Anil Kanhoua जी की वाल से
एक बहुत पुराना किस्सा बताता हूँ। बिटिया बचपन में तुतलाकर बोलती थी। कल्पना मौसी को ‘तल्पना’, खरगोश को ‘थरदोश’, गणेश को ‘दणेश’, घर को ‘धर’ बोलती थी। सुनने में मज़ा तो आता था, पर चिंता भी होती थी कि ये कब ठीक से बोलेगी। गूगल पर खोजते रहते थे किसी स्पीच थेरेपिस्ट का पता।
एक दिन बिटिया दुद्दी बुआ (गुड्डी) के घर गई। वहां एक बुजुर्ग महिला मिली। बिटिया की तोतली जुबान सुनी। एक चम्मच बुलवाई गई। चम्मच को बिटिया के मुंह में डालकर जीभ को दबा दिया गया। फिर क, ख, ग, घ से शुरू होने वाले शब्द बुलवाए गए। दस मिनिट में तोतलापन दूर हो गया। तरीका जो था, वो देवनागरी के सटीक वर्णक्रम में छुपा हुआ था।
समझिए जरा। क, ख, ग, घ, ङ- कंठव्य कहलाते हैं। इनके उच्चारण में ध्वनि कंठ से निकलती है। एक बार ये अक्षर बोल कर देखिये। समझ आ जाएगा। बिटिया कंठव्य को दन्तीय जैसा बोलती थी। दन्तीय त, थ, द, ध, न होते हैं, इनको उच्चारित करने में जीभ दांतों को छूती है। जीभ दांतों को न छू पाए, बस इसके लिए चम्मच से उसको दबा दिया गया। मसला हल हो गया। दांतों से जीभ बिना छुलाए दन्तीय अक्षर बोलने की कोशिश करिए, नहीं बोल पाएंगे।
आगे जरा और कोशिश करिए। च, छ, ज, झ,ञ- तालव्य कहे गए। इनके उच्चारण के समय जीभ तालू से लगती है। बोल कर देखिये। ट, ठ, ड, ढ, ण- मूर्धन्य कहलाते हैं क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है। बोलते समय गौर करिएगा।
सबसे मजेदार वर्णक्रम प, फ, ब, भ, म, वाला है। इन्हें ओष्ठ्य कहा गया है। लाख कोशिश कर लो, लेकिन बिना ओठों को मिलाए आप इन्हें बोल ही नहीं सकते। करिए कोशिश।
देवनागरी जैसा ऐसा अद्भुत वर्णक्रम शायद ही किसी और लिपि में मिले।