लखनऊ। किसान आंदोलन से देश के नागरिकों का बढ़ता हुआ सरोकार और उसके पक्ष में बन रही राष्ट्रीय भावना न केवल मोदी सरकार बल्कि अम्बानी और अडानी जैसे कारपोरेट घरानों की बेचैनी बढ़ाती जा रही है। जन भावना के दबाव में ही अम्बानी को यह कहना पड़ा है कि उन्हें कांटैक्ट फार्मिंग में नहीं जाना है और न ही सीधे तौर पर किसानों से फसलों की खरीद में उनकी इंडस्ट्री लगी हुई है। रिलांयस इंडस्ट्रीज का यह बयान सच के परे है।
कौन नहीं जानता कि अम्बानी की कम्पनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने बड़े पैमाने पर रिटेल व्यापार में विस्तार किया है, आज भी फलों व सब्जियों के रिटेल व्यापार में रिलांयस की पचास प्रतिशत से ज्यादा की हिस्सेदारी है, हाल ही में रिलांयस ने रिटेल बाजार में एकाधिकार के लिए अमेरिकी कम्पनी फेसबुक व वाट्सएप के साथ मिलकर जीयो कृषि एप्प भी शुरू किया है और हजारों एकड़ जमीन पर फार्मिंग व लैंड डेवलपमेंट अथारटी के लिए लैंड बैंक बनाने की योजना पर यह कम्पनी काम कर रही है, रायगढ़, महाराष्ट्र व अन्य जगहों पर रिलांयस ने भारी मात्रा में जमीन का अधिग्रहण किया है।
यही हाल अडानी का भी है, उसने हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, और पश्चिम बंगाल में खाद्यान्न के भंडारण के लिए साइलो बना लिए हैं और लाजिस्टिक पार्क के नाम पर बड़े पैमाने पर जमीनें ली हैं। इसलिए अगर अम्बानी और अडानी सही मायने में किसानों के हितों के पक्षधर हैं तो उन्हें भी सरोकारी नागरिकों के साथ खड़े होकर यह बात कहनी चाहिए कि केन्द्र सरकार किसान विरोधी तीनों कानूनों को रद्द करे और किसानों के उत्पाद की खरीद की गारंटी के लिए एमएसपी कानून बनाए।
किसान आंदोलन न केवल किसानों की बल्कि आम लोगों की भावनाओं का प्रदर्शन है इसे भरमाया नहीं जा सकता है। देश में खड़ा हो रहा किसान आंदोलन अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी और कारपोरेट के लूट के खिलाफ अपने अधिकारों की आवाज है जो पूरी तौर पर शांतिपूर्ण, व्यवस्थित और अनुशासित है। यह प्रस्ताव आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की राष्ट्रीय कार्यसमिति में लिया गया। इस प्रस्ताव को एआईपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आईजी एस. आर. दारापुरी ने प्रेस को जारी किया।
प्रस्ताव में एआईपीएफ ने कहा कि अपनी मांगों पर डटे किसानों ने इस कंपकपाती ठंड और बरसात में धैर्य के साथ बेहद कठिन स्थितियों का सामना किया है और किसान आंदोलन में अब तक 50 से अधिक किसानों की मौत और आत्महत्या हो चुकी है। वहीं सरकार संवेदनहीन बनी हुई है और किसानों की ठोस व स्पष्ट मांग को हल करने की जगह वार्ता पर वार्ता की तारीखें दे रही है, उन पर लगातार दमन ढा रही है। बहरहाल अम्बानी और अडानी की सफाई इस सरकार से उनके गठजोड़ पर पर्दा नहीं डाल सकती है इसलिए केन्द्र सरकार को इन बयानों की आड़ में बचने की जगह किसानों की न्यायोचित मांगों को पूरा करना चाहिए। एआईपीएफ ने किसान आंदोलन के साथ अपनी पूरी एकजुटता व्यक्त करते हुए कहा कि उसका एक-एक कार्यकर्ता इस आंदोलन के साथ पूरी ताकत से डटा है।