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राष्ट्र~ चिंतन :सारे जहां से अच्छा : समसामयिक अध्ययन !

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पुष्पा गुप्ता (महमूदाबाद)

  _केवल यह गा लेने भर से कि हम दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देश हैं, कुछ नहीं होता। श्रेष्ठ कहलाने के लिए श्रेष्ठ बनना भी पड़ता है। लोकतंत्र के सूचकांक में भारत देश का नंबर छियालीसवां है। सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता नहीं है। हिंदोस्तां से पहले पैंतालीस मुल्क और हैं।_
    इससे भी अफसोस की बात यह है कि दो हजार चौदह के बाद से हमारी रेंकिंग गिरी है। दो हजार चौदह यानी मनमोहन सिंह के शासन काल में भारत की रैंकिंग सत्ताइसवीं थीं। यानी लोकतंत्र के पालन और लोकतंत्र को सही तरीके से लागू करने के मामले में हमारा देश सत्ताइसवें नंबर पर था।

अब यह भी समझें कि यह रेंकिंग कैसे दी जाती है। कौनसा देश संविधान पर कितना अमल करता है, कानून अमीर गरीब सबके लिए बराबर है या नहीं है, सभी संवैधानिक संस्थाएं स्वतंत्र हैं या सरकार के दबाव में काम करती हैं यह सब बातें देखी जाती हैं।
  _एक उदाहरण यह है कि जब स्पेक्ट्रम घोटाले में केंद्रीय मंत्री पर आरोप लगा था, तो मनमोहन सरकार के दौरान मंत्री और अन्य आरोपियों को जेल जाना पड़ा था। इधर अजय मिश्रा टेनी पर धारा 302 और धारा 120 बी के तहत आरोप हैं और वे मंत्री बने हुए हैं। श्रेष्ठ लोकतंत्र उसे माना जाता है जिसमें कानून अपना काम करे।_
     दो हजार चौदह से तुलना की जाए तो क्या अदालतें आज स्वतंत्र मानी जाती हैं? क्या न्याय व्यवस्था पर देश के आम आदमी को संदेह नहीं है।

दो हजार चौदह से पहले केवल सीबीआई ही थी जिसके राजनीतिक दुरुपयोग का आरोप लगता था। अब इसमें ईडी, चुनाव आयोग और केंद्रीय नारकोटिक्स विभाग भी जुड़ गया है। कोई भी देश अल्पसंख्यकों के साथ कैसा बर्ताव करता है, इसे भी लोकतंत्र के सूचकांक में परखा जाता है।
लव जेहाद जैसा कानून बनाकर हम लोकतंत्र के सूचकांक में ऊपर नहीं जा सकते, नीचे ही गिर सकते हैं। अमेरिका में एक अश्वेत आदमी की हत्या पुलिस वाले ने की तो पूरा अमेरिका हिल उठा और हमारे यहां हिरासत में, फेक एनकाउंटर में कितने ही दलित अल्पसंख्यक मारे जाते हैं, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
इसके बावजूद अमेरिका लोकतंत्र सूचकांक में छब्बीसवें नंबर पर है।

नार्वे इसलिए नंबर वन है कि वहां धर्म की कोई लड़ाई नहीं है। लगभग पूरा देश ही नास्तिक है और केवल देश के नियम कानून ही हैं जिन्हें वो मानता है। न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री एक ऐसी महिला है जिन्हें बिना शादी अपने प्रेमी से बच्चा है।
क्या हम स्वतंत्र महिला को इतना सम्मान दे सकते हैं? क्या हम संकीर्ण मनोदशा के साथ सारे जहां से अच्छा होने की कल्पना कर सकते हैं। सुनने में अच्छा लगता है सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा। मगर हम श्रेष्ठता की सूची में छियालीसवें नंबर पर हैं हमे यह याद रखना चाहिए और कोशिश करना चाहिए कि सच मे सारे जहां से अच्छे बन सकें।
[लेखिका चेतना विकास मिशन की संयोजिका हैं.)

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