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लखनऊ में राजभवन मार्च में गिरफ्तारी, इलाहाबाद में बुद्धिजीवियों से प्रशासन ने छीना माइक

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आज किसान आंदोलन को दो महीने (60 दिन) पूरे हो गए। आज स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ सशस्त्र जंग छेड़ने वाले नेता जी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती भी है। दिल्ली बॉर्डर को दो महीने से घेरकर आंदोलन कर रहे किसान यूनियनों ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर देश भर में धरना देने का आह्वान किया था। किसान आंदोलन एकजुटता मंच, इलाहाबाद और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयुक्त तत्वाधान में, सिविल लाइंस पत्थर गिरजा के पास धरना स्थल पर धरना एवं जनसभा का आयोजन किया गया। किसान आंदोलन के समर्थन में इलाहाबाद शहर में हो रहे इस महाधरना और जनसभा में शहर के कई बुद्धिजीवी और वकीलों का जत्था भी शामिल हुआ।

हालांकि आश्वासन के बावजूद इलाहाबाद पुलिस प्रशासन ने धरना और जनसभा की अनुमति नहीं दी। प्रशासन ने माइक भी छीन लिया और कहा कि विरोध प्रदर्शन करने पर एफआईआर दर्ज की जाएगी। हालांकि दोपहर बाद पुलिस ने माइक वापस लौटा दिया।

जनसभा के बाद महामहिम राष्ट्रपति को संबोधित पांच सूत्रीय मांगपत्र जिलाधिकारी के माध्यम से भेजा गया। कार्यक्रम की शुरुआत नेताजी के चित्र पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. राजेंद्र कुमार द्वारा माल्यार्पण करके किया गया, जबकि कार्यक्रम के अंत में किसान आंदोलन में शहीद किसानों को दो मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजलि दी गई। सभा से पहले छात्रों द्वारा क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत किए गए।

जनसभा में वक्ताओं ने किसानों की मांग और भाजपा की वादाखिलाफ़ी पर कहा कि देश के किसान लंबे समय से एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग करते आ रहे हैं। यह सत्तारूढ़ भाजपा का चुनावी वादा भी था। परंतु बजाय इस मांग को पूरा करने के, केंद्र सरकार ने बिना संसद में समुचित बहस कराए, एकतरफा तरीके से कृषि संबंधी तीन कानूनों को पारित कर दिया।

जनसभा के दौरान तमाम वक्ताओं द्वारा केंद्र सरकार द्वारा थोपे गए तीन कृषि कानूनों की विसंगतियों और उससे भविष्य में पैदा होने वाले दुष्प्रभावों को रेखांकित करते हुए कहा कि इन तीन क़ानूनों में से मण्डी कानून में संशोधन के चलते देश में किसानों की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी समाप्त हो जाएगी। इसके चलते किसान अपनी फसल को बिचैलियों को औने-पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर हो जाएंगे। मौजूदा समय में भी न्यूनतम समर्थन मूल्य स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार फसल की लागत (ज़मीन का किराया और स्वयं की मज़दूरी समेत) का 1.5 गुना नहीं होता।

उस पर भी क्रय केंद्रों के दूर होने और उनमें व्याप्त अनियमिताओं के कारण किसान उससे कहीं कम दामों पर फसल बेचने के लिए मजबूर हैं। ठेका खेती के कानून के चलते किसान या तो अपने ही खेत में एक बंधुआ मज़दूर बन कर रह जाएगा या बड़ी-बड़ी कंपनियों के हाथों अपनी ज़मीन से ही हाथ धो बैठेगा। कंपनी और किसान के बीच में विवाद की स्थिति में किसान न्यायालय भी नहीं जा सकेगा।

आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम-2020, और कृषि उपज व्यापार (प्रोत्साहन एवं संवर्धन) क़ानून से देश की जनता की थाली किस हद तक प्रभावित होने वाली है, इसके बाबत वक्ताओं ने कहा कि भंडारण की सीमा को बढ़ाने वाले तीसरे कानून के चलते जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा, जिससे मंहगाई बढ़ेगी और देश की खाद्य सुरक्षा भी खतरे में आ जाएगी। साथ ही प्रस्तावित बिजली विधेयक 2020 बिजली के निजीकरण को बढ़ावा देगा। इन कानूनों के पारित होने से देश का हर तबका प्रभावित होगा।

मण्डी कानून से सरकारी मण्डियां धीरे-धीरे कमज़ोर होती जाएंगी। इससे देश में अनाज खरीदने वाली सबसे बड़ी संस्था फूड कॉरपोरेशन ऑफ इण्डिया (FCI) भी कमज़ोर होगी। एफसीआई ही सरकारी राशन की दुकानों पर अनाज उपलब्ध कराती है। ऐसे में गरीबों को जो कोटे का अनाज मिलता है, उसमें भी भारी कमी आएगी। साथ ही जमाखोरी को बढ़ावा मिलने से अनाज, दाल, तेल, आलू, प्याज की कीमतों में भारी वृद्धि होगी। देश में आज भी कृषि क्षेत्र ही सबसे ज़्यादा रोज़गार उपलब्ध कराता है। कृषि क्षेत्र में संकट बढ़ेगा तो बेराज़गारी और भी बेतहाशा बढ़ेगी।

जनसभा में वक्ताओं ने कहा कि केंद्र सरकार हठधर्मिता अपनाते हुए किसान विरोधी कानूनों को वापस लेने को तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि किसान विरोधी कानून हों, अथवा श्रम संहिताएं हों अथवा नई शिक्षा नीति हो, सरकार किसी से बातचीत किए बिना मनमाने तरीके से उन्हें पारित कर देश पर थोप रही है। न कृषि कानूनों के संदर्भ में किसान संगठनों से समुचित बातचीत की गई थी, न श्रम सहिताओं के संदर्भ में श्रमिक संगठनों से, न नई शिक्षा नीति के समय शिक्षक अथवा छात्र संगठनों से। सरकार अंबानी-अडानी जैसे मुठ्ठी भर पूंजीपतियों की तिजोरी भरने के लिए कोरोना काल का फायदा उठाते हुए इनको जबरिया पारित कर दिया।

किसान आंदोलन को बदनाम करने की सरकारी साजिश और किसान आंदोलन के दौरान किसानों की मौत पर केंद्र सरकार की असंवेदनशीलता पर वक्ताओं ने कहा कि किसान आंदोलन में इतने किसानों की शहादत के बावजूद सरकार उन्हें नक्सली और खालिस्तानी बता रही है। देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इसका खण्डन करते हैं तो सरकार के वकील अदलत में किसानों को खालिस्तानी और नक्सली बताते हैं। यह सरकार की बौखलाहट को ही दर्शाता है। सरकार का कहना है कि यह आंदोलन केवल कुछ राज्यों का और किसानों का है, जबकि यह आंदोलन समूचे देश की प्रगतिशील, जनवादी मेहनतकश जनता का है। इलाहाबाद में जहां किसान इन सवालों पर संघर्ष कर रहे हैं, वहीं तमाम श्रमिक संगठन, छात्र संगठन, युवा संगठन, महिला संगठन, बुद्धिजीवी, किसान आंदोलन एकजुटता मंच के बैनर तले किसानों के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े हैं।

किसान आंदोलन के समर्थन में इलाहाबाद में आयोजित हुए आज के कार्यक्रम की अध्यक्षता नसीम अंसारी ने तथा संचालन डॉ. कमल उसरी ने की। अखिल विकल्प ने ज्ञापन पढ़कर सुनाया। कार्यक्रम में शिक्षक सूर्य नारायण, विक्रम हरिजन, श्यामा प्रसाद, झरना मालवीय, रामजी राय, रवि मिश्रा, सुभाष पाण्डेय, राम सागर, भूपेंद्र पाण्डेय, आनंद मालवीय, सुभाष पटेल, अविनाश मिश्रा, सुनील मौर्या, विकास स्वरूप, गायत्री गांगुली, पद्मा सिंह, अन्नू सिंह, पंचम लाल, राजवेंद्र, सईद अहमद, कशान, आशुतोष, माता प्रसाद, विनोद तिवारी, ऋषेश्वर उपाध्याय, बाबूलाल, मनीष सिन्हा, अंशू मालवीय, सुधांशू मालवीय, रश्मि मालवीय, केके पाण्डेय, मुस्तकीम अहमद, भीम सिंह, मुन्नी लाल, त्रिलोकी पटेल, फूलकुमारी, दारा सिंह, चंद्रमा, देवानंद, सुभाष पटेल, रज्जन कोल, गोविंद निषाद, प्रदीप ओबामा, सीताराम विद्रोही, श्रीनाथ पाल, राम सिया समेत सैंकड़ों लोग उपस्थित थे।

उधर, भाकपा-माले की राज्य इकाई ने तीन कृषि कानूनों को रद्द कराने के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस जयंती पर आज यहां चारबाग से राजभवन तक मार्च निकाल रहे किसानों को बीच रास्ते गिरफ्तार कर लेने की कड़ी निंदा की है। राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि दिल्ली को 60 दिनों से घेरे किसान संगठनों और एआईकेएससीसी के देशव्यापी आह्वान पर अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश सचिव ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा के नेतृत्व में स्टेशन रोड होते हुए सूबे की राज्यपाल को ज्ञापन देने जा रहे किसानों की हुसैनगंज के निकट गिरफ्तारी योगी सरकार की लोकतंत्र-विरोधी कार्रवाई है। पुलिस सभी को इको गार्डन ले गई। गिरफ्तार अन्य लोगों में अफरोज आलम, रमेश सेंगर, ओमप्रकाश, लाला राम, संतराम, रजनीश भारती, मलखान सिंह, मोहम्मद कामिल, नौमिलाल, राजीव आदि प्रमुख हैं।

राज्य सचिव ने कहा कि किसान आंदोलन के समर्थन में आजमगढ़, चंदौली, प्रयागराज, सोनभद्र, जालौन सहित कई जिलों में भाकपा-माले ने भी शनिवार को मार्च और प्रदर्शन आयोजित किया। उन्होंने कहा कि गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 25 जनवरी को ग्रामीण क्षेत्रों में मशाल जुलूस निकाले जाएंगे। उन्होंने गणतंत्र दिवस पर किसानों की दिल्ली परेड में लोगों से शामिल होने की अपील की।

उधर, केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ शनिवार को बिहार में पटना के मीठापुर बस स्टैंड के पास ऑल इंडिया पीपल्स फोरम (एआइपीएफ) के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम ‘किसानों के साथ हम पटना के लोग’ में पांचवे दिन भी प्रबुद्ध नागरिक समाज के अनेक लोग जुटे और तीन कृषि कानूनों के जनविरोधी परिणामों से लोगों को अवगत कराते हुए किसान आंदोलन के साथ एकजुट होने का आह्वान किया।

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए शिक्षा अधिकार आंदोलन से जुड़े अर्थशास्त्र के शिक्षक डॉ. अनिल राय ने केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों को विस्तार से व्याख्यायित करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि इनके अमल में आने के बाद देश की गरीब जनता के मुंह का निवाला छिन जाएगा और लोग भूखे मरने को मजबूर हो जाएंगे। किसान-मजदूर और बेरोजगारों की बदहाली पर तथ्यपूर्ण  तर्क सामने लाते हुए उन्होंने कड़े शब्दों में कहा कि हर लिहाज से देशहित के खिलाफ मोदी सरकार है, लिहाजा इसके खिलाफ एकजुट होना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।

अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवसागर शर्मा ने केंद्र की कॉरपोरेट परस्त मोदी सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा कि अगर किसान इस देश की 135 करोड़ आबादी को दाना मुहैया करा सकते हैं तो वे अनाज पर डाका डालने वाले की नकेल भी कस सकते हैं। सरकार के साथ ग्यारह दौर की वार्ता के बाद भी किसानों का अपनी मांगों पर अडिग रहना बताता है कि मुनाफाखोर सेठों और उनके यारों कि अब खैर नहीं है, चाहे अडानी-अंबानी जैसे पूंजीपति हों या उनकी हितैषी मोदी सरकार।

उन्होंने कहा कि केंद्र की जुमलेबाज सरकार जहां एक-एक कर तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं को ध्वस्त कर रही है, वहीं देश के किसान तमाम बाधाओं के बावजूद आज़ादी और जम्हूरियत बनाए रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं। हमें इस लड़ाई को एक साथ मिलकर जीतना होगा।

शिवसागर शर्मा ने महात्मा गांधी के शहादत दिवस (30 जनवरी) पर बिहार में खड़ी की जा रही विराट मानव श्रृंखला में भाग लेने के लिए सबका आह्वान किया और उसका अभ्यास भी कराया। वहीं पर्यावरणविद् और जल संरक्षण विशेषज्ञ रणजीव ने बताया कि दुनिया भर के किसान भारत के इस किसान आंदोलन को काफी आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। विदेशों में भी भारत के किसानों के पक्ष में प्रदर्शन हो रहे हैं। यह अकारण नहीं कि 26 जनवरी को होने वाले किसानों की ट्रैक्टर परेड को कवर करने के लिए दुनिया भर के टीवी चैनल भारत आ रहे हैं। हमें चाहिए कि जिस भी तरह हो, किसानों के पक्ष में अपनी आवाज उठाएं।

इस दौरान युवा कवि प्रशांत विप्लवी ने अपनी कविताओं से देश की सूरते हाल बयां की। उन्होंने कहा कहा, “एक हल्की-सी आहट पर भी/ खरगोश के कान खड़े हो जाते हैं/इस वहशी और अराजक लोकतंत्र से उसका विश्वास तो डिगता है/लेकिन वो फिर उसी जंगल की ओर भाग जाता है/ताकि उसके जंगल का लोकतंत्र जिंदा रहे।”

कार्यक्रम का संचालन करते हुए नागरिक अभियान के संयोजक एआइपीएफ से जुड़े वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता ग़ालिब ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस को उनकी जयंती पर याद करते हुए कहा कि तानाशाह हुकूमत से लड़ता हुआ देश आज साम्राज्यवाद विरोधी संग्राम के अपने नायक से प्रेरणा ले रहा है। मोदी सरकार पर सीधा हमला करते हुए उन्होंने आगे कहा कि पिछले 58 दिनों से भीषण ठंड में इस देश के किसान सड़कों पर हैं और 147 किसानों की जान जा चुकी है। यह मौत नहीं, मोदी सरकार द्वारा की गई  सांस्थानिक हत्या है, लिहाजा व्यापक समाज को इस आंदोलन से जोड़ना हम सबकी ऐतिहासिक जिम्मेदारी है। इसी मकसद से यह अभियान चलाया जा रहा है।

‘किसानों के साथ हम पटना के लोग’ नामक इस नागरिक अभियान का यह चौथा दिन था, जो पटना के अलग-अलग इलाकों में गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) तक चलेगा। इसमें सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, कवि-साहित्यकार, प्राध्यापक-चिकित्सक, कवि, गायक, रंगकर्मी, युवा-मजदूर आदि समाज के सभी तबके भाग ले रहे हैं। गीत, कविता, नुक्कड़ नाटक और वक्तव्यों से किसान आंदोलन के समर्थन का आह्वान किया जा रहा है।

उक्त वक्ताओं के अलावा कार्यक्रम में अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश सह सचिव उमेश सिंह, इंकलाबी नौजवान सभा के विनय कुमार, ददन प्रसाद व मो. सोनू समेत नागरिक समाज के दर्जनों लोग मौजूद थे।

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