उसने एक फ़िल्म में क्रांतिकारी की भूमिका निभाई। फ़िल्म में वह बार-बार अंग्रेज़ अधिकारियों से जनता की बदहाली पर सवाल पूछता और बदले में लाठियाँ खाता या कारागार में डाल दिया जाता। फ़िल्म में उसके अभिनय की बहुत तारीफ़ हुई। उसे कई सम्मान मिले। उसका अभिनय देखकर कई शीर्ष नेताओं की आँखों में आँसू तक भी आ जाते। फ़िल्म में काम करने के दौरान क्रांतिकारी की आत्मा कब उसकी काया में प्रवेश कर गई,उसे पता ही नहीं चला। जो सवाल वह फ़िल्म में अंग्रेज़ों से पूछता था,अब वही सवाल अब वह वर्तमानसमय के सत्ता के कर्णधारों से उसी अंदाज़ में पूछने लगा। सवाल पूछने पर जो सुलूक फ़िल्म में क्रांतिकारी के साथ होता था,वही सुलूक अब उसके साथ हो रहा था। वह हैरान था कि जो लोग फ़िल्म में क्रांतिकारी के हर संवाद पर तालियाँ बजाते थे और उसकी तारीफ़ करते हुए भावुक हो जाते थे,अब वही लोग उससे घृणा करने लगे थे। वह खुद को बहुत व्यथित महसूस कर रहा था कि एक दिन उसकी मुलाक़ात उस फ़िल्म के निर्देशक से हो गई। उसने अपना दर्द उसे कह सुनाया और पूछा, “मैं कहाँ ग़लत हूं सर ?”। निदेशक के होठों पर एक करुण मुस्कुराहट फैल गई, “तुम ग़लत नहीं हो, समय ग़लत है। तुम अभिनेता हो,अभिनय करो। पात्र के भीतर प्रवेश मत करो और न पात्र को अपने भीतर घुसने दो। ” दरअसल सवाल जब तक अतीत के किसी शत्रु से पूछे जाकर कहानियों का हिस्सा बने रहते हैं, देशभक्ति की मिसाल माने जाते हैं,वही सवाल जब कहानियों से निकल कर वर्तमान सत्ता के सामने खड़े हो जाते हैं तो वे देशद्रोही कहे जाते हैं ! ”
हरभगवान चावला,सिरसा,हरियाणा,संपर्क-93545 45440
संकलन-निर्मल कुमार शर्मा,गाजियाबाद, उप्र.,संपर्क-9910629632