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*आर जी कर मामला : टीएमसी कर रही है बलात्कार के मामलों का “राजनीतिकरण*

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*(आलेख : वृंदा करात, अनुवाद : संजय पराते)*

आर जी कर मामले में पीड़िता के साथ हुई बर्बरता के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के गर्भ से एक नये नाम ने जन्म लिया है। उसे तिलोत्तमा कहा जाता है — वह जो अपने अंदर सभी सर्वश्रेष्ठ का समावेश करती है। तिलोत्तमा के न्याय के लिए एकजुटता के संघर्ष ने न केवल बंगाल, बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। हजारों की संख्या में स्व-संगठित नागरिक, अपनी अंतरात्मा को जगाते हुए एकजुटता के साथ सड़कों पर उतर आए हैं। द वेस्ट बेंगाल जूनियर डॉक्टर्स आर्गनाइजेशन और द ज्वाइंट प्लेटफॉर्म ऑफ डॉक्टर्स (चिकित्सकों का संयुक्त मंच) इसमें सबसे आगे हैं। सभी वामपंथी जन संगठन अपने निरंतर शांतिपूर्ण कार्यवाहियों के जरिए न्याय के लिए दृढ़ प्रतिबद्धता का प्रदर्शन कर रहे हैं। वाम मोर्चे के मजबूत समर्थन का अर्थ है कि आवाजें पूरे राज्य में, शहरों से लेकर सुदूर इलाकों के गांवों तक पहुंच गई हैं, जहां लोग एकजुटता के साथ इकट्ठा हो रहे हैं। युवा और बूढ़े, महिला और पुरुष, सभी समुदाय और सभी क्षेत्रों के लोग रोजमर्रा के विरोध प्रदर्शनों में थकते नहीं दिखते। दरअसल, ऊर्जा और विरोध की आवाज़ें दिन-प्रतिदिन और भी ज़्यादा मज़बूती से गूंज रही हैं। इन विरोध प्रदर्शनों से यह स्पष्ट हैं कि न्याय की मांग सिर्फ़ एक व्यक्ति की गिरफ़्तारी से ही समाप्त नहीं होती। न्याय का अर्थ है भयावह अपराध, भ्रष्टाचार, संरक्षण और इसे छिपाने में शामिल सभी लोगों के पीछे की सांठगांठ को लक्षित करना और उसे खत्म करना ; उस सड़ी हुई व्यवस्था को खत्म करना — जो एक अपराधी, एक तथाकथित नागरिक स्वयंसेवक, को एक सार्वजनिक अस्पताल में एक युवा डॉक्टर का बलात्कार करने में सक्षम बनाती है और उसे भरोसा है कि वह इससे बच जाएगा। और सच यह है कि अगर हर बिंदु पर जवाबी कार्रवाई और संघर्ष नहीं होता, तो वह बच जाता। यह आंदोलन यह आशा बंधाता है कि न्याय को खत्म करने वाली सभी प्रतिक्रियावादी ताकतों को सैकड़ों और हज़ारों एकजुट लोगों द्वारा चुनौती दी जा सकती है, उनका विरोध किया जा सकता है और उन्हें पटकनी दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और सीबीआई द्वारा कोर्ट को दी गई रिपोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, “ऐसे विवरण बताती है, जो ज्ञात से कहीं ज़्यादा बुरे हैं।” डॉक्टरों और विरोध प्रदर्शनों को शैतानी बताने वाली टीएमसी सरकार को पीछे हटना पड़ा है और कुछ मांगों को स्वीकार करना पड़ा है। संघर्ष अलग-अलग रूपों में जारी है।

*बलात्कार की संस्कृति जुड़ी है व्यवस्था की असमानता से*

इस लेख में मैं आरजी कर मामले के एक पहलू पर नज़र डालूंगी, जो बलात्कार की संस्कृति के विभिन्न आयामों से संबंधित है और जिसे सत्तारूढ़ पार्टी, टीएमसी और उसके प्रतिनिधियों ने ऐसे अरक्षणीय कृत्य के लिए अपने बचाव के विभिन्न चरणों में पेश किया था। न्याय के लिए लड़ने वालों के रूप में, महिला संगठनों और आंदोलनों ने सीखा है कि ये संस्कृति भारत में महिलाओं की दोयम दर्जे की स्थिति की व्यवस्थागत और संरचनात्मक प्रकृति से जुड़ी हुई हैं। वास्तव में भारत में यौन उत्पीड़न और लिंग और जाति आधारित बर्बरता के मामलों की जड़ें जन्म से लेकर मृत्यु तक पुरुषों और महिलाओं के बीच व्यवस्थागत असमानता में हैं। घोर असमानताओं वाले देश में कामकाजी वर्ग की महिलाओं, विशेष रूप से ग्रामीण गरीब महिलाओं की असुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों में जोखिम, व्यवस्था की संरचना में ही निहित है, जिस पर ग्रामीण अभिजात वर्ग, ठेकेदारों और इसी तरह के लोगों का वर्चस्व है। भारत में पूंजीवाद द्वारा अपनाई गई जहरीली जाति व्यवस्था उस संरचना का एक हिस्सा है, जो दलित और आदिवासी महिलाओं के खिलाफ हिंसा के आयामों को और तीखा बनाती है। भारत में इन विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में ही बलात्कार की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है। महिला संगठनों के संयुक्त संघर्षों और महिलाओं की व्यक्तिगत उपलब्धियों ने भी, मिलकर एक ऐसी मजबूत ताकत का निर्माण किया है,  जिसने कई बाधाओं को तोड़ा है। बहरहाल, इन सफलताओं को प्रतिक्रियावादी ताकतों द्वारा कमतर आंकने और विभिन्न तरीकों से इसे कमज़ोर करके उसका मुकाबला करने की कोशिश की जाती है। यह महिलाओं की प्रगति और सार्वजनिक और निजी स्थानों में समान अधिकारों के उनके दावे के खिलाफ़ एक तरह की प्रतिक्रिया है। इस प्रतिक्रिया का एक हिस्सा बलात्कार समर्थक संस्कृति में परिलक्षित होता है।

*बलात्कार समर्थक संस्कृति*

बलात्कार समर्थक संस्कृति या बलात्कार संस्कृति वह है, जो यौन हिंसा को उचित ठहराती है, उसे महत्वहीन बनाती है या उसे नकारती है। बलात्कार संस्कृति ऐसे माहौल का निर्माण करती हैं, जहां बलात्कार की शिकार महिला को न्याय पाने में कठिनाई होती है। बलात्कार संस्कृति मीडिया के उपयोग सहित विभिन्न तरीकों से न्याय की प्रक्रिया को बाधित करती है। यौन हिंसा के अपराधी का नाम लेने और उसे शर्मिंदा करने के बजाय, बलात्कार संस्कृति पीड़िता को ही उस हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराती है, जिसका उसने सामना किया है। भारत में बलात्कार संस्कृति के अतिरिक्त आयाम भी हैं, जो धार्मिक समुदाय या अपराधी और पीड़िता की जातिगत पहचान से जुड़े हैं। मनुवादी विचारधारा और संस्कृति, जो महिलाओं की घोर विरोधी हैं और कठोर जातिगत पदानुक्रम के लिए प्रतिबद्ध हैं, भारतीय समाज में पहले से ही मौजूद हैं और ऐसी बलात्कार संस्कृति के लिए हथियारबंद चौकियों का काम करती हैं। भाजपा शासन के तहत महिलाओं के खिलाफ हिंसा को उचित ठहराने वाली विचारधाराओं — जिसमें मुस्लिम महिलाओं को सांप्रदायिक बहुसंख्यकवाद के द्वारा और साथ ही, महिलाओं के सभी वर्गों, विशेष रूप से दलित महिलाओं को मनुवादी बहुसंख्यकवाद के द्वारा निशाना बनाया जाता है — को राज्य और उसके संस्थानों द्वारा समर्थित भाजपा-आरएसएस पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा बढ़ावा दिया जाता है। यह सर्वविदित है कि भाजपा शासित राज्यों में राज्य की शक्ति का इस्तेमाल हिंसा करने वालों को उनकी धार्मिक या जातिगत पहचान के आधार पर बचाने के लिए किया जाता है। यह कानून का शासन या न्याय का ढांचा नहीं है, बल्कि अपराधी और पीड़ित की धार्मिक या जातिगत पहचान है, जो यह निर्धारित करती है कि किसे सजा मिलेगी और किसे छूट। ऐसे मामलों में, बलात्कार की संस्कृति, जो अपराधों को सक्षम बनाती हैं, जाति, धर्म और संप्रदाय से जुड़ी होती हैं।

*आरजी कर मामले में व्यवस्थागत मुद्दे*

बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के राज में यह खौफनाक मामला हुआ है। सरकार द्वारा तथाकथित नागरिक स्वयंसेवकों की नियुक्ति का तरीका ; प्रिंसिपल को बचाने में सरकार और स्वास्थ्य मंत्री की भूमिका ; मामले को रफा-दफा करने की कोशिश में प्रिंसिपल और पुलिस की भूमिका ; प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार ; भ्रष्टाचार और भयानक अपराध में शामिल लोगों के बीच संबंध ; उस सांठगांठ के बारे में सवाल, जिसने एक तथाकथित नागरिक स्वयंसेवक को अस्पताल के सेमिनार रूम सहित सभी कमरों में आसानी से प्रवेश करने की अनुमति दी ; अस्पताल में कार्यरत महिलाओं और अन्य चिकित्सा कर्मियों के लिए सुरक्षा की कमी — कुछ ऐसे प्रमुख मुद्दे हैं, जो किसी व्यक्तिगत अपराधी की कारगुजारी के बस की बात नहीं हैं। इस अर्थ में यह व्यवस्थागत है कि इस मामले में यह सीधे सरकार, पुलिस और सरकारी नीतियों से संबंधित है।

इन मुद्दों से निपटने और उनका जवाब देने के बजाय, टीएमसी ने एक ऐसा आख्यान शुरू किया है, जो बलात्कार की संस्कृति के ढांचे को आगे बढ़ाता है। शायद यह एक ऐसा घटनाविकास है, जिस पर विशेष रूप से ध्यान देने की बात है। इस आख्यान का नेतृत्व मुख्य रूप से टीएमसी की महिला सांसदों द्वारा किया जा रहा है। इसका उद्देश्य इस गठजोड़ को छुपाने और उसे बचाने के लिए सरकार और पुलिस की मिलीभगत को दर्शाने वाली स्पष्ट खामियों को कम करके दिखाना और उनसे ध्यान हटाना है।

*बलात्कार संस्कृति का विस्तार*

यह शर्मनाक है कि एक महिला सांसद ने फर्जी खबरों का मुकाबला करने के नाम पर पीड़िता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का विवरण देना शुरू कर दिया। व्यापक रूप से प्रसारित एक वीडियो में उन्होंने सामूहिक बलात्कार के आरोप का “प्रतिवाद” करने के लिए वीर्य के मिलने या न मिलने, उसके निजी अंगों के वजन आदि के विवरण पर चर्चा करने का बीड़ा उठाया। इसके बाद के एक वीडियो में संबंधित सांसद ने इस बात पर चर्चा शुरू की कि हड्डी टूटी है या नहीं और विजयी भाव से घोषणा की कि पोस्टमार्टम से पता चलता है कि यह सब झूठ था और कूल्हे की कोई हड्डी नहीं टूटी थी। यह यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़िता को अपमानित करने के लिए निम्न स्तर का एक भयानक ओछापन है। यह बलात्कार के अपराध की भयावह प्रकृति से ध्यान हटाने के लिए पीड़िता और उसके शरीर की स्थिति पर सार्वजनिक चर्चा शुरू करने के उद्देश्य से इस तरह के विवरणों को सामने रखता है।  बलात्कार संस्कृति के संदर्भ में इसका मतलब यह है कि जब तक “बलात्कार प्लस” – हड्डियों का टूटना – साबित नहीं हो जाता, बलात्कार एक “सामान्य” मामला है।  बलात्कार के घिनौनेपन का सामान्यीकरण करना — बलात्कार संस्कृति का ठीक यही मतलब है। एक सरकारी अस्पताल में ड्यूटी पर मौजूद एक लड़की का बलात्कार किया जाता है और उसकी हत्या कर दी जाती है, उनके अनुसार यह इतना भयानक नहीं है और लोगों में आक्रोश पैदा होने के लिए इससे ज़्यादा कुछ और साबित होना चाहिए। इस मामले में संबंधित सांसद ने लोगों का ध्यान हटाने के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट जैसी रिपोर्टों तक अपनी आसान पहुंच का दुरुपयोग किया। इस तरह के तरीकों से फर्जी खबरों का मुकाबला नहीं किया जा सकता। पोस्टमार्टम रिपोर्ट और कानूनी प्रक्रियाऐं अपने आप में ही सब कुछ बयां करती हैं, लेकिन जब उनका इस्तेमाल एक महिला सांसद द्वारा गलत तरीके से किया जाता है, तो इसका एक अलग अर्थ निकलता है, जो बलात्कार की नई संस्कृति को जन्म देता है।

एक अन्य महिला सांसद ने टेलीविजन पर कहा कि “पिछली सरकार के दौरान, छात्राओं को परीक्षा पास करने के लिए परीक्षकों की गोद में बैठाया जाता था।” बलात्कार और हत्या के मामले के संदर्भ में यह बेहूदा लैंगिकवादी टिप्पणी भी बलात्कार की संस्कृति को बढ़ावा देती है। सबसे पहले, यह बलात्कार के पूरे मुद्दे को हिंदी में एक कहावत के अनुसार, तू-तू मैं-मैं में बदल देता है,  कि तुम यह करो और मैं वह करूँ। राजनीतिक दलों के बीच यह एक तरह की बेकार की बहस है। बेकार की इसलिए, क्योंकि यह सार्वजनिक विमर्श के मानकों को सबसे निचले स्तर तक गिरा देता है — “पिछली सरकार ने ऐसा किया”, अब जो हो रहा है उसके औचित्य के रूप में। यह बलात्कार के मुद्दे और बलात्कार पीड़िता की भयावहता को राजनीतिक झगड़े में बदल देता है। ऐसा करके, यह महिला सांसद, जो खुद एक डॉक्टर है, मेडिकल पेशे में महिलाओं को यौन रूप से अपमानित करने के लिए भी जिम्मेदार है, मानो महिला मेडिकल छात्राओं ने परीक्षा पास करने के लिए यौन संबंध बनाए हों। एक वरिष्ठ निर्वाचित प्रतिनिधि की ऐसी टिप्पणी कामकाजी महिलाओं के खिलाफ़ ऐसी स्त्री-द्वेषी संस्कृति को बढ़ावा देती हैं, जो “आसानी से उपलब्ध” हैं। भारी विरोध के बाद सांसद को माफी मांगनी पड़ी, लेकिन यह बयान केवल यह दर्शाता है कि राजनीतिक विमर्श में बलात्कार की संस्कृति किस प्रकार बढ़ सकती है।

एक और महिला सांसद ने मुख्यमंत्री, कोलकाता पुलिस और अन्य लोगों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करते हुए दिन-रात वीडियो जारी किए। जांच में उनके भ्रामक दावे उजागर हुए। जांच के हर स्तर पर उन्होंने कहा — इससे पता चलता है कि कोलकाता पुलिस हर कदम पर सही थी। यह एक तरह का बचाव था। क्या उन्होंने कभी यह सवाल पूछा : एक युवा महिला डॉक्टर के लिए एक सार्वजनिक अस्पताल इतना असुरक्षित कैसे हो सकता है? प्रिंसिपल को अस्पताल आने और एफआईआर दर्ज करने में इतना समय क्यों लगा? मुख्यमंत्री ने उनका बचाव क्यों किया? माता-पिता के साथ इतना बुरा व्यवहार क्यों किया गया? उनके सभी बयानों में अपराध की भयावहता का शायद ही कोई संदर्भ हो। जब इस मामले से आहत युवा महिलाएं एक महिला सांसद द्वारा अरक्षणीय कृत्य का इस तरह का असंवेदनशील बचाव देखती हैं, तो उनके दिमाग में क्या चलता होगा? इस तरह की बेरुखी का सामना करने से बेहतर है चुप रहना। इस तरह के बयान महिलाओं के लिए बेहतर दुनिया चाहने वालों का मनोबल गिराते हैं, वे लड़ाई को और भी कठिन बना देते हैं। टीएमसी की अग्रणी महिलाओं ने महिलाओं को निराश किया है।

यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह पहली बार नहीं है कि  अपनी सरकार के बचाव के लिए बलात्कार की संस्कृति को बढ़ावा दिया गया है। इसकी शुरुआत खुद मुख्यमंत्री द्वारा आपत्तिजनक बयानों से हुई है, जैसे कि पार्क स्ट्रीट  या कामधुनी या संदेशखाली मामले में पीड़िता को शर्मिंदा करना। इन महिला नेताओं के बयानों का संज्ञान लिया जाना चाहिए।

एक पुरुष टीएमसी पार्षद ने कहा, “जो लोग सोशल मीडिया पर ममता बनर्जी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करते हैं, मैं उनके परिवार की महिलाओं की तस्वीरों को जिसमें उनकी मां और बहनें भी शामिल हैं, तोड़-मरोड़ कर उनके दरवाजे पर लगा दूंगा।” यह भी बलात्कार की संस्कृति का एक विशिष्ट उदाहरण है, जो महिलाओं के खिलाफ हिंसा को “बदला” के रूप में उचित ठहराते हैं या जो महिलाओं के शरीर का इस्तेमाल अपने पहचाने हुए विरोधियों को सबक सिखाने के लिए करते हैं। एक महिला के साथ बलात्कार हुआ है — यह तब महत्वहीन हो जाता है, जब आपको अपने नेता का बचाव करना पड़ता है। यह सच है कि ममता बनर्जी को कभी-कभी भद्दे तरीके से निशाना बनाया गया है। उनके खिलाफ़ लैंगिक भाषा का इस्तेमाल करना उचित नहीं है, तब भी नहीं, जब वह अपने विरोधियों के खिलाफ़ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करती हैं। इस मामले में महिलाएं खुद सड़कों पर उतर आई हैं, खासकर युवतियां बलात्कार के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रही हैं। नेता के बचाव के नाम पर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ़ यौनिक धमकियां देना निंदनीय है। लेकिन यह सर्वविदित है कि बंगाल सरकार ने मुख्यमंत्री की आलोचना करने वाले लोगों के खिलाफ़ मामले दर्ज करने में रिकॉर्ड स्थापित किया है — टीवी स्टूडियो में एक युवती से लेकर विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर के मामले तक और अपने अधिकारों की मांग करने वाले किसान से लेकर सोशल मीडिया तक। सीएम की ऐसी किसी भी ट्रोलिंग पर पुलिस की ओर से तुरंत कार्रवाई की गई है। टीएमसी पार्षद की इस तरह की टिप्पणी बलात्कार की संस्कृति का एक और पहलू दिखाती है, वह यह कि बलात्कार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल होने वाले पुरुषों को उनके परिवार की महिलाओं को यौन रूप से अपमानित करने की धमकी देकर चुप करा दिया जाता है।

*बलात्कार के मामलों का “राजनीतिकरण”*

राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने में विफलता का आरोप लगाने के लिए बलात्कार अक्सर इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्दा बन जाता है। इसकी अक्सर बलात्कार के “राजनीतिकरण” के रूप में आलोचना की जाती है। सरकारों को दोषी ठहराया जाना चाहिए और बलात्कार के मामलों में लापरवाही या आपराधिक मिलीभगत या आरोपियों को बचाने के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, जैसा कि अक्सर होता है। बलात्कार एक राजनीतिक मुद्दा है। यह सत्ता के इस्तेमाल, अत्यधिक पितृसत्तात्मक और जातिवादी समाज में पुरुष अधिकार की संस्कृति से संबंधित है। महिलाओं के खिलाफ अपराध और बढ़ते यौन अपराध, गहरे “राजनीतिक मुद्दे” हैं। यथास्थिति की राजनीति ने इन मुद्दों को राजनीतिक भाषा में “नरम मुद्दे” के रूप में पेश करने की कोशिश की है – दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, बाल यौन शोषण, यौन उत्पीड़न — इन सभी को “गैर-राजनीतिक, नरम मुद्दे” बनाकर महिलाओं के डिब्बे में डाल दिया गया है। महिलाओं के संघर्ष और पीड़ितों के साहस ने इस डिब्बे के गेट को तोड़ दिया है। लेकिन हम अभी भी लैंगिक संवेदनशील राजनीति से बहुत दूर हैं। महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों सहित अन्य अपराधों को बढ़ावा देने वाली राजनीति और संस्कृति को उजागर करना आवश्यक है और हमें इस आरोप को खारिज करना चाहिए कि यह बलात्कार के मुद्दे का “राजनीतिकरण” है।

न्याय के लिए हमारे संघर्षों को, सरकार की जिम्मेदारियों को लेते हुए आवश्यक “राजनीतिकरण” और इस लेख में पहले बताए गए तू-तू मैं-मैं की तरह की “संकीर्ण पार्टी राजनीति” के बीच, अंतर करना चाहिए। बंगाल इसका एक अच्छा उदाहरण है कि यह अंतर क्यों आवश्यक है। बंगाल में टीएमसी और बीजेपी दोनों ही डॉक्टरों द्वारा स्वयं संगठित किए गए विशाल स्वतःस्फूर्त विरोध आंदोलनों को कमजोर करने और हाशिए पर डालने के लिए सबसे अधिक लैंगिक असंवेदनशील नजारा स्थापित करना चाहते हैं। बीजेपी ने तथाकथित छात्र समाज मंच — जो बीजेपी/आरएसएस का एक छुपा हुआ संगठन है — को पेश करके इस मुद्दे को हाईजैक करने की कोशिश की है, जिसने टीएमसी सरकार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन आयोजित किया। पुलिस को कार्रवाई के लिए उकसाने के बाद — और सभी मामलों में अत्यधिक दमनकारी कार्रवाई टीएमसी पुलिस की पहचान है — एक संकीर्ण राजनीतिक लड़ाई में आंदोलन को हाईजैक करने के लिए मंच तैयार किया गया — बीजेपी बनाम टीएमसी। यह राजनीतिक ‘दंगल’ (कुश्ती का मैदान)  दोनों को सूट करता है। समान रूप से आपत्तिजनक यह है कि बीजेपी ने खुद को पीड़ित के रूप में पेश किया, बंद का आह्वान किया, बलात्कार पीड़िता पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय खुद पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की। बंगाल के लोगों ने इस खेल को समझ लिया और इसे अनदेखा कर दिया। इसके विपरीत, वाम मोर्चा दलों ने इसके समानांतर विशाल लामबंदी का आयोजन किया है, जो स्वतःस्फूर्त विरोधों को आवश्यक ताकत देता है। ऐसा करके वाम मोर्चे ने “महिलाओं के एकमात्र गैर-राजनीतिक” डिब्बे को तोड़ने में भी मदद की है और दिखाया है कि कैसे एक जिम्मेदार राजनीतिक दल आंदोलन के नेताओं के निर्णयों का सम्मान करते हुए, और इस मामले में डॉक्टरों के निर्णयों का सम्मान करते हुए, आंदोलन की मांगों का निरंतर समर्थन कर सकता है।

बंगाल में टीएमसी ने राज्य भर में लोगों की स्वतःस्फूर्त लामबंदी और वाम मोर्चे की स्वतंत्र लामबंदी को बदनाम करने की पूरी कोशिश की है — जो एकजुटता का  अपराधीकरण बनाने की कोशिश कर रही है। एकजुटता का ऐसा अपराधीकरण और एकजुटता लामबंदी के पीछे “राजनीतिक” मकसद को आरोपित करना भी न्याय की मांग करने वाली आवाज़ों को चुप कराने में भूमिका निभाता है। यह पीड़ित और उसके परिवार को अलग-थलग कर देता है और उन्हें सामाजिक समर्थन से वंचित करता है, जबकि अपराधी को फ़ायदा होता है। हमें एकजुटता के अपराधीकरण को ख़ारिज करना चाहिए, जो आंदोलन को बदनाम करने के लिए टीएमसी द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा एक हथियार है।

*नए कानून का नाटक*

यौन अपराध को रोकना व्यापक रूप से सरकार, पुलिस और समाज की जिम्मेदारी है। दिल्ली में निर्भया कांड के बाद गठित वर्मा आयोग ने कानून में बदलाव समेत कई सिफारिशें की थीं, जिनमें से कुछ को लागू भी किया गया। इस बारे में हम पूरी तरह स्पष्ट हैं कि आर.जी.कर के मामले में अपराध इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि कानून में कोई कमी या कमजोरी है। बंगाल में आर.जी.कर अस्पताल और अन्य संस्थानों में ऐसे अपराध को बढ़ावा देने वाली व्यवस्था किसी कानूनी कमी की वजह से नहीं हैं। फिर भी बंगाल की मुख्यमंत्री ने नया कानून पारित करने का नाटक किया है। यह ध्यान भटकाने का एक कुटिल तरीका है। प्रस्तावित कानून में बहुत सारी खामियां हैं और यह वर्मा आयोग की सिफारिशों का उल्लंघन करता है। ऐसे कदम बलात्कार और हत्या की पीड़िता को न्याय दिलाने में किसी भी तरह से मददगार नहीं हैं। सरकार और प्रशासन को जवाबदेही स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए।

*(लेखिका माकपा पोलिट ब्यूरो की सदस्य और भारत में महिला आंदोलन की अग्रणी नेता हैं। अनुवादक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)*

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