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चुनाव आयोग की साख पर बट्टा लगाने वाले आयुक्तों में राजीव कुमार सबसे ऊपर

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मनीष सिंह

भारत का सत्तावान नागरिक होने के नाते हमें राजीव कुमार से पूछना चाहिए. चीफ इलेक्शन कमिश्नर के पद और नरेन्द्र मोदी के द्वारा बिठाये गए इस अनाम ब्यूरोक्रेट से पूछें – ‘तुम कौन हो भाई ??’

आयोग ने वोटिंग के बड़े एहसान से हिंदुस्तान की मजलूम रियाया की मन संतुष्टि के लिए आंकड़े जारी किए हैं क्योंकि इसके पहले वे कह चुके हैं कि वे आंकड़े जारी करने के लिए 17 C को पब्लिक करने के लिए लीगली बाउंडेड नहीं है.

साथ में कहा है कि आयोग को बदनाम करने, उस पर सवाल उठाने के प्रयास किये गए, जिस ओर वे ‘एक दिन’ खुलकर बताएंगे. काहे बताएंगे ?? मने तुमको सुनना कौन चाहता है ? नौकरी है, ड्यूटी करो, जाओ. बात खत्म…

संविधान, एक सोशल कॉन्ट्रेक्ट है. एक व्यवस्था बनाई गई है, जिसमें अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग लोग हैं. कुछ चुनकर पद पे जाएंगे, कुछ परीक्षा पास करके…

और सभी, भारत के सत्तावान नागरिक के सब्सर्वीएंट रहेंगे. उसके वेतन भत्ते, सत्तावान नागरिक ही देगा, और काम का हिसाब मांगेगा. कुछ अटपटा लगे, तो सवाल भी करेगा. हां कुछ उन्मुक्तियां (प्रोटेक्शन) है कि वे अपना काम दबाव से बचकर कर सकें लेकिन यह सुरक्षा है, मदद है, उनकी पावर नहीं है.

इतिहास में जब चुनाव आयोग की साख पर बट्टा लगाने वाले आयुक्तों का नाम लिया जाए, तो राजीव कुमार उस फेहरिस्त में सबसे ऊपर होंगे. गजब का घमंड !! बेपरवाह, मनमर्जी…और बात बात पर ‘कोर्ट जाओ’ की अनकही धमक ???

सारा देश, जिस प्रक्रिया का आदी रहा है, 70 साल से चुनाव आयुक्त जिन परम्पराओं का, विधाओं का पालन करते रहे हैं, उसको राजीव कुमार नए सिरे से क्यों डिफाइन करेंगे ?? तुम हो कौन ?? और काहे तुम ‘किसी दिन’ बताओगे ??

काम खत्म कर, अपने सेवा शर्तों के मुताबिक वेतन लेना है उन्हें, और फिर चले चले जायेंगे. ऐसा ही चला है, ऐसा ही चलेगा. संवेधानिक निकाय का मतलब, खुदा से ऊपर और पवित्रतम हो जाना नहीं है. किसी सरकारी नौकर का, राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट हो जाना नहीं है.

और राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट भी क्यों सवालों से ऊपर हों ? वेतन लेते हैं. मनुष्य हैं, इरर ऑफ जजमेंट हो सकता है. गलतियां तो सबसे होती है. लेकिन हम कैसे जानेंगे कि गलत, गलती से हुआ, या जानबूझकर…बदनीयती से ??

तो जनाब, ऐसे जानेंगे कि त्रुटि हुई, तो सुधार किया. एक्सप्लेन किया, दोबारा और सावधानी का वादा किया और सचमुच वैसा दोबारा हो नहीं.

लेकिन चुनाव आयुक्त धमक दिखा रहे हैं. मैं कानूनी रूप से डेटा जारी करने को बाध्य नहीं, सुना रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में जाकर कह रहे हैं…याने आपने जानबूझकर नहीं किया ? तो फिर आज आंकड़ा क्यों जारी किया ? किससे इशारा मिल गया ??

क्या, जो किया जाना था, वह जाल ठीक से बिछ गया क्या ?? कर लिए आंकड़े सेट ?? समेट लिया रायता ?? पुराना सूट जलाकर, नहा धोकर, नया सूट पहनकर आ गए दुनिया के सामने ? सवाल जनाब, अब तो आप पे खत्म नहीं होंगे. अपनी नीयत ऑयर कार्यशैली से भरोसा उठवा दिया है.

जनमत कराकर देख लीजिए, देश इन्हें तत्काल सेवा से बर्खास्त करने का सुझाव देगा. वे नोबडी हैं, नॉमिनेशन से एपॉइंटेड है, भरोसा खो चुके हैं. चुनाव आयोग जैसी संस्था में भूमिका के लायक नहीं हैं. शर्म हो, तो उन्हें खुद ही पद छोड़ देना चाहिए.

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