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लीजिए, अब क्या लोकसभा के स्पीकर जी मर्यादा के पालन का उपदेश भी नहीं दे सकते? कुर्सी का नाम स्पीकर और जरा सा उपदेश देने पर इतनी बक-झक। और उपदेश भी कैसा? मर्यादा के पालन का उपदेश। बेचारे ओम बिड़ला जी ने विपक्ष के नेता को सदन में जरा मर्यादा में रहने की शिक्षा क्या दे दी, भाई लोग हुज्जत पर ही उतर आए हैं। कह रहे हैं कि बिड़ला जी विपक्ष के साथ भेदभाव करते हैं? आखिर, सदन की ऐसी कौन सी मर्यादा है, जो विपक्ष के नेता ने भंग की है?
भगवा पार्टी के आइटी सेल वाले अमित मालवीय का थैंक यू, उन्होंने वीडियो चलाया, तो देश को पता चला कि आखिर कौन-सी मर्यादा भंग हुई है और कैसे? आखिर, राहुल गांधी को इतना बड़ा भाईपना दिखाने की क्या जरूरत थी और वह भी संसद के अंदर। बहन प्रियंका की ठोड़ी पकडक़र, चेहरा ही हिला दिया। बड़ा भाईपना दिखाना ही था, तो डांट-डपट कर लेते। न होता, तो गंभीर सा उपदेश दे देते ; पर दूर से। यह छूकर बात करना तो हमारा संस्कार नहीं है, हमारा आदर्श नहीं है। हमारे संस्कार में, अव्वल तो वयस्क महिलाओं को पुरुषों के साथ ऐसी सभा-सोसाइटियों में होना ही नहीं चाहिए। हों भी, तो कम-से-कम उन्हें पुरुषों से और पुरुषों को उनसे, सुरक्षित दूरी पर रहना चाहिए। अव्वल तो आपस में बोलना भी क्यों, पर बोलें भी तो सुरक्षित दूरी से। टचिंग, हर्गिज-हर्गिज नहीं। गुड-बैड, कोई टच नहीं। बहन-भाई, बाप-बेटी, किसी के मामले में भी नहीं। हमारा संस्कार, संबंधों में गंभीरता का है, हंसी-ठट्ठे का नहीं। संबंध तो बनते-बिगड़ते रहते हैं, मर्यादा बनी रहनी चाहिए। और संसद की मर्यादा का तो खैर, कहना ही क्या? जितना ऊंचा सदन, उतनी ही दूरी वाली मर्यादा!
ओम बिड़ला जी पर यह इल्जाम तो खैर बिल्कुल ही गलत है कि विपक्षी देखते ही उन्हें मर्यादा की चिंता सताने लगती है। रमेेश विधूड़ी ने सदन में एक मुस्लिम सांसद पर सांप्रदायिक गालियों की बौछार कर दी, पर उन्हें मर्यादा की चिंता नहीं हुई। सत्ता पक्ष वाले विपक्षी नेताओं के खिलाफ अल्लम-गल्लम कुछ भी इल्जाम लगाते हैं, मर्यादा खतरे में नहीं पड़ती। खुद प्रधानमंत्री संसद में हर तरह के स्वांग दिखा चुके हैं, मर्यादा कभी खतरे में नहीं आयी, वगैरह। सिंपल है। बिड़ला जी एक ही मर्यादा पढ़े हैं — शाखा वाली मर्यादा। शाखा हो कि संसद, वही मर्यादा बनी रहे।
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*2. केर-बेर की फ्रेंडशिप*
मोदी जी के विश्व गुरु होने का इससे बड़ा सबूत क्या होगा? अब तो ट्रम्प साहब ने भी अपने मोदी जी की तारीफ कर दी। कह दिया कि मोदी जी बड़े अच्छे दोस्त हैं। पर सौदेबाजी भी खूब करते हैं। खैर! खूब गुजरेगी जब बड़ा वाला सौदा करने बैठेंगे, दो अपने-अपने देश को फिर से महान बनाने वाले। अब क्या है, अब तो इंडिया की वल्ले-वल्ले!
पर इन विरोधियों को कौन समझाए। एक ही रट लगाए हुए हैं। मोदी सरकार ने ट्रम्प के आगे हथियार डाल दिए हैं, ट्रम्प के आगे समर्पण कर रही है। वहां से ट्रम्प का फरमान आता है कि फलां पर टैरिफ कम कर दो, मोदी सरकार कम कर देती है। ट्रम्प का फरमान आता है कि महंगा-सस्ता मत देखो, तुम तो अमरीका का तेल खरीदो, मोदी सरकार तेल खरीदने का करार कर आती है। ट्रम्प का हुकुम होता है कि मेरे जहाज खरीदो, मेरा फौजी साज-सामान खरीदो, मोदी सरकार शॉपिंग लिस्ट बनाने में जुट जाती है, वगैरह, वगैरह। और ट्रम्प बाकी सारी दुनिया के साथ भी जो कुछ कर रहा है, उसकी तरफ से आंखें मूंद लेती है, सो ऊपर से। लेकिन, विरोधियों की ये तोहमतें झूठी हैं। ट्रम्प अपनी छाती कितनी ही फुला ले, मोदी जी की छाती के इंच छप्पन से कम नहीं होंगे। वैसे भी डीयर फ्रेंड से कैसी होड़। दोस्ती में न कोई कंपटीशन, न कोई शर्त। रही बात टैरिफ वगैरह कम करने की तो, इसे सिर्फ संयोग ही कहा जाएगा कि ट्रम्प जो-जो करने को कह रहा है, मोदी सरकार वही-वही करती जा रही है। माना कि वह ट्रम्प की मर्जी का करती जा रही है, लेकिन वह कर रही है अपनी मर्जी से। ट्रम्प की धमकी में इतना दम कहां कि मोदी सरकार से अपने मन की करा सके! भारत का नुकसान कराने वाले काम कर रही है, पर अपनी मर्जी से कर रही है। इस मामले में आत्मनिर्भरता पर मोदी जी को कोई समझौता मंजूर नहीं है।
और जब ट्रम्प और मोदी, दोनों का मिशन एक है, दोनों अपने-अपने देश को फिर से महान बनाने में लगे हुए हैं, फिर दोनों में झगड़ा कैसा? वो जमाने गुजर गए, जब केर-बेर के संग में प्राब्लम होती थी। अब तो बेर जितना मस्ती में आएगा, केला उतना ही झुक जाएगा, प्राब्लम क्या है?
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*3. सब का मालिक एक है!*
कोई हमें बताएगा भी कि इसमें घोटाला-घोटाला का शोर क्यों मच रहा है? माना कि बीएसएनएल वाले अंबानी सेठ के जियो से अपनी परिसंपत्तियों के उपयोग के लिए किराया वसूल करना भूल गए। वसूल करना क्या भूल गए, जियो को बिल देना ही भूल गए। बिल देना भूले तो ऐसे भूले कि पूरे दस साल तक बिल देना भूले ही रहे। उधर मोदी जी का राज चलता रहा और इधर उनका सरकारी बीएसएनएल, सुपर कुंभकर्णी नींद सोता रहा। सुपर कुंभकर्णी यूं कि बेचारा कुंभकर्ण सोने के लिए बदनाम जरूर था, पर सोता एक बार में सिर्फ छ: महीने के लिए ही था। बीएसएनएल वाले दस साल तक सोये रह गए यानी बीस कुंभकर्णों की शयनशक्ति मोदी जी के राज ने बीएसएनएल में भर दी थी। वैसे मोदी जी के राज में यह तो होना ही था। आखिरकार, हिंदू संस्कृति और संस्कारों को आगे बढ़ाने वालों का राज है। और माना कि हिंदू संस्कृति में रामलला का खास महत्व है, पर कुंभकर्ण भी आता तो हिंदू संस्कृति में ही है। रावण, कुंभकर्ण वगैरह के बिना रामकथा कही जा सकती है क्या?
वैसे अब यह बात हम पक्के भरोसे से कह भी नहीं सकते हैं। जब से शिवाजी और संभाजी महाराज को याद करने के लिए औरंगजेब की कब्र खोदकर, उसका नामो-निशान मिटाने की होड़ शुरू हुई है, तब से कभी-कभी लगता है कि हो सकता है कि मोदी जी के राज में रावण, कुंभकर्ण वगैरह का नाम लेने पर रामभक्त बैन ही लगवा डालें। खैर! मुद्दे की बात यह है कि बीएसएनएल दस साल सोया ही रहा। और पुरानी कहावत है कि जो सोवत है, सो खोवत है। सोने के चक्कर में बीएसएनएल ने 1,757 करोड़ रूपये खो दिए। पर करे कोई और भरे कोई। लंबी तान कर सोया बीएसएनएल और विरोधी इसका दोष मोदी जी से लेकर अंबानी जी तक के सिर पर मढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
मोदी जी का तो इससे दूर-दूर तक कोई लेना-देना ही नहीं है। कोई एक जरा सी पुर्जी भी दिखा दे, तो हम कायल हो जाएंगे कि मोदी जी बीएसएनएल से जियो से किराया वसूल नहीं करने के लिए कहा था। आदेश छोड़िए, कहना भी छोड़िए, मोदी जी की तरफ ऐसे किसी इशारे का भी कोई सबूत नहीं मिलेगा। मोदी जी की तरफ से तो बीएसएनएल को सो जाने और सोए रहने के लिए कहने का भी कोई सबूत नहीं मिलेगा। अब अगर मोदी जी के राज में बीएसएनएल को भूखा मारे जाने से, बीएसएनएल को बेहोशी आ गयी हो और बेहोशी अगर लंबी नींद में तब्दील हो गयी हो, तो इसमें मोदी जी का क्या कसूर? कसूर तो बीएसएनएल की नींद का ही माना जाएगा।
रही बात अंबानी सेठ की कंपनी जियो की, तो उसका तो खैर दूर-दूर तक कोई कसूर नहीं बनता है। अब आप जियो से यह उम्मीद तो नहीं ही कर सकते हैं कि वह ऐसे बिलों का भी भुगतान करता फिरेगा, जो उसे कभी दिए ही नहीं गए। सिर्फ इसलिए कि बिल पौने दो हजार करोड़ रूपये से ज्यादा का था, जियो वाले खुद ही पूछ-पूछकर बिल जमा कराते फिरेंगे, इसकी मांग करना तो किसी भी तरह से जायज नहीं माना जाएगा। बिल आया होता और जियो ने भुगतान नहीं किया होता, तब तो एक बार को उस पर यह इल्जाम लगाया भी जा सकता था कि वह भुगतान से बच रहा था या बीएसएनएल का पैसा मारने की कोशिश कर रहा था। लेकिन, जब बिल ही नहीं आया तो भुगतान कैसा? और भी बहुत गम हैं अंबानी की जियो की जान को, बीएसएनएल का किराया भरने के सिवा।
और मान लो बीएसएनएल का पौने दो हजार करोड़, अंबानी की कंपनी के पास पड़ा ही रह गया, तो कोई गजब नहीं हो गया। पौने दो हजार करोड़ रूपये से बीएसएनएल कंगाल से मालामाल नहीं हो जाता। पैसा बीएसएनएल के पास रहता तो, और जियो के पास रह गया तो, क्या फर्क पड़ने वाला था। बीएसएनएल हो या जियो, मोदी जी सब को एक ही नजर से देखते हैं। आखिर, सब का मालिक एक है।
*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*
[13/04, 03:14] Sanjay Pareta Raipur: *प्रकाशनार्थ*
*(With English Version)*
*अब व्यापार के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण : शर्बत भी बंटा हिन्दू और मुस्लिम में!*
*(आलेख : संजय पराते)*
रामदेव के संघी झुकाव के बारे में सब जानते हैं। सब जानते है कि उसके भगवा चोले के अंदर एक कॉर्पोरेट बैठा हुआ है। रामदेव संघ-भाजपा की हिंदुत्व और कॉर्पोरेट गठजोड़ की राजनीति का नमूना भी है और उसका उत्पाद भी। इस रामदेव को लोगों ने सलवार-कुर्ता में डरकर भागते भी देखा है। इस पहनावे को आम तौर पर मुस्लिमों का पहनावा माना जाता है। कहा जा सकता है कि रामदेव के कायर हिंदुत्व को बचाया मुस्लिम पहनावे ने ही था। लेकिन यही रामदेव आज इस्लाम और मुस्लिमों के बारे में नफरत और डर फैलाने के उस्ताद बन गए हैं।
उनका ताजा बयान है : ”शरबत के नाम पर एक कंपनी है, जो शरबत तो देती है, लेकिन शरबत से जो पैसा मिलता है, उससे मदरसे और मस्जिदें बनवाती है। अगर आप वो शरबत पिएंगे, तो मस्जिद और मदरसे बनेंगे और पतंजलि का शरबत पिएंगे, तो गुरुकुल बनेंगे, आचार्य कुलम बनेगा, पतंजलि विश्वविद्यालय और भारतीय शिक्षा बोर्ड आगे बढ़ेगा। इसलिए मैं कहता हूं ये शरबत जिहाद है. जैसे लव जिहाद, वोट जिहाद चल रहा है, वैसे ही शरबत जिहाद भी चल रहा है।”
रामदेव का यह बयान सोशल मीडिया में एक वीडियो के रूप में तैर रहा है। इस बयान में उनका इशारा रूह आफ़ज़ा की ओर है, लेकिन इसकी गुणवत्ता को वे कोई चुनौती नहीं दे रहे हैं। यह एक गैर-एल्कोहोलिक पेय है, जिसे ब्रिटिश भारत के अंतर्गत 1906 में गाजियाबाद में हकीम हाफिज अब्दुल मजीद द्वारा तैयार किया गया था। वे यूनानी दवाओं के विशेषज्ञ थे और उन्होंने कुछ यूनानी जड़ी-बूटियों और सिरप की मदद से एक घोल (शरबत) तैयार किया, जो लोगों को गर्मियों में लू से काफी राहत देता था। लेकिन इस शरबत का मुख्य अवयव गुलाब था। अब इसका निर्माण हमदर्द फार्मास्युटिकल द्वारा किया जा रहा है, जो आज एक नामी-गिरामी कंपनी है। इसके बोतल से जानकारी मिलती है कि आज इसे 8 प्रकार की जड़ी-बूटियों और 8 प्रकार के फलों और सब्जियों के अर्क से बनाया जा रहा है। अपने 115 वर्षों की यात्रा के दौरान इसकी गुणवत्ता पर अभी तक कोई आंच नहीं आई है। रूह आफ़ज़ा के समानांतर दिल आफ़्ज़ा नाम का एक भ्रामक उत्पाद भी बाजार में उतारा गया था, जिसकी बिक्री पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी, जिसकी पुष्टि बाद ने सुप्रीम कोर्ट ने भी की।
दूसरी बात, रूह आफ़ज़ा के बारे में अभी तक ऐसी कोई अधिकृत रिपोर्ट नहीं है कि इसकी बिक्री से होने वाली आय से इसके निर्माताओं ने मस्जिद या मदरसे का निर्माण किया है, जिसका आरोप रामदेव लगा रहे हैं। उन्हें अपने आरोप का सबूत भी पेश करना चाहिए था। सार्वजनिक रूप से जो जानकारी उपलब्ध है, उसके अनुसार, इस पेय की निर्माता कंपनी हमदर्द एक गैर लाभकारी ट्रस्ट द्वारा संचालित है। यह धर्मनिरपेक्ष रुख अपनाती है, क्योंकि यह होली और ईद दोनों पर उत्सव का आयोजन करती है। वर्ष 2008 में इस कम्पनी ने जूही चावला को अपना ब्रांड एम्बेस्डर बनाया था। यदि इसका रुख इस्लाम-आधारित होता, तो वह जूही चावला को कभी भी अपना ब्रांड एंबेसडर नहीं बनाती।
तीसरी बात, रामदेव यह स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि उनके शर्बत से होने वाली आय का उपयोग उस शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए होगा, जिसे संघी गिरोह प्रमोट करना चाहता है, और निश्चित ही, यह शिक्षा वैज्ञानिक मानसिकता पैदा करने से कोसों दूर होगी और वर्णाश्रम आधारित होगी। ऐसी शिक्षा संविधान के बुनियादी मूल्यों के खिलाफ जाती है और रामदेव अपने मुनाफे का उपयोग इस देश की धर्मनिरपेक्षता और संवैधानिक मूल्यों की जड़ों को खोदने के लिए करने के लिए जा रहे हैं।
अब आईए, कुछ बातें रामदेव के पतंजलि के बारे में कर लें। यह कंपनी वर्ष 2006 में रामदेव और उनके चेले बालकृष्ण ने शुरू की थी और आज यह कंपनी टूथपेस्ट से लेकर स्किन केयर तक और बुखार से लेकर टायफाइड तक लगभग सारे उत्पाद बनाती-बेचती है और आज यह कंपनी 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की हो गयी है। पतंजलि की विकास गाथा टीवी पर योग के प्रचार से एक कॉर्पोरेट में रामदेव के बदलने की कहानी है। इस बदलाव में लुटेरे और परजीवी पूंजीवाद के छल-कपट-धोखाधड़ी के सारे तत्व मौजूद है।
अपने उत्पादों, जिसकी गुणवत्ता हमेशा संदेह के घेरे में और विवादित रही है, को प्रोजेक्ट करने के लिए रामदेव आधुनिक चिकित्सा पद्धति और एलोपैथी को हमेशा गरियाते रहे हैं। कोरोना संकट के समय उनका दावा था कि लाखों मरीजों की मौत एलोपैथी से ट्रीटमेंट के कारण हुई और इसकी जगह उन्होंने वर्ष 2020 में अपनी कोरोनिल को प्रोजेक्ट किया, जो निष्प्रभावी पाई गई और मोदी सरकार के आयुष मंत्रालय को भी इस दवा के ‘घटिया होने’ के तथ्य को स्वीकार करते हुए इसे प्रतिबंधित करना पड़ा है। इसके पहले, वर्ष 2016 में उनकी पतंजलि कंपनी का आंवला रस जांच में गुणवत्ताहीन पाया गया था और सेना की कैंटीनों से उसे वापस किया गया था। उनके गाय के घी की गुणवत्ता पर भी सवालिया निशान लगा है और वर्ष 2006 में तो माकपा नेता वृंदा करात ने रामदेव पर अपनी दवाओं में इंसानों और जानवरों की हड्डियों को मिलाने का आरोप ही लगा दिया था। यह जानकारी रामदेव के कारखाने में काम करने वाले मजदूरों ने ही उन्हें दी थी। इन मजदूरों का आरोप था कि न तो उन्हें न्यूनतम मजदूरी दी जाती है और न ही श्रम कानूनों का पालन ही किया जाता है। श्रम विभाग की जांच के बाद मजदूरों के ये आरोप सही पाए गए थे। इस प्रकार, रामदेव की संपत्ति मजदूरों की आह और उनके खून-पसीने में लिथड़ी संपत्ति है और पतंजलि का मुनाफा नकली और भ्रामक उत्पादों को बेचकर अर्जित किया गया अनैतिक मुनाफा है।
रूह आफ़ज़ा के बरक्स रामदेव जिस गुलाब शर्बत को पेश कर रहे हैं, उसमें भी पतंजलि की कोई खोज या अनुसंधान नहीं है, क्योंकि इसका असली तत्व गुलाब ही है, जिसकी खोज हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने 115 साल पहले ही कर ली थी। इसलिए यह रूह आफ़ज़ा की नकल भर है और पुरानी शर्बत से यह उन्नीस ही बैठेगी, बीस नहीं।
लेकिन विवाद नकली और असली या उन्नीस और बीस पेय का नहीं है। विवाद है, पतंजलि के गुलाब शर्बत को प्रोजेक्ट करने के तरीके पर। हमारे संविधान का कोई भी प्रावधान और कानून इसकी इजाजत किसी को नहीं देता कि आप अपने उत्पाद को प्रोजेक्ट करते हुए और अपने व्यवसाय के मुनाफे को बढ़ाने के लिए धर्म के आधार पर नफरत फैलाने, गलतबयानी करने की बात करें और किसी भी पेय को हिंदू पेय और मुस्लिम पेय में बांटने की हिमाकत करें और अपने शर्बत को बेचने के लिए मुस्लिमों पर शर्बत जेहाद फैलाने का आरोप लगाएं। यह वह चालबाजी है, जिसे अंग्रेजों ने अपनाया था और आज रामदेव अपना रहे हैं।
एक स्वतंत्र पत्रकार संजीव शुक्ल ने अपने एक आलेख ‘हिंदू शर्बत और मुस्लिम शर्बत’ में एक अद्भुत घटना का जिक्र किया है। उनके शब्दों में :
“बात तब की है, जब लाल किले पर आजाद हिंद फौज के सैनिकों पर मुकदमा चल रहा था। सभी सैनिकों को यहीं कैद किया गया था। कर्नल सहगल, ढिल्लन और शाहनवाज पर मुकदमा चलाया गया। ये सैनिक भारत के स्वाभिमान के प्रतीक बन चुके थे। पूरा देश इनके साथ खड़ा था। कांग्रेस आजाद हिंद फौज डिफेंस कमेटी बनाकर इन सैनिकों के बचाव में खड़ी हो गई। भिन्न राह होने के बावजूद पूरी कांग्रेस सुभाष बाबू के फौज के सेनानायकों के साथ थी। नेताजी की अनुपस्थिति में नेहरू अपनी जिम्मेदारी से वाकिफ थे। अरसे बाद उन्होंने वकील का चोगा पहना। इन सैनिकों की गिरफ्तारी और उन पर मुकदमा चलाए जाने से पूरा देश आंदोलित था। धर्म और जाति की दीवारें टूट चुकी थीं।
पर सरकार इस एकता को तोड़ना चाहती थी। सरकार हमेशा की तरह “बांटो और राज करो” की नीति के तहत राष्ट्रीय एकता को सांप्रदायिक रंग देकर खंडित करना चाहती थी। सैनिकों के लिए सुबह जो चाय आती, उसे हिंदू चाय और मुस्लिम चाय का नाम दिया गया, जबकि सभी सैनिक इस तरह के बंटवारे के सख्त खिलाफ थे। पर सरकार का हुक्म था कि हर हाल में हिंदू चाय अलग बनेगी, मुस्लिम चाय अलग बनेगी और इसी नाम से बांटी जाएगी।
सुबह-सुबह हांक लगती थी – “हिंदू चाय… मुस्लिम चाय…!” क्रांतिकारी भी इस नफरती व्यवहार को न मानने के लिए कटिबद्ध थे। सो, सुबह चाय आती और क्रांतिकारी उसे एक बड़े बर्तन में मिला देते। फिर बांटकर पी लेते। यह एकता की अद्भुत मिसाल थी।”
हमारे देश के स्वाधीनता आंदोलन ने धर्म और जाति की जिन दीवारों को तोड़ दिया था, संघ-भाजपा और उसका समर्थक कॉर्पोरेट आज उन्हीं दीवारों को फिर से खड़ा करने में जुटा है, ताकि अपने मुनाफे को अधिकतम और सुरक्षित कर सकें। आज की राजनैतिक चुनौती यही है कि हिंदुत्व की राजनीति के साथ कॉरपोरेटों के इस अपवित्र गठबंधन को मात दी जाएं और इसके लिए जन पक्षधर नीतियों के आधार पर शोषित-उत्पीड़ितों का, आदिवासी-दलितों का, मजदूर-किसानों का एक व्यापक संयुक्त गठबंधन खड़ा किया जाएं। इसमें जितना देर लगेगा, देश की एकता और अखंडता का, शांति और सांप्रदायिक सौहार्द्र का, सामाजिक न्याय, समानता और भाईचारे का उतना ही नुकसान होगा, क्योंकि संघी गिरोह और उनका रामदेव ठीक इन्हीं मूल्यों के खिलाफ खड़ा है।
*(लेखक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)*
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