सीबीएसई के पाठ्यक्रम से अनेक पाठ हटा दिए गए हैं। इनमें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फैज अहमद फैज की कविताएं शामिल हैं। फैज अहमद फैज की कविताओं का हटाया जाना विश्व कविता का अपमान है। फैज ऐसे शायर थे जो न केवल अपनी कविताओं में विद्रोही थे, नए समाज के स्वप्नदृष्टा थे बल्कि अपनी जिंदगी में भी विद्रोही थे। वे अंग्रेजों की फौज में इसलिए शामिल हो गए थे ताकि हिटलर को नेस्तनाबूद करने के वैश्विक अभियान का हिस्सा बन सकें।
पाकिस्तान में रहते हुए उन्होंने वहां लोकतंत्र की स्थापना के लिए संघर्ष किया। लाहौर षड़यंत्र में फंसाकर पाकिस्तान की सरकार ने उन्हें 5 साल जेल में डाला। उन्हें बार-बार जेल जाना पड़ा। वे भारत के सच्चे मित्र थे। पाकिस्तान में कट्टरपंथी सरकारें स्थापित होती रहीं और फैज को अपने जनवादी रूझान और प्रगतिशील विचारों के कारण बार-बार कारावास की यातना झेलनी पड़ी। फैज अपने जीवन में ही हीरो का रूप धारण कर चुके थे।
उनके काव्य में वह ताजगी, रंगीनी, प्रबलता और शक्ति है जो आधुनिक उर्दू साहित्य में नहीं बल्कि आधुनिक विश्व साहित्य में प्रमुख स्थान रखती है। जेल में उन्हें न तो कागज मिला और न कलम इसलिए उन्होंने बाद में लिखाः
‘‘मता-ए-लौह-ओ-कलम छिन गई, तो क्या गम है/कि खूने-दिल में डुबो ली हैं उंगलियां मैंने/जबां पे मुहर लगी है, तो क्या कि रख दी है/हरेक हलक-ए-जंजीर में जबां मैंने।’
हम अधोहस्ताक्षरकर्ता भाजपा सरकार के इस निर्णय की सख्त आलोचना करते हुए मांग करते हैं कि इस निर्णय को वापिस लेकर फैज की कविताओं को पुनः पाठ्यक्रम में सम्मिलित क�