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अक्षम साबित हुए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और उनका मंत्रालय

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*’ रेल ‘…पूरी तरह फैल*  _महीनेभर से श्रद्धालुओं की हो रही फ़जीहत के बाद भी क्यो नही जागा रेल मंत्रालय?_  _*अब जिला पुलिस, सीआरपीएफ, आरपीएफ से  आईटीबीपी की स्टेशनों पर की जा रही तैनाती, पहले क्यों नहीं?*_  _*कुंभ की शुरूआत से ही रिजर्वेशन टिकट वालों के बुरे हाल को मूकदर्शक बनकर क्यों देखता रहा रेल मंत्रालय?*_  _*स्टेशन के बाहर क्यो नही बने प्रयागराज जैसे ‘ होल्डिंग पाइंट ‘? 18 मौत के बाद पाइंट बनाने जागा रेलवे*_  _रिजर्वेशन वाले यात्रियों के लिए आने जाने का अलग द्वार, प्लेटफॉर्म क्यो नही हुए तय, जो अब दिल्ली में कर रहें_  _भेड़-बकरियों से भरी बोगियों को देखने के बाद भी रेल मंत्री ने समय रहते क्यो नही उठाये क़दम?_  _करोडों के बढ़ते सैलाब के बाद वक्त रहते सभी रेल स्टेशनों को सामान्य दिनों से ही क्यो बने रहने दिया?_ 

 _*सिर्फ़ दिल्ली हादसे की ही नही, रेल महकमे की कुंभ की ‘ मुक्कमल तैयारियों ‘ की निष्पक्ष जांच हो कि आख़िर क्या कारण था कि रेलवे स्टेशनों, प्लेटफॉर्म व बोगियों जो डराने वाले नज़ारे देश-दुनिया देख रही थी, उन दृश्य से रेलवे मंत्रालय व रेल मंत्री क्यो बेख़बर बने रहें? रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के इस्तीफे की विपक्ष की मांग को सरकार राजनीति के चश्मे से न देखे और एक उदाहरण पेश करें अपने रेल महकमें की नाकामियों की जांच का स्वस्फूर्त फैसला लेकर। तभी ‘ आस्थावान केंद्र सरकार’ की आस्था का असली प्रकटीकरण होगा, जब वे महीनेभर से फ़जीहत पा रही ‘ श्रद्धा-आस्था’ के जिम्मेदारों की जवाबदेही तय करें। देश ने ये पहली बार देखा व झेला हैं कि प्रयागराज जाने वाले हर स्टेशन, हर रेल में श्रद्धालुओं की क्या दुर्गति हुई। जो बंदोबस्त रेल महक़मा 18 निर्दोष ज़िन्दगियां जाने के बाद कर रहा हैं, वह पहले दिन से क्यो नही लागू किये गए? इस सवाल का जवाब कुंभ की बिदाई के पहले ही देश को मिलना चाहिए। ख़ासकर उन्हें, जिन्होंने रेल विभाग की सीमा में जान गंवाई। महाकुंभ की सफलता पर गदगद होने वाली ‘ 56 इंची सरकार ‘ से इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती हैं न? उस सरकार से जिसकी ‘ जीरो टॉलरेंस’ नीति का खूब शोर हैं।*_ 

 *रेलवे, अब स्टेशनों पर वो काम कर रहा हैं, जो उसे कुंभ की शुरुआत के पहले ही करना थे। 18 निर्दोष जान जाने के बाद भारत सरकार के रेल मंत्रालय की समझ विकसित हुई कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सिर्फ़ जीआरपी के भरोसे नही रह सकते। रेल मंत्री को ये ज्ञान दिल्ली हादसे के बाद आया कि इस काम में सम्बंधित जिलों की जिला पुलिस, आरपीएफ, सीआरपीएफ ही नही इंडो तिब्बत बार्डर पुलिस यानी आईटीबीपी तक की सेवाएं अतिआवश्यक हैं। रेल महकमें को ये भी होश आया कि स्टेशनों पर बढ़ती भीड़ को नियंत्रित करने के लिए हर स्टेशन पर ‘ होल्डिंग पाइंट ‘ जरूरी हैं, ताकि यात्री सीधे प्लेटफॉर्म पर न जाकर इन पाइंट पर रुके।* 

 *बेहोशी से जागे रेल मंत्री को ये ख़्याल भी आया कि रिजर्वेशन वाले मुसाफिरों के लिए आगम, निर्गम के लिए अलग द्वार व अलग प्लेटफॉर्म होना चाहिए। मंत्री महोदय और उनके अफ़सरों को ये इल्म भी हुआ कि टिकट खिड़की से टिकट बेचने की कोई लिमिट भी होती हैं? ये भी समझ जागी कि प्लेटफॉर्म टिकट से इंट्री बंद हो और अलग अलग रंग के कूपन जारी हो ताकि रंग के हिसाब से यात्रियों की छटनी हो सके कि इन्हें किस तरफ़ जाना हैं। है न ये सब हैरत की बात? एक तरफ़ समूची भारत सरकार कुंभ को लेकर गम्भीर है और उसी सरकार का रेल महक़मा वातानुकूलित कक्ष में बैठकर सीसीटीवी में उस अराजकता को निहार रहा है जो स्टेशनों, प्लेटफॉर्म व बोगियों में पसरी हुई थी।* 

 *बेचारे निर्दोष श्रद्धालुओं को क्या पता कि उनकी जान की क़ीमत पर रेल मंत्रालय व मंत्री की नींद टूटेगी। अन्यथा वो किसी भी स्टेशन पर अब तक कब के मर-खप के, मौत के बाद हो रहें इन ‘ बंदोबस्तों’ को लागू करवा देते। अब भी तो वो ही हो रहा हैं, जो पहले दिन से देशभर के रेलवे स्टेशनो पर होना था। आस्थावानों को क्या पता कि मोदी सरकार के रेल मंत्री की ‘ अंटाग़ाफ़िली’ दबने, कुचलने, मरने के बाद टूटेगी। हालांकि उनका ‘ मौनव्रत ‘ अब तक नही टूटा हैं। ये चुप्पी भी हेरतभरी हैं। प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री और उत्तरप्रदेश के सीएम योगी से लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज चौहान तक ने दिल्ली हादसे पर दुःख प्रकट कर दिया लेक़िन ‘ मिस्टर वैष्णव’ न जाने किस अवसाद में हैं, समझ नही पड़ रहा हैं।* 

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