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पुनर्जन्म : फ़साना नहीं, हक़ीक़त

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 डॉ. विकास मानव

       _वैदिक दर्शन सहित नास्तिक अनीश्वरवादी विचारधाराओं जैसे की बौद्धों में भी पुनर्जन्म को माना गया है। अब्राहमिक विचारधाराओं जैसे इस्लाम, ईसाईयत और यहुदीयों में भी मृत्यु पश्चात् जीवन को माना जाता है पर यह धार्मिक विचारधारा से अलग है।_

      विश्व की प्राचीन से प्राचीन सभ्यताओं जैसे मेसोपोटेमिया, मिस्र और हड़प्पा सभी में मृत्यु पश्चात् जीवन की मान्यता है। इसलिए अवश्य ही इस मान्यता के पीछे कारण रहा होगा। 

अब्राहमिक विचारधाराओं में मृत्यु पश्चात् हमेशा के लिए स्वर्ग या नर्क में पुनर्जीवन मिलता है।

       जबकी वैदिक दर्शन में मृत्यु के बाद कर्म, भक्ति तथा ज्ञान अनुसार अगला जन्म अथवा जीवन प्राप्त होता है; यह जन्म दुबारा से इसी लोक में या इसी की भांति किसी भी अन्य पृथ्वी जैसे लोक में हो सकता है, या फिर किसीने महान् पुण्य किए हों तो उनका भोग वह स्वर्ग में भोगता है और फिर दुबारा इस मृत्यु लोक में आना पड़ता है या किसीने महान् पाप किए हों तो उनका भोग नर्क में भोगना पड़ता है और दुबारा इस मृत्यु लोक में आना पड़ता है, पृथ्वी लोक पर जीव का अगला जन्म पशु-पक्षी, पेड़-पौधे इत्यादि योनियों में भी हो सकता है; यह पुनर्जन्म का चक्र चलता रहता है जब तक कैवल्य अर्थात् परममोक्ष न हो जाए। 

पुनर्जन्म के लिए किसी ईश्वर की ही आवश्यकता है यह भी ज़रूरी नहीं, हो सकता है यह प्राकृतिक रूप से ही हो। अनीश्वरवादी बौद्ध दर्शन मे इसे प्राकृतिक कहा गया है, तथा कुछ अनीश्वरवादी वैदिक दर्शनों में भी इसे ईश्वर द्वारा संचालित नहीं कहा गया है। 

        धार्मिक विचारधारा में तो यही माना जाता है की पुनर्जन्म के बाद भी पिछले जन्मों की यादें बची रहती हैं और वो उसे संयोगवश नए जन्म में याद आ जाती है अथवा मृत्यु पश्चात् याद आती हैं और फिर उसे नया जन्म मिलता है अथवा वो किसी ऐसे लोक में जन्म लेता है जहाँ वो पिछले जन्म की यादों के साथ ही जीता है।

       यानी धार्मिक विचारधारा जैसे सनातन धर्म, जैन तथा बौद्धों मे यह नहीं माना जाता की मृत्यु के बाद पिछली सारी यादाश्त हमेशा के लिए समाप्त होती हैं। ऐसा ही अब्राहमिक विचारधाराओं मे भी है की मृत्यु के बाद हमेशा के लिए स्वर्ग या नर्क में जीव रहेंगे तो उनकी यादें उनके साथ ही रहेंगी। 

 *पुनर्जन्म का प्रमाण :*

      हमारे पास अभी तक पुनर्जन्म का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। पर ऐसे कुछ लोगों पर हुए प्रयोग और शोध अवश्य हैं जिससे हम अनुमान के आधार पर कह सकते हैं की पुनर्जन्म होता है क्योंकि इन कुछ लोगों को अपने पिछले जीवन का पता था पर फिर भी यह प्रयोग यह सिद्ध नहीं करते की पुनर्जन्म होता है क्योंकि लगभग 99.9% लोगों को अपने पिछले जन्म का पता ही नहीं है।

        तो अंत में हम यही कह सकते हैं की अभी तक वैज्ञानिक आधार पर यह प्रमाणित नहीं हुआ है की पुनर्जन्म होता है और अभी तक वैज्ञानिक आधार पर यह भी प्रमाणित नहीं हुआ है की पुनर्जन्म नहीं होता है। हो भी सकता है और नहीं भी। 

        धार्मिक विचारधाराओं में माने जाने वाले पुनर्जन्म के ऊपर कई लोग प्रश्न चिह्न खड़ा करते हैं की यदि हमारा पुनर्जन्म होता है तो हमें याद क्यों नहीं रहता और यदि हमें पिछले जन्म के पापों की यातना मिल रही है तो हमें यह याद क्यों नहीं है की वह पाप था क्या? इन प्रश्नों के उत्तर में यही कहा जा सकता है की कारण कुछ भी सकता है।

 हो सकता है यह प्राकृतिक रूप से होता हो या ईश्वरीय इच्छा से होता हो की जन्म लेते ही अधिकतर लोग अपना पिछला जन्म भूल जाते हैं और मृत्यु पश्चात् उन्हें वो याद आ जाता हो और उन्हें पता चल जाता हो या उन्हें बताया जाता हो की तुम्हें इस पाप की सज़ा मिली, कुछ भी कारण हो सकता है इसलिए केवल इन प्रश्नों के आधार पर धार्मिक विचारधाराओं के पुनर्जन्म को झूठा सिद्ध नही किया जा सकता। 

         तो अब प्रश्न यह बनता है की पुनर्जन्म को मानें या न माने? तो इसका उत्तर यह है की यदि किसी बात के सच होने या झूठ होने का हमारे पास प्रमाण न हो और उसे सच मान लेने से हमें किसी भी प्रकार से मानसिक या शारीरिक नुकसान न हो तो उसे सच मानने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए और यदि उस बात को सच मानने से हमें लाभ भी मिले और न मानने से अवसाद या नुकसान मिले तब तो उसे सच मानने में ही भलाई है, यह कोई अंधविश्वास नहीं।

       अंधविश्वास उसे कहते हैं जिसपर हम बिना किसी कारण के विश्वास कर लें या फिर झूठ पर विश्वास कर लें। पुनर्जन्म को मानने से लाभ ही है, यूं ही नहीं विश्व भर की प्राचीन से प्राचीन सभ्यताओं में मृत्यु पश्चात् जीवन की अवधारणा रही है! यह ज़रुरत थी।

         पुनर्जन्म को मानने का लाभ यह है की यह मनुष्य को उम्मीद देता है, प्रसन्नता देता है की मृत्यु पश्चात् भी वह जीवित रहेगा। 

अब्राहमिक विचारधारा के सिवाय धार्मिक विचारधारा के अनुसार पुनर्जन्म को श्रद्धा से मानने वालों को यह लाभ भी होता है की उन्हें प्रकृति, पर्यावरण और समाज सेवा न करने का थोड़ा भय बना रहता है क्योंकि अच्छे कर्म नहीं किए तो दुबारा पुनर्जन्म मिलेगा या अगले जन्म में उसकी सज़ा मिलेगी या हो सकता है हमें इसी पृथ्वी पर अगला जन्म मिले इसलिए हम पर्यावरण का ध्यान रखें।

        पुनर्जन्म को मानने से हमें यह भी संतुष्टि मिलती है की जिन्होंने बुरे कर्म किए हैं उन्हें यदि यहाँ पृथ्वी पर किसी कारण से दण्ड नहीं मिला तो मृत्यु पश्चात् अवश्य मिलेगा, इससे दूसरों को भी सीख मिलती है और भय रहता है की हम बुरे कर्म न करें। कर्म सिद्धांत पूर्ण तभी होता जब पुनर्जन्म हो, बिना पुनर्जन्म के कर्म सिद्धांत अधुरा और असंतुलित रह जाता है।

         पुनर्जन्म को न मानने से इस उम्मीद, प्रसन्नता और संतुष्टि का नाश हो जाता है और भोगवाद उत्पन्न हो जाता है की केवल यही जीवन है तो इसे जैसा मर्जी जीना है जी लो, पाप करो पुण्य करो कोई फर्क नहीं पड़ता, गुप्त रूप से पाप कर लेंगे तो कौन सज़ा देगा?

         पर इसका अर्थ यह नहीं है की पुनर्जन्म को मानने वाले पापी नहीं होते। पर यह न मानना अवश्य इस भोगवाद के बीज को डाल ही देता है और इसे बढ़ावा भी देता है। 

 हालांकि “वेदान्त दर्शन” योग्य खोजी साधकों को इस बात का अनुभूति द्वारा साक्षात प्रमाण देता है की मृत्यु के पश्चात् भी उसका अस्तित्व है और जन्म के पहले भी था, इसलिए वेदान्त दर्शन में बिना ठोस प्रमाण के किसी भी बात को नहीं माना जाता। वेदान्त दर्शन में पुनर्जन्म को मानने वाले और न मानने वालों के लिए भी स्थान है अर्थात् ऐसा नहीं है की जो पुनर्जन्म को नहीं मानता वो वेदान्त द्वारा अपना कल्याण नहीं कर सकता, जैसे जैसे वो वेदान्त को समझेगा वैसे वैसे वो सच्चाई को जानेगा और इस पुनर्जन्म के रहस्य को समझ लेगा।

        वेदान्त दर्शन योग्य खोजी साधकों को यह तो कहता है की मृत्यु पश्चात् भी अस्तित्व है इसका खोजियों को साक्षात्कार भी करा देता है, पर यह भी प्रमाण सहित यह नहीं कहता की मृत्यु पश्चात् भी ऐसा ही जीवन है, कोई शरीर मिलेगा या स्वर्ग, नर्क इत्यादि है, पर यह सब होने से यह मना भी नहीं करता क्योंकी इसकी संभावना इस दर्शन में खोजियों को स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ जाती है, और वेदान्त दर्शन को समझने के बाद ये “अगले जन्म की लालसा, स्वर्ग-नर्क” सब तुच्छ सुख लगने लग जाते हैं। 

        पर हां जिसे संयोगवश या ईश्वरीय कृपा से विशेष सिद्घी प्राप्त हो जाती है वह अपने पिछले जन्मों को जान जाता है और यह भी ज़रूरी नहीं की वो सिद्धी प्राप्त पुरुष केवल वेदान्ती ही हो। 

 कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पुनर्जन्म को इस तरह से देखते हैं की मृत्यु के बाद जीव का पुनर्जन्म तो होता है पर उसके पिछले जन्म की सारी यादें खत्म हो जाती हैं वो कभी याद नहीं आ सकती और इस नए जन्म में मृत्यु होने के बाद भी वो याद नहीं आऐंगी बस एक और नया जन्म मिल जाएगा। 

       तो पुनर्जन्म को इस प्रकार देखनेवालों के पास भी अभी तक यह ठोस प्रमाण नहीं है की पिछले जन्म की यादें हमेशा के लिए नष्ट हो जाती हैं या वे कभी याद आ ही नहीं सकतीं। इसलिए इस तरह से पुनर्जन्म को मानना और न मानने मे तो कोई अन्तर ही नहीं रहा, क्योंकि पुनर्जन्म को मनुष्यों द्वारा माना ही जा रहा है इस उम्मीद, प्रसन्नता और संतुष्टि से की मृत्यु के बाद भी उसकी यादें उसके साथ रहेंगी।

       जब यादें ही नहीं रहेंगी तो भला उसके लिए पुनर्जन्म का औचित्य ही क्या रह जाएगा?

       इसलिए पुनर्जन्म पर विश्वास करना कोई अंधविश्वास नहीं है परंतु एक आवश्यकता है जिसका लाभ ही है। पर यदि कोई इसपर विश्वास नहीं करना चाहता तो यह भी उसी की इच्छा है। 🍃

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