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महिलाओं के तलवार प्रदर्शन पर उठे सवाल

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तलवार भाला बल्लम रखने के लिए लेना होता है लाइसेंस 

हरनाम सिंह

                देश में समय काल के अनुकूल नियम कायदे ,कानून बनते और विलोपित होते रहे हैं। किसी समय देश में साइकिल चलाने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता था। साइकिल के आगे रोशनी का इंतजाम लाइसेंस की शर्तों में शामिल था। उल्लंघन करने पर सजा का भी प्रावधान था। ऐसी ही रेडियो, टेलीविजन, वीसीआर के दौर में भी व्यवस्था थी। डाकघर शुल्क लेकर लाइसेंस जारी करता था। किस-किस घर में ये उपकरण हैं ? कितनों के पास लाइसेंस थे इसकी जांच करने का सरकार के पास इतना अमला ही नहीं था। बहरहाल कम ही लोगों को ज्ञात होगा कि देश में तलवार रखने के लिए भी सरकार से अनुमति लेना होती है। तलवार रखने का लाइसेंस जिला प्रशासन की शस्त्र शाखा से प्राप्त होता है। कितने लोगों ने लाइसेंस लिया है होगा यह तो फिर भी ज्ञात हो सकता है। पर कितने घरों में बिना अनुज्ञा के तलवारे रखी हैं, शायद ही किसी को जानकारी हो। तलवारों को लेकर विवाद तब उठा था जब इंदौर में 5 हजार महिलाओं ने तलवार प्रदर्शन का रिकॉर्ड बनाया था।

        15 जुलाई 2016 को प्रकाशित भारत सरकार के राजपत्र साधारण भाग (2 )खंड 3 (1) अनुसूची 4 नियम 27 की तालिका (क) में शस्त्र रखने वालों के लिए शुल्क का उल्लेख किया गया है। तलवार, भाला, बल्लम, कटार की लाइसेंस फीस 500 रुपए और प्रतिवर्ष नवीनीकरण शुल्क 100 रुपए रखा गया है। इस हेतु आवेदक को डॉक्टर द्वारा जारी फिटनेस सर्टिफिकेट भी लगाना होता है।

                 लाइसेंस होने पर भी घर  से बाहर निकलते समय इन शस्त्रों को अपने साथ लाना, ले जाना अवैध है। इन्हें ट्रेन में तो नहीं अपितु कार में किसी बैग आदि के अंदर बंद रखकर ही ले जाया जा सकता है। शस्त्र अधिनियम के तहत इन्हें निशद्ध हथियार मान गया है।

              खेल प्रतिस्पर्धाओं, अखाड़ों में उपयोग में आने वाले भोथरे हथियार अधिनियम से मुक्त हैं। शस्त्र अधिनियम 2016 नियम 8 के तहत नुकीले किनारे, तीखी धार वाले हथियार लाइसेंस होने के बाद भी सार्वजनिक स्थलों, रेलिया, जुलूसों में इनका प्रदर्शन नहीं किया जा सकता। 

               गत वर्ष कतिपय संगठनों द्वारा इंदौर में 5 हजार क्षत्राणियों ने तलवार चलाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया था। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री स्वयं शामिल हुए थे। ऐसा ही प्रदर्शन रतलाम में भी हुआ था जिसमें 2100 महिलाओं ने भागीदारी की थी। प्रदेश सरकार ने इन प्रदर्शनों को वीरता और साहस का प्रतीक बता कर प्रशंसा की थी। उसी दौरान इतनी बड़ी तादाद में तलवारों की आपूर्ति उनके लाइसेंस पर सवाल उठाए गए थे। आलोचकों के अनुसार समाज के एक वर्ग की महिलाओं को तलवार प्रदर्शन में शामिल कर सरकार ने पक्षपात किया है। सुरक्षा, शौर्य के प्रदर्शन और प्रशिक्षण की आवश्यकता समाज के सभी वर्गों की महिलाओं को होती है।

#सिखों और दुल्हों को है अधिकार

           संविधान के अनुच्छेद 25 में सिख धर्मावलंबियों को अपने धार्मिक प्रतीक धारण करने का अधिकार है। परंपरागत रूप से सिख 30 इंच की तलवार रख सकते हैं। सिख आचार संहिता के अनुसार पहनी जाने वाली तलवार की लंबाई निर्धारित नहीं है यह गुरु गोविंद सिंह द्वारा 1699 में दिए गए उस धार्मिक आदेश का हिस्सा है, जिसके तहत खालसा पंथ की स्थापना की गई थी। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे उन्नत देशों में भी सिखों को तलवार रखने का अधिकार प्राप्त है। उन्हें भारत में घरेलू हवाई उड़ानों में कृपाण ले जाने की अनुमति है। निषेधाज्ञा धारा 144 लागू होने पर भी सिखों को कटार कृपाण साथ में रखने की छूट होती है। हिंदू धर्म के रीति रिवाजों के अनुसार दुल्हों द्वारा तलवार रखने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। दूल्हे तलवार रख सकते हैं पर उसे लहरा नहीं सकते। 3 वर्ष पूर्व महाराष्ट्र की नवी मुंबई में हल्दी की रस्म के दौरान दुल्हे द्वारा तलवार लहराने पर प्रकरण दर्ज किया गया था। 

हरनाम सिंह

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