लखनऊ: भारतीय प्रशासनिक सेवा के रिटायर्ड अधिकारी और उत्तर प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी का अहम चेहरा रहे नवनीत सहगल अब प्रसार भारती के चेयरमैन बन गए हैं। यूपी कैडर के 1988 बैच के IAS अफसर नवनीत सहगल ब्यूरोक्रेसी में 35 साल की पारी खेलने के बाद पिछले साल रिटायर हो गए थे। सहगल ब्यूरोक्रेसी के सबसे चर्चित चेहरों में रहे। चाहे यूपी में सत्ता किसी भी दल की हो, देर-सवेर सहगल का सिक्का जरूर चला।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से 15 मार्च को जारी आदेश में कहा गया, “राष्ट्रपति को, चयन समिति की सिफारिश पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के सेवानिवृत्त अधिकारी श्री नवनीत कुमार सहगल को प्रसार भारती बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करते हुए प्रसन्नता है, जो उनके पद का कार्यभार संभालने की तारीख से 3 साल की अवधि या उनके 70 वर्ष का होने तक प्रभावी होगी।”
मूल रूप से पंजाब के फरीदकोट निवासी सहगल की पढ़ाई हरियाणा के अंबाला और भिवानी में हुई। यूपी की ब्यूरोक्रेसी में सहगल पिछले 3 दशक की चर्चाओं और ताकत के केंद्र में रहे। उन्हें मायावती, अखिलेश यादव, योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली अलग-अलग सरकार में काम का व्यापक अनुभव है। वह हर सरकार में अपने हुनर का लोहा मनवा चुके हैं।
22 साल पहले 3 मई, 2002 को जब मायावती तीसरी बार यूपी की सीएम बनीं तो सहगल को वाराणसी से लखनऊ का डीएम बना दिया गया। हालांकि, ढाई महीने बाद ही वह राजस्व परिषद भेज दिए गए। एक महीने के भीतर सहगल ने फिर लखनऊ के डीएम की कुर्सी हासिल कर ली। वह माया सरकार के सबसे ताकतवर अफसर बनकर उभरे।
यूपी लौटे तो बन गए पावर सेंटर
अगस्त 2003 में मुलायम सिंह यादव के सीएम बनने के छह महीने बाद सहगल किनारे कर दिए गए और 2005 में वह केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए। 2007 में मायावती पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटीं तो सहगल भी यूपी लौट आए और पावर सेंटर बन गए। सहगल की सचिव के तौर पर सीधी एंट्री मुख्यमंत्री कार्यालय में हुई। 2010 आते-आते उनके खाते में शहरी विकास, उर्जा, यूपीएसआईडीसी जैसे अहम विभाग भी जुड़ गए।
सहगल की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि विपक्ष का हर दल उनके बहाने सरकार पर सवाल उठाता रहा, लेकिन सत्ता में आने के बाद सिर-आंखों पर भी बैठाता रहा। 2012 में सपा सत्ता में लौटी और अखिलेश यादव सीएम बने तो तीन दिन के भीतर ही सहगल को हटाकर वेटिंग पर डाल दिया गया। 10 दिन बाद उन्हें धर्मार्थ कार्य जैसे महत्वहीन विभाग की जिम्मेदारी दे दी गई।
अखिलेश-योगी ने लगाया किनारे, फिर बने दुलारे
सपा सरकार की आंखों की किरकरी रहे सहगल 23 महीने में फिर सत्ता के दुलारे बन गए और अखिलेश ने उन्हें सूचना जैसा अहम विभाग दे डाला। इसके तीन महीने बाद उन्हें यूपीडा का सीईओ बना दिया गया और अखिलेश सरकार के ड्रीम प्रॉजेक्ट आगरा एक्सप्रेसवे को उन्होंने जमीन पर उतारा। उस समय विपक्ष में भाजपा थी और उसका मुद्दा था आगरा एक्सप्रेसवे में कथित भ्रष्टाचार।
इसलिए, मार्च 2017 में योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के एक महीने के भीतर ही सहगल वेटिंग में भेज दिए गए। वाया खादी और एमएसएमई सीएम की टीम में कमबैक करने में सहगल को महज तीन साल लगे और 2022 विधानसभा चुनाव के करीब 16 महीने पहले उन्हें फिर सूचना विभाग की जिम्मेदारी मिल गई। हालांकि, योगी की दूसरी पारी में ब्यूरोक्रेसी की पहली बड़ी सर्जरी में सहगल भी किनारे लगे और उन्हें खेल विभाग भेज दिया गया, जहां से वह रिटायर हो गए।