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बार बार होने वाले हादसों से सबक लेगा रेलवे ?

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गुलशन राय खत्री
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 18 लोगों की जान ले ली। भगदड़ की वजह अचानक ट्रेन का प्लेटफॉर्म बदलना था या फिर एक ही जगह जरुरत से अधिक भीड़ एकत्र हो गई थी ? ये तो रेलवे और पुलिस की जांच के बाद ही सामने आ सकेगा लेकिन इस हादसे से ये जरुर साफ हो गया है कि कायदे से रेलवे को कुंभ के लिए जो तैयारियं करनी चाहिए थीं, उतनी तैयारियां नहीं की गईं। इसके अलावा स्टेशन पर आने वाले पैसेंजरों के मामले में रेलवे अफसरों ने अनुमान लगाकर जो इंतजाम किए थे, वे पर्याप्त नहीं थे। जिसका नतीजा ये हुआ कि ऐसे हालात बने कि महिलाएं और बच्चे भीड़ में दब गए औरअपनी  जान गंवा बेठे।


नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर इस तरह का ये पहला हादसा नहीं है। इससे पहले भी ऐसे हादसे हुए हैं लेकिन ऐसे हादसे दीवाली, छठ की भीड़ के वक्त ही हुए थे और उनमें हताहतों की संख्या भी इतनी अधिक नहीं थी। लेकिन इस बार हादसा ऐसे वक्त में हुआ, जब कुंभ जाने वाले यात्रियों की भीड़ उमड़ रही थी। जाहिर सी बात है कि कुंभ की भीड़ अचानक नहीं आयी। काफी पहले से ही रेलवे को पता था कि 144 साल बाद लगने वाले कुंभ मेले के दौरान यात्रियों की भीड़ प्रयागराज जाएगी। लेकिन उसके लिए कायदे से जो इंतजाम किए जाने चाहिएं थे, क्या वो किए गए ?
स्पेशल ट्रेनों के लिए अलग स्टेशन क्यों नहीं ?
रेलवे ये तो दावा करता रहा है कि वह श्रद्धालुओं के प्रयागराज जाने के लिए पर्याप्त संख्या में ट्रैनें चला रहा है और अगर जरुरत पड़ी तो और भी ट्रेनें चलाएगा लेकिन क्या रेलवे अफसरों ने इस बात पर विचार नहीं किया कि अगर बड़ी संख्या में प्रयागराज के लिए ट्रेनें चलानी हैं तो सबसे व्यस्त और भीड़भाड़ वाले नई दिल्ली स्टेशन की बजाए किसी और स्टेशन से ये ट्रेनें चलाई जाएं। इसी रेलवे ने प्रयागराज में भी ऐसे ही इंतजाम किए हैं। यहां ट्रेन से आने वाले यात्रियों के लिए अलग स्टेशन है और प्रयागराज से जाने वाले यात्रियों के लिए दूसरा स्टेशन। ऐसे में क्या दिल्ली में रेलवे सफदरजंग जैसे किसी दूसरे स्टेशन को कुंभ के दौरान प्रयागराज जाने वाली ट्रेनों के लिए तय नहीं कर सकता था ? ऐसे किसी स्टेशन को तय कर दिया जाता तो प्रयागराज जाने वाली भीड़ उसी स्टेशन पर होती।
पहले के हादसे से क्यों नहीं सीखा सबक
लगभग 15 साल पहले छठ के दौरान हुए हादसे के बाद रेलवे ने छठ के दौरान तो स्टेशन के बाहरी हिस्सों में रोकने की व्यवस्था करता है लेकिन इस बार वैसी तैयारी भी नहीं की गई। रेलवे कोई बड़े इंतजाम नहीं, तो कम से कम वह छठ के दौरान की जाने वाली व्यवस्था तो कर ही सकता था। इसके तहत स्टेशन के बाहरी हिस्से में ही भीड़ को रोककर रखा जाता और जो ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आती, उसके यात्रियों को प्लेटफॉर्म की ओर जाने दिय जाता। इसके लिए तो रेलवे को लंबी चौड़ी कवायद ही नहीं करनी पड़ती। लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
भीड़ का क्यों नहीं लगाया गया अनुमान
महत्वपूर्ण है कि इसी स्टेशन पर लगातार अनरिजर्व टिकट बिक रहे थे तो क्या उस वक्त अफसरों को ये अंदाजा नहीं था कि भीड़ बढ़ रही है। ऐसा नहीं था कि भीड़ अचानक ही प्लेटफॉर्म नंबर 14=15 पर पहुंची हो। लोग स्टेशन से ही एंट्री करके आए होंगे तो क्या एंट्री के वक्त ही ये अनुमान नहीं लगाया गया कि कितनी भीड़ आ रही है ?
उस स्थिति में क्यों नही रेलवे के आला अफसरों ने वक्त रहते इंतजाम किए। यही नहीं, हर प्लेटफॉर्म पर सीसीटीवी लगे हैं। ऐसे में उन कैमरों के निगरानी सिस्टम से भी पता चल सकता था कि भीड़ बढ़ रही है और उसके लिए तुरंत इंतजाम किए जाएं। लेकिन उस वक्त गिने चुने सुरक्षाकर्मी ही थे, जे इतनी भीड़ को कंट्रोल करने के लिए पर्याप्त नहीं थे। ये जांच होनी चाहिए कि सीसीटीवी की निगरानी करने के लिए क्या कोई ऐसा सीनियर अफसर मौजूद था, जो फैसला ले सकता हो।
वैसे भी रेलवे अफसरों को ये नहीं पता कि दो रेलवे लाइनों के बीच बने प्लेटफॉर्म पर एक वक्त में कितने लोग खड़े हो सकते हैं ? जाहिर सी बात है कि एक प्लेटफॉर्म को जब डिजाइन किया गया होगा तो दोनों तरफ खड़ी होने वाली ट्रेनों के कुल यात्रियों का अनुमान लगाया गया होगा। ऐसे में अगर एक ही वक्त में इससे दोगुणा संख्या में भी यात्री आ गए होंगे तो व्यवस्था चरमरा ही गई होगी। वैसे ये भीड़ एक ही वक्त में तो अयी नहीं होगी। ऐसे में क्या लोगों का पहले ही रोकने की व्यवस्था क्याों नहीं की गई ?
क्या प्लेटफॉर्म बदला गया ?
दूसरी सबसे चिंताजनक बात ये है कि जब भीड़ बेकाबू थी, उस वक्त प्लेटफॉर्म बदलने की बात भीड़ में कैसे फैली ? हालांकि अभी ये साफ नहीं है कि प्लेटफॉर्म बदला गया या नहीं लेकिन अगर वाकई में ट्रेन के प्लेटफॉर्म बदलने की बात हुई हे तो ये रेलवे की घोर लापरवाही मानी जानी चाहिए।  कमिश्नर रेलवे सेफ्टी (सीअरएस) समेत रेलवे की कई कमिटियां पहले ही कह चुकी हैं कि प्लेटफॉर्म तब तक नहीं बदला जाना चाहिए, जब तक कोई और विकल्प न बचे। इससे पहले कई हादसे प्लेटफॉर्म बदलने की सूचना के बाद ही हुए हैं। हालांकि अभी इस मामले में जांच के बाद ही तथ्य सामने आएगा कि प्लेटफॉर्म बदलने का फैसला लिया गया या नहीं। लेकिन इतना जरुर है कि अगर रेलवे ने अचानक प्लेटफॉर्म बदला है तो ये एक बड़ी गलती थी। इससे पहले रेलवे की कई कमिटियां बार बार कह चुकी हैं कि अचानक तब तक प्लेटफॉर्म नहीं बदला जाना चाहिए, जब तक की कोई और विकल्प न बचे। ऐसे में भी पूरी तरह से प्लान करके और लोगों को पर्याप्त समय देने के बाद ही प्लेटफॉर्म बदला जाए।

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