आरबीआई ने उतार-चढ़ाव रोकने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में किया हस्तक्षेप
रुपये में आई हालिया भारी गिरावट और देश के विदेशी मुद्रा भंडार में आई तेज कमी के कारण अब इस पर बहस शुरू हो गई है कि क्या विनिमय दर को स्थिर बनाए रखना जरूरी और वांछनीय है। रुपया करीब दो वर्ष तक अपनी समकक्ष मुद्राओं में सबसे कम उतार-चढ़ाव वाली मुद्रा थी लेकिन यूएस फेडरल रिजर्व के ब्याज दर में कटौती के बाद सितंबर से भारतीय मुद्रा पर मौजूदा दबाव शुरू हुआ।
पिछले 15 साल के अनुभवजन्य साक्ष्य दर्शाते हैं कि रुपये को लेकर स्थायित्व का कुछ दौर रहने के बाद अत्यधिक उतार – चढ़ाव होता है। जैसे अगस्त, 2010 से अगस्त, 2011 के दौरान रुपये ने एक सीमित दायरे में कारोबार किया था और इस अवधि में रुपया 2.1 प्रतिशत मजबूत हुआ था लेकिन अगले नौ महीनों के दौरान रुपये में 17.85 प्रतिशत की गिरावट आई।
ऐसे ही रुझान 2023 की शुरुआत से अगस्त, 2024 की अवधि में नजर आए हैं। दरअसल फरवरी, 2022 से यूरोप में युद्ध शुरू होने से रुपये पर दबाव बढ़ा और इससे रुपया 2022 में 10 प्रतिशत से अधिक गिर गया। लेकिन वर्ष 2023 में रिजर्व बैंक के सख्त रुख के कारण विनिमय दर में मात्र 0.6 प्रतिशत की गिरावट हुई थी।
भारतीय रिजर्व बैंक की यह सख्ती अगस्त, 2024 तक जारी रही और इससे जनवरी से अगस्त, 2024 के दौरान रुपये में केवल 1.36 प्रतिशत की गिरावट आई। इस दौरान केंद्रीय बैंक ने विनिमय दर को लेकर सख्ती बरती थी और इससे प्रति डॉलर रुपये के 83 से गिरकर 84 तक आने में 478 दिन लगे थे। हालांकि सितंबर से लेकर अभी तक मुद्रा में 3 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। दिसंबर और जनवरी में अभी तक के 30 कार्यदिवसों में से 21 दिन रुपया नए निचले स्तर पर बंद हुआ है।
बैंक ऑफ अमेरिका ग्लोबल रिसर्च के एशिया विदेशी मुद्रा / दर के रणनीतिकार अभय गुप्ता के मुताबिक ‘उतार-चढ़ाव वाली बाहरी परिस्थितियों और समय के साथ बढ़े असंतुलन के खिलाफ लचीली विनियम दर प्रथम रक्षक का काम करती है। अत्यधिक उतार-चढ़ाव की स्थिति भी अवांछनीय है क्योंकि यह कॉरपोरेट नियोजन को बाधित करने के साथ- साथ विदेशी पोर्टफोलियो के प्रवाह के लिए नुकसानदायक हो सकती है।’
गुप्ता ने बताया, ‘इस कारण से खासतौर पर उभरते बाजारों के केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा के मांग और आपूर्ति के संतुलन के लिए कभी कभार ही कदम उठाते हैं। हालांकि बीते कुछ वर्षों के दौरान अमेरिका डॉलर – भारतीय रुपये के कारोबार की अत्यधिक सीमित दायरे को न्यायोचित ठहराना मुश्किल है। इसके परिणामस्वरूप व्यापार-भारित शर्तों और वास्तविक शर्तों पर रुपये के मूल्यांकन में बड़ा अंतर आया है।’
आंकड़ा दर्शाते हैं कि रिजर्व बैंक ने विनिमय दर का प्रबंधन करने के लिए अक्टूबर में 37.8 अरब डॉलर की बिक्री की थी और 27.5 अरब डॉलर की खरीदारी की थी। रिजर्व बैंक हमेशा इस पर कायम था कि विदेशी मुद्रा मार्केट में हस्तक्षेप का ध्येय अतिरिक्त उतार-चढ़ाव पर अंकुश लगाना है और उसका लक्ष्य विनिमय दर का कोई स्तर या दायरा तय करना नहीं है।
बार्कलेज एशिया के विदेशी मुद्रा व ईएम मैक्रो रणनीति के प्रमुख मितुल कोटेचा ने कहा, ‘हां, रुपये पर एक खास अवधि के दौरान कड़ा दबाव रहा। इसका परिणाम यह हुआ कि उतार-चढ़ाव प्रत्यक्ष रूप से कम रहा। इससे हैजिंग जैसे किसी गतिविधि में जटिलता बढ़ सकती है। इसका असर यह भी हो सकता है कि मुद्रा अत्यधिक अमीर (अधिक मूल्यांकन) हो जाए। हमें नहीं मालूम है कि नीति में कोई बदलाव हुआ है। हम केवल यह देख सकते हैं कि रुपया कमजोर हुआ है जो यह संकेत देता है कि कुछ ढील दी गई है।’
भारतीय रुपये का आरईईआर अक्टूबर, 2024 के 107.20 से बढ़कर नवंबर, 2024 में 108.14 हो गया। इसका अर्थ यह है कि नवंबर में रुपये का मू्ल्यांकन मासिक आधार पर 0.9 प्रतिशत बढ़ा। आरईईआर मुद्रास्फीति समयोजित मुद्रा की अपनी समकक्ष मुद्राओं के साथ व्यापार – भारांश औसत मूल्य को प्रदर्शित करता है और इसे आमतौर पर बाहरी प्रतिस्पर्धा का सूचक माना जाता है।
कोटेचा ने कहा, ‘रिजर्व बैंक ने रुपये को निश्चित दायरे में रखा है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास ने कई बार कहा कि वे उतार चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिए हस्तक्षेप करते हैं और विनिमय दर को लेकर कोई लक्ष्य और दायरा नहीं है। अब हमारे सामने सवाल यह है कि नए गवर्नर के कार्यकाल में नीति में कोई बदलाव होगा या नहीं। इसे पता करना मुश्किल है। रुपये के तेजी से अवमू्ल्यन से नए गवर्नर की नीतियों में बदलाव प्रतीत होता है। लेकिन हमें जानकारी नहीं है कि रुख में वास्तविक रूप में कोई बदलाव हुआ है।’ दुनिया भर की मुद्राओं पर नजर रखने वालों के मुताबिक यूएस फेडरल रिजर्व के कदम और डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव जीतने सहित वैश्विक कारणों से हालिया अवमूल्यन हुआ है।
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