निर्मल कुमार शर्मा
इसी साल अक्टूबर 2021के महीने में ऑस्ट्रेलियाई अंतरिक्ष एजेंसी और सुप्रतिष्ठित अंतरिक्ष एजेंसी नासा के बीच आर्टेमिस कार्यक्रम के अंतर्गत एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ है,जिसका उद्देश्य है कि ऑस्ट्रेलिया के जॉन ग्रांट सदर्न क्रास यूनिवर्सिटी, लिस्मोर के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों द्वारा बनाए गए एक रोबोट रोवर को चंद्रमा पर इस उद्देश्य से भेजा जाय जो वहाँ उपस्थित ऐसी चट्टानों और वहाँ उपस्थित मिट्टी जिसे वैज्ञानिक भाषा में रिजोलिथ या Regolith कहते हैं को इकट्ठा करके उनका रासायनिक विश्लेषण करके यह पता लगाए कि उनमें 45 प्रतिशत तक उपलब्ध ऑक्सीजन को कैसे विलग किया जाय।अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अनुसार हमारी धरती और चंद्रमा के वायुमंडल में मूलभूत अंतर यह है कि जहाँ हमारी पृथ्वी पर उपस्थित वायुमंडल में 20.95 प्रतिशत ऑक्सीजन सहित नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, कॉबन-डाईऑक्साइड आदि सहित बहुत सी गैसें हैं,जिनमें मानव सहित इस पर उपस्थित समस्त जैवमण्डल सांस लेता है,परन्तु चंद्रमा का वायुमंडल बहुत ही विरल है,जिसमें बहुत ही अल्प मात्रा में हाइड्रोजन, नियॉन और ऑर्गन जैसी गैसें हैं,परन्तु उसमें ऑक्सीजन की उपलब्धता शून्य है जिससे उसमे मनुष्य सहित कोई भी प्राणी जीवित ही नहीं रह सकता है !
लेकिन अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का यह कहना है कि चंद्रमा के वायुमण्डल में ऑक्सीजन की उपलब्धता भले ही शून्य हो लेकिन वहाँ की चट्टानें जो ऑक्सीजन युक्त खनिजों मसलन सिलिकॉन, एल्युमिनियम, लौह और मैग्नीशियम ऑक्साइड से भरपूर हैं और वहाँ की मिट्टी जिसे चंद्र मिट्टी या Lunar Soil जिसे वैज्ञानिक भाषा में रिजोलिथ या Regolith भी कहते हैं,में ऑक्सीजन की बहुत ज्यादे प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन छिपी हुई है ! चंद्रमा की मिट्टी और हमारी धरती की मिट्टी में रासायनिक तौर पर बहुत अंतर है,मसलन वैज्ञानिकों के अनुसार रेजोलिथ में 45 प्रतिशत तक ऑक्सीजन है ! एक वैज्ञानिक आकलन के अनुसार चंद्रमा पर उपस्थित 1घन मीटर रेजोलिथ में लगभग 630 किलोग्राम तक ऑक्सीजन की मात्र संभाव्य है ! नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार एक मनुष्य को 24 घंटे में केवल 800 ग्राम ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है इस प्रकार चंद्रमा की 1 घन मीटर रिजोलिथ से निकली ऑक्सीजन से मनुष्य 2 साल से भी ज्यादे समय तक आसानी से सांस ले सकता है ! वैज्ञानिकों के अनुसार अगर मान लिया जाय कि चंद्रमा की सतह पर उपस्थित रिजोलिथ की गहराई 10 मीटर भी हो और यह भी कि हमारे पृथ्वी के वैज्ञानिक चंद्रमा पर उपस्थित संपूर्ण रिजोलिथ से ऑक्सीजन को पृथक कर लें तो ऑक्सीजन की वह राशि इतनी बड़ी होगी कि उससे हमारी इस धरती के 8 अरब लोग लगभग एक लाख वर्षों तक सांस ले सकते हैं !
चंद्रमा पर पाए गए इस बेशकीमती खनिज से ऑक्सीजन निकालने के लिए बहुत बड़ी उर्जा की आवश्यकता होगी,क्योंकि सबसे पहले उन ऑक्सीजन युक्त ठोस खनिजों को तरल अवस्था में बदलना पड़ेगा। इसके लिए सौर उर्जा या चंद्रमा पर उपस्थित उर्जा के अन्य वैकल्पिक ऊर्जा के श्रोतों का उपयोग करना पड़ेगा। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अनुसार अनंत अंतरिक्ष में स्थित अरबों किलोमीटर दूर अवस्थित ग्रहों या उपग्रहों पर जाने के लिए सुदूर अंतरिक्ष यात्राओं के लिए पृथ्वी से ईंधन सहित अन्य सब कुछ ले जाने की निर्भरता को कम करने के लिए यह सोच है कि उन अंतरिक्ष यानों के लिए ईंधन के लिए चंद्रमा की मिट्टी में उपस्थित ऑक्सीजन सहित अन्य संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जाय।
पृथ्वी पर ऑक्सीजन को ऑक्साइड वाले खनिजों से अलग करने के लिए सामान्यतः इलेक्ट्रोलिसिस विधि अपनाई जाती है,वैसे तो इलेक्ट्रोलिसिस तो एक बहुत ही सरल विधि है,लेकिन इसमें उर्जा की बहुत ज्यादे जरूरत पड़ती है। चंद्रमा पर इलेक्ट्रोलिसिस विधि द्वारा ऑक्सीजन उत्पादित करने के लिए सौर ऊर्जा या चंद्रमा पर उपस्थित कोई अन्य वैकल्पिक ऊर्जा का ही उपयोग करना पड़ सकता है। चंद्रमा पर ऑक्सीजन बनाने के लिए काफी बड़े-बड़े उपकरण भी लगाने पड़ेंगे। इस विधि से ऑक्सीजन को विलग करने के लिए इन ऑक्साइड अयस्कों को ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में लाने के लिए या तो इलेक्ट्रोलिसिस विधि अपनानी पड़ेगी या उसे बहुत ज्यादे तापमान तक गर्म करना पड़ेगा। पृथ्वी पर तो यह एक बहुत सामान्य सा क्रियाकलाप है,लेकिन चंद्रमा पर इस विधि को अपनाने के लिए बहुत से भारी उपकरणों को वहाँ ले जाना पड़ेगा। इस साल बेल्जियम की एक स्टार्टअप स्पेस एप्लिकेशन ने घोषणा किया है कि वह ऐसे 3 प्रयोगात्मक संयत्र बना रही है,जिसकी मदद से इलेक्ट्रोलिसिस पद्धति द्वारा ऑक्सीजन का उत्पादन बहुत बेहतरीन ढंग से किया जा सकता है, जिसे वह 2025 तक यूरोपियन स्पेस एजेंसी के सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन या ISRU अभियान के तहत चंद्रमा पर भेजेंगे। चंद्रमा पर ऑक्सीजन निकालने के लिए इतना भारी-भरकम निवेश भी बहुत फायदेमंद है,क्योंकि भविष्य की सुदूरवर्ती ग्रहों-उपग्रहों की अंतरिक्ष की यात्राओं के लिए चंद्रमा से मिलनेवाले ऑक्सीजन के इस अकूत खजाने से चंद्रमा अंतरिक्षयानों के लिए एक बेहतरीन ईंधन फिलिंग स्टेशन बनने जा रहा है। चंद्रमा की सतह पर मिले इन ऑक्साइड अयस्कों से जिससे इतनी अकूत मात्रा में मानव प्रजाति को ऑक्सीजन की उपलब्धता होने जा रही है,उससे हम धरती के मानवों को यह पुरजोर प्रेरणा मिल रही है कि अगर अब तक जिस चंद्रमा को हम शुष्क पत्थरों और धूल का निर्जन और वीरान उपग्रह माने बैठे थे,वही भविष्य का अनन्त ऑक्सीजन से भरपूर एक ऊर्जा का अक्षय श्रोत साबित होने जा रहा है,तो उसकी तुलना में हमारी शस्य-श्यामला,नीली धरती,जो इस पूरे ब्रह्मांड में मनुष्य सहित सांस लेनेवाले,रंग-विरंगी,तितलियों, परिंदों, खेलते-कुलाँचे भरते लाखों किस्म के जीवों की शरणस्थली की मिट्टी, चट्टानों और सभी प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने की भरपूर कोशिश की ही जानी चाहिए,जो धरती अपने पर अवस्थित समस्त जैवमण्डल के एक सूक्ष्म बैक्टीरिया से लेकर विशालतम ह्वेल तक अरबों जीवों के जीवन को बचाने का अद्भुत, अनुपम,अद्वितीय व अनोखा कृत्य स्वतः प्राकृतिक रूप से कर रही है !
-निर्मल कुमार शर्मा,पर्यावरण,वैज्ञानिक, सामाजिक विषयों पर सशक्त व स्वतंत्र लेखन,गाजियाबाद, उप्र