नीलमज्योति
_ध्यान में प्रवेश करने के बाद शराब पीना तो दूर की बात है, शराब पीने का विचार करना ही कठिन होगा। व्यक्ति शराब पीने के विषय में सोच भी नहीं सकता है। वह यदि सही में ध्यानी है तो उसे शराब पीने की जरूरत ही नहीं रहेगी। क्योंकि शराब में हमारा जिस भावदशा में प्रवेश होता है, ध्यानी उस भावदशा में जी रहा होता है।_
यानि शराब पीने के बाद हमें थोड़ी देर के लिए जो मस्ती आती है उसी मस्ती में ध्यानी जी रहा होता है। अर्थात ध्यानी चौबिस घंटे नशे वाली मस्ती में रहता है। वह होश में जी रहा होता है। इसलिए उसे शराब पीने की जरूरत ही नहीं रहेगी।
*शराब से शरीर में होने वाला परिवर्तन*
जब हम शरीर में शराब को डालते हैं तो हमारा शरीर तनाव मुक्त होने लगता है। शिथिल होने लगता है, रिलेक्स होने लगता है। क्योंकि शराब हमारे शरीर को सुलाने का काम करती है। नींद में ले जाने का काम करती है। शराब पीने के बाद हमारी श्वास गहरी होकर नाभि तक जाने लगती है और शरीर नींद की भावदशा में आ जाता है।
जैसे ही शरीर नींद की भावदशा में आता है हमारा चेतन मन सो जाता है और अचेतन मन जाग जाता है। यानि शराब में हमारा अचेतन मन में प्रवेश होता है।
शराब में हमारा अचेतन मन काम करता है तभी तो शराब में वह वे सारी बातें भी बता देता है जो नहीं बतानी चाहिए थीं! शराब में हम उस स्थिति में होते हैं जिस स्थिति में सम्मोहन वाली नींद में होते हैं। शराब में हम उस स्थिति में होते हैं जिस स्थिति में हम सपने वाली नींद में होते हैं।
शरीर नींद में सोया हुआ होता है तो हमारा अचेतन सपना बनाकर दिखाता है और नशे में शरीर जागा हुआ होता है तो सामने से सीधे तौर पर कह देता है।
शराब में हमारा अचेतन मन के तल पर प्रवेश होता है। शराब में जो आनंद है वह अचेतन मन में प्रवेश करने का आनंद है। यानि चेतन मन के सोने और अचेतन मन के जागने का आनंद है। शराब हमारे शरीर को जागते हुए उस तल पर ले जाती है जिस तल पर हम नींद में होते हैं और सपने देख रहे होते हैं।
शराब में जैसे ही हमारा शरीर नींद में प्रवेश करता है उसके साथ ही हमारा चेतन मन भी सो जाता है और अचेतन मन जाग जाता है। अतः शराब जागते हुए अचेतन मन में प्रवेश करवाती है।
*ध्यान से शरीर में होने वाला परिवर्तन :*
ध्यान में हम शरीर को शिथिल कर विश्राम में ले जाते हैं जिससे हमारा शरीर गहरी श्वास लेते हुए नींद वाली भावदशा में आ जाता है। और ज्यों ही शरीर गहरी श्वास लेता है शरीर से तनाव हटने लगते हैं और शरीर से तनाव के हटते ही हमारे मन से भी तनाव हटने लगते हैं, जिससे चेतन मन सो जाता है और अचेतन मन जाग जाता है। हम साक्षी हो अचेतन में प्रवेश कर जाते हैं, ध्यान में प्रवेश कर जाते हैं।
ध्यान में हमारी श्वास सतत नाभि तक चलती है, जैसी नींद में चलती है, गहरी नाभि तक जाती हुई। और गहरी श्वास से शरीर तनाव मुक्त हो विश्राम में होता है। शरीर शिथिल हो कर विश्राम में होता है तो मन भी शिथिल होकर विश्राम में जाने लगता है, सोने लगता है।
जैसे ही चेतन मन सोने लगता है अचेतन मन जागने लगता है। और ध्यानी हमेशा के लिए उस भावदशा में प्रवेश करता है जिस भावदशा में शराब पीने के बाद हमारा थोड़ी देर के लिए प्रवेश होता है।
शरीर के शांत और शिथिल होने पर हमारा अचेतन मन के तल पर प्रवेश हो जाता है। अचेतन मन में प्रवेश करने पर हम निर्विचार हो जाते हैं और आनंद से भर उठते हैं।
शरीर को शिथिल और शांत करने के लिए हम शरीर में शराब डालते हैं ताकि हमारा अचेतन मन में प्रवेश हो और हम आनंदित हो सकें। और ध्यानी श्वास को गहरी कर नाभि तक ले जाकर शरीर को शिथिल करके अचेतन मन में प्रवेश करता है। शराब में हम हम सोए हुए होते हैं और ध्यानी ध्यान में जागा हुआ होता है।
यदि शराब में हम जाग जाते हैं, होश से भर जाते हैं तो हमें फिर शराब की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि हमें पता चल जाएगा कि शराब शरीर को नींद की भावदशा में लाती है तो क्यों न हम श्वास को गहरी करके शरीर को नींद वाली भावदशा में ले जाएं और हमारा अचेतन मन में प्रवेश हो और हम ध्यान को उपलब्ध हो सकें!
*ध्यानी शराब पीए तो क्या होगा?*
ध्यानी पहले से ही उस तल पर खड़ा हुआ है जिस तल पर हमारा शराब पीने के बाद प्रवेश होता है। अचेतन मन के तल पर।
यदि ध्यानी शराब पी लेगा तो उसका शरीर और भी शिथिल होगा। वह और भी सजग हो जाएगा। और भी होश से भर जाएगा। उसका शरीर तो बेहोशी में होगा लेकिन वह भीतर पूरी तरह से जागा हुआ होगा। वह क्या कह रहा है और किससे कह रहा है इस बात का उसे पूरा बोध होगा।
नशा उतरने के बाद भी उसे पता होगा कि उसने कब किससे क्या बात कही है। जबकि हम नशे में बेहोश होते हैं। हमने किससे क्या बात कही है हमें इस बात का कोई पता नहीं होता है। अतः ध्यानी और शराबी में सिर्फ होश और बेहोशी का ही फर्क होता है।
ध्यानी के लिए शराब बाधा है क्योंकि शराब शरीर को बेहोश करके जिस तल पर ले जाती है, उस तल पर वह जागा हुआ पहले से ही खड़ा हुआ होता है। शराब अचेतन मन के तल पर प्रवेश करवाती है जबकि ध्यानी पहले से ही अचेतन मन के तल पर खड़ा हुआ होता है।
अतः ध्यानी के लिए शराब पीना ठीक वैसा ही है जैसे हमने एक जोड़ी कपड़े पहने हुए हैं और उपर से एक जोड़ी कपड़े और पहन लिये हों!