यदि कर्नाटक में बीजेपी की जीत होती है तो मध्यप्रदेश में भी विधानसभा चुनाव में नेता पुत्र-पुत्रियों के टिकट का रास्ता साफ हो सकता है। दरअसल, कर्नाटक में भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए अपने बुजुर्ग नेताओं को टिकट देने की बजाय उनके बेटे-बेटियों और रिश्तेदारों को टिकट दिया है। वहां 20 से अधिक मंत्री, विधायक व सांसदों के बेटे-बेटी व रिश्तेदार चुनाव लड़ रहे हैं। मध्यप्रदेश में ऐसे दर्जनभर नेता हैं, जिनके बेटा-बेटी चुनावी लॉन्चिंग के लिए तैयार हैं।
कर्नाटक में हो रहे विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों को चुनने में बीजेपी ने कोई जोखिम नहीं लिया। केंद्रीय नेतृत्व ‘राजनीति में परिवारवाद’ से पल्ला झाड़ने की अपनी कोशिश में भी कामयाब नहीं हो सका। अगर वहां लिए फैसलों से पार्टी सत्ता हासिल करने में कामयाब होती है तो यह फॉर्मूला मध्यप्रदेश में भी लागू होने की संभावना बढ़ जाएगी। यह इसलिए भी, क्योंकि पार्टी ने कर्नाटक में ‘गुजरात मॉडल’ दोहराने से परहेज किया है। कर्नाटक में टिकट वितरण के बाद मध्यप्रदेश में नेताओं के बेटे-बेटियों की उम्मीद बढ़ गई है। वह ज्यादा सक्रिय हो गए हैं।
बीजेपी सूत्रों का कहना है कि जिस तरह कर्नाटक में कई दिग्गजों को सक्रिय राजनीति से बाहर किया गया और उनके बेटे-बेटियों को चुनावी मैदान में उतारा है, इसके बाद से प्रदेश के कई दिग्गज नेता एक तीर से दो निशाना साधने की कोशिश में लग गए हैं। खुद पर आए संकट को भांपते हुए ये नेता खुद चुनाव न लड़कर अपने परिवार के सदस्यों को टिकट दिलवाने के मूड में दिखाई दे रहे हैं।
कोई अपनी बेटी को उतारना चाहता है तो कोई अपने बेटे को लांच कर मप्र की सियासत में उनकी जगह पक्की करना चाहता है। हम आपको यहां कुछ नेताओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके बेटे इस चुनाव में प्रबल दावेदारी दिखा सकते हैं। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी समेत पूरी भाजपा परिवारवाद को लेकर विरोधियों पर निशाना साधते रहती है।
संघ से ले रहे ट्रेनिंग, टीवी सीरियलों में काम कर चुके
कांग्रेस से बीजेपी में आए सिंधिया समर्थक गोविंद सिंह राजपूत के बेटे आकाश सिंह अब पूरी तरह राजनीति में उतरने को तैयार हैं। वे अपने आप को बीजेपी में एडजस्ट करने के साथ-साथ संघ की विचारधारा को अपनाने की कवायद कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्राथमिक वर्ग प्रशिक्षण में हिस्सा लिया। आकाश टीवी सीरियलों में काम कर चुके हैं। सुरखी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में प्रचार का जिम्मा आकाश ने संभाला था।
बड़े आयोजन कर बना रहे साख, पिछली बार टिकट नहीं मिला
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह राजनीति के मैदान में खम ठोकने को तैयार हैं। हाल ही में उन्होंने ग्वालियर में कवि सम्मेलन का आयोजन कराया। इसमें कुमार विश्वास को आमंत्रित किया था। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया तक मौजूद रहे। वे पहले भी इस तरह के कार्यक्रम कर चुके हैं।
देवेंद्र ग्वालियर शहर की राजनीति में पिछले कई सालों से सक्रिय हैं। 2008 में बीजेपी की सदस्यता ली। 2018 के विधानसभा चुनाव में उनके मुरैना जिले की दिमनी और ग्वालियर शहर से विधानसभा से चुनाव लड़ने की चर्चाएं थीं, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। पिता की गैरमौजूदगी में वे संसदीय क्षेत्र मुरैना में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
बिसेन के हर कार्यक्रम में शामिल हो रही बेटी
पूर्व मंत्री और बीजेपी विधायक गौरीशंकर बिसेन की बेटी मौसम बिसेन भी टिकट की दावेदार है। पिछले कुछ दिनों से बिसेन के हर कार्यक्रम में बेटी मौसम भी मौजूद रहती है। बिसेन अपनी बेटी को विधानसभा चुनाव लड़वाने के लिए खुलकर पैरवी कर रहे हैं। कई कार्यक्रमों में बिसेन सार्वजनिक तौर पर यह कह चुके हैं कि अगले विधानसभा चुनाव में उनकी बेटी मौसम मैदान में होगी। 2018 के विधानसभा चुनाव में बिसेन ने अपनी बेटी के लिए टिकट की सिफारिश की थी, उस वक्त कार्यकर्ताओं का विरोध भी झेलना पड़ा था, लेकिन इस बार वह टिकट की दावेदार नजर आ रही हैं।
राजनीतिक विरासत संभालने को तैयार, 2014 से ही सक्रिय
भाजपा के सबसे वरिष्ठ विधायक व मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव भी पीछे नहीं हैं। वह 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में दावेदारी कर रहे थे, लेकिन सफलता नहीं मिली। अब जबकि पिता की उम्र का फैक्टर सामने आ रहा है तो वे विधानसभा चुनाव में भी टिकट के लिए दम लगा रहे हैं। अभिषेक सार्वजनिक जीवन में भी राजनीति और समाजसेवा में काफी सक्रिय हैं। वे बीजेपी युवा मोर्चा में प्रदेश उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। यदि पार्टी युवा पीढ़ी को आगे लाने का फैसला करती है तो गोपाल भार्गव की जगह रेहली सीट से अभिषेक मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं।
कर्नाटक में सफल हुई तो एमपी में सिद्धांतों से समझौता कर सकती है बीजेपी
वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं कि बीजेपी नेतृत्व ने कर्नाटक में ऐसे फैसले नहीं किए जो स्थानीय नेताओं को अच्छे न लगें, क्योंकि दक्षिण में कर्नाटक ही वह राज्य है, जिसमें वह सरकार बनाने में सफल हो पाई है। इसके लिए उसने अपने तमाम सिद्धांतों से समझौते किए थे और अब भी कर रही है। सब जानते हैं कि 2018 के चुनाव में बीजेपी ने तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकारें खोई थीं। उसके लिए सबसे बड़ा झटका मध्यप्रदेश से आया था। जहां बहुत ही कम अंतर से उसकी हार हुई थी।
बीजेपी हाईकमान ने कर्नाटक में अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए जो फैसले लिए हैं, उन्हें उन राज्यों के लिए एक संदेश माना जाना चाहिए जो इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव से गुजरने वाले हैं। इन राज्यों में सबसे पहला नाम मध्यप्रदेश का है।
दीक्षित आगे कहते हैं कि एक संभावना यह भी है कि गुजरात फॉर्मूला अपनाकर जीत की कोशिश की जाए, लेकिन ऐसा करने से पार्टी को नुकसान नहीं होगा इस बात की गारंटी कोई नहीं दे सकता है। जब पार्टी सत्ता में रहने के लिए कुछ भी कर सकती है तो उसके नेता खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए कुछ नही करेंगे यह मानना बेमानी होगी।
अब पढ़िए, वंशवाद को लेकर PM मोदी का बयान
भाजपा संसदीय दल की बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी ने सांसदों से कहा था कि अगर विधानसभा चुनाव में आपके बच्चों के टिकट कटे हैं, तो उसकी वजह मैं हूं। मेरा मानना है कि वंशवाद लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है। परिवारवाद से जातिवाद को बढ़ावा मिलता है। उन्होंने कहा कि पार्टी में पारिवारिक राजनीति की इजाजत नहीं दी जाएगी। दूसरी पार्टियों की वंशवाद की राजनीति के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाएगी।
निकाय चुनाव में बीजेपी नेताओं के परिवार- रिश्तेदार के जीते उम्मीदवार
- खंडवा – अमृता यादव ( महापौर), विधायक रहे हुकुमचंद यादव की बहू
- सतना – योगेश ताम्रकार (महापौर), संघ के दिग्गज नेता शंकर प्रसाद ताम्रकर के पुत्र
- टीकमगढ़ – उमिता सिंह (जिला परिषद अध्यक्ष), उमा भारती की भतीजा बहू
- सागर – हीरा सिंह राजपूत (जिला परिषद अध्यक्ष), कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के भाई
- मंडला – संजय कुशराम (जिला परिषद अध्यक्ष), केंद्रीय राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के दामाद
- खंडवा – दिव्यादित्य (जिपं. उपाध्यक्ष), कैबिनेट मंत्री कुंवर विजय शाह के पुत्र
- रीवा – प्रणय प्रताप (जिपं. उपाध्यक्ष), विधायक और पूर्व मंत्री नागेंद्र सिंह के भतीजे
- बड़वानी – बलवंत सिंह पटेल (जिपं. अध्यक्ष), कैबिनेट मंत्री प्रेम सिंह पटेल के पुत्र
- सागर – सविता पृथ्वी सिंह (जपं. अध्यक्ष), मंत्री भूपेंद्र सिंह की भतीजा बहू
- बामौरा – वैष्णवी सिंह (सरपंच), मंत्री भूपेंद्र सिंह की नातिन
कर्नाटक चुनाव के बाद होगी एमपी में सर्जरी
जानकार मानते हैं कि कर्नाटक चुनाव का सीधा असर मध्यप्रदेश की राजनीति पर भी पड़ना तय है, ऐसा इसलिए क्योंकि कर्नाटक के नतीजों के बाद ही राज्य बीजेपी के कई बड़े नेताओं का भविष्य तय होगा। राज्य में लंबे अरसे से मंत्रिमंडल के विस्तार से लेकर कई नियुक्तियों का मामला लंबित है। इसी बीच कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के सामने खड़ी हो रही चुनौतियों ने मध्यप्रदेश के संभावित फैसले को टाल दिया है।
कर्नाटक में कई नेताओं ने छोड़ा पार्टी का दामन
कर्नाटक में टिकट कटने से नाराज कई बड़े नेताओं के तेवर बागी हो गए और उन्होंने पार्टी का दामन छोड़ दिया। 2019 में उप-मुख्यमंत्री बनाए गए लक्ष्मण सावदी ने पार्टी छोड़ दी। इस फैसले के बाद उन्होंने यह तक कह दिया कि मैं भीख का कटोरा लेकर यहां-वहां नहीं घूमता, मैं विधान परिषद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे रहा हूं। इसी तरह बंदरगाह और मत्स्य पालन राज्य मंत्री एस. अंगारा ने भी राजनीति का मैदान छोड़ दिया। वहीं, एक और पूर्व उप-मुख्यमंत्री केएस ईश्वरप्पा ने चुनावी राजनीति को अलविदा कह दिया है।
सबसे हैरान करने वाला मामला तो पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार का रहा। शेट्टार ने लगभग विद्रोह करते हुए कांग्रेस का दामन थाम लिया। वे हुब्बाली पश्चिम विधानसभा सीट से छह बार चुनाव जीत चुके हैं।
बड़े नेताओं के भाग्य का फैसला होगा
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्य के कई बड़े नेताओं को अगले चुनाव मैदान में उतारा जाए या नहीं? वे मंत्रिमंडल में रहें या न रहें, इसका फैसला कर्नाटक के नतीजों के आधार पर होना संभावित है। राज्य में सत्ता और संगठन के जमीनी स्तर पर जो फीडबैक आया है, वह साफ इशारा कर रहा हैं कि अगर पार्टी में बड़े बदलाव नहीं किए तो इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा के चुनाव पार्टी के लिए आसान नहीं रहने वाले। लिहाजा पार्टी मंथन में जुटी हुई है मगर कर्नाटक के चुनाव से पहले बने माहौल ने पार्टी को बड़े फैसले लेने से रोक रखा है।
इसलिए नहीं हो पा रहा मंत्रिमंडल विस्तार
बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि पार्टी हाईकमान की कर्नाटक पर खास नजर है और वहां के चुनाव बड़ी चुनौती भी बन गए हैं, इसलिए मध्यप्रदेश के संभावित फैसले लंबित हैं। शिवराज मंत्रिमंडल में चार पद रिक्त हैं और इन पर नियुक्ति कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद संभव है।
सूत्रों का कहना है कि कर्नाटक में अगर बीजेपी की सत्ता दोबारा आती है तो मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर सर्जरी तय है। अगर कर्नाटक के नतीजे बीजेपी की इच्छा के अनुरूप नहीं आते हैं तो मध्यप्रदेश में बड़े बदलाव से पहले समीक्षा का दौर चलेगा।
कर्नाटक में BJP के ‘वंशवादी’ उम्मीवारों की लिस्ट
बीवाई विजयेंद्र – पूर्व CM बीएस येदियुरप्पा के बेटे।
कुमार बंगारप्पा – पूर्व CM एस. बंगारप्पा के बेटे।
सिद्धार्थ सिंह – पर्यटन मंत्री आनंद सिंह के बेटे।
टीएच सुरेश बाबू – परिवहन मंत्री बी श्रीरामुलु के भतीजे।
मंजुला अमरेश – कोप्पल सांसद कराडी संगन्ना की बहू।
अविनाश जाधव – गुलबर्गा सांसद उमेश जाधव के बेटे।
चंद्रकांत पाटिल – पाटिल पूर्व एमएलसी बीजी पाटिल के बेटे।
मंजुला लिंबावली – विधायक अरविंद लिंबावली की पत्नी।
रत्ना ममानी – पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष विश्वनाथ ममानी की पत्नी।
प्रीतम नागप्पा – पूर्व मंत्री एच. नागप्पा के बेटे।
सिद्दू पाटिल – पूर्व एमएलसी बासवराज पाटिल के भतीजे।
अरविंद बेलाड – पूर्व विधायक चंद्रकांत बेलाड के बेटे।
अमृत देसाई – पूर्व विधायक अयप्पा बसवराज देसाई के बेटे।
प्रकाश खंडरे- पूर्व मंत्री भीमन्ना खंड्रे के रिश्तेदार।
पूर्णिमा श्रीनिवास – पूर्व मंत्री ए कृष्णप्पा की बेटी।
जी.एच. थिप्पारेड्डी, पूर्व मंत्री अश्वथ रेड्डी के भाई ।
जी.बी. ज्योति गणेश – सांसद जीएस बसवराज के बेटे।
राजेश गौड़ा – पूर्व सांसद सी.पी. मुदालगिरियप्पा के बेटे।
सप्तगिरि गौड़ा- पूर्व मंत्री रामचंद्र गौड़ा के बेटे।
बी हर्षवर्धन – सांसद श्रीनिवास प्रसाद के दामाद।
एक परिवार से दो उम्मीदवार
- पूर्व मंत्री गली जनार्दन रेड्डी के दो भाई सोमशेखर रेड्डी और करुणाकर रेड्डी भी इस चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं। सोमशेखर बेल्लारी सिटी से तो करुणाकर हरपनहल्ली से चुनाव लड़ रहे हैं।
- रमेश जारकीहोली और बालचंद्र जारकीहोली भाई हैं। रमेश को गोकक सीट से और बालचंद्र को अराभवी से टिकट थमाया गया है।
- पूर्व मंत्री उमेश कट्टी के परिवार को दो टिकट मिले हैं। उनके बेटे निखिल कट्टी हुक्केरी सीट से उम्मीदवार हैं और दिवंगत मंत्री के भाई रमेश कट्टी चिक्कोडी-सदलगा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।