमिनल घोषित किया है, पुतिन ने देश से बाहर पांव नहीं रखा है। चार वर्षों में प्रेसिडेंट पुतिन की उत्तर कोरियाई सुप्रीम लीडर किम जोंग उन से दूसरी मुलाक़ात है। संयुक्त राष्ट्र ने पहले से प्रस्ताव दे रखा है कि डीपीआरके किसी भी सूरत में बैलेस्टिक मिसाइलों का परीक्षण नहीं करेगा। सुरक्षा परिषद में चीन के बाद रूस का साथ मिलने का मतलब है कि वीटो से दो देश उसकी रक्षा करेंगे।

      अमेरिकी राष्ट्रपति सुरक्षा परिषद के ज़रिये प्रतिबंध लगवाते हैं, निंदा प्रस्ताव पास होता है, मगर किम जोंग उन पर उसका कोई असर नहीं दिखता है। किम जोंग उन के दादा किम इल सुंग ने अपने पूरे समय 15 मिसाइलों का परीक्षण किया था। पिता किम योंग इल ने कुल जमा 15 प्रक्षेपास्त्र दागे थे, मगर किम जोंग उन अपने बाप-दादा का रिकार्ड ध्वस्त कर सितंबर, 2023 तक 164 मिसाइलों का परीक्षण करवा चुका है। उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन, पागल पीढ़ी का लेटेस्ट संस्करण है। दक्षिण कोरिया के वरिष्ठ खुफिया अधिकारी सियोंग ओक यो इसे केवल प्रोपेगंडा टूल मानते हैं।

      सोल स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थ कोरियन स्टडीज़ के प्रोफेसर जोंग दाए शिन ने इसे ” डॉग इयर्ड स्ट्रेटेजी ” कहा है। यानी, कुछ ऐसा कर गुज़रो कि कुत्ते के कान खड़े हो जाएं !

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