भरत गहलोत
बेरोजगारी एक ऐसा जहर है जो हिंदुस्तान की फिजा में घुलता ही जा रहा है,
बेरोजगारी एक ऐसे बालक की तरह है जो दिनों दिन बढ़ रहा है,
सरकारे आ रही है जा रही है एक दूसरे पर आक्षेप लगा रही है कि अमुख सरकार के समय मे बेरोजगारी ज्यादा थी,
और विकास तो जैसे कही गुम हो गया है ,गुमनाम हो गया है,
विकास के नाम धार्मिक उन्मादता का विकास हुआ है जो भरपूर हुआ है ,
बेरोजगारी अपने चरम पर है ,
बेरोजगारी का आलम यह है कि युवाओं ने हताश होकर रोजगार के लिए कोशिशे भी बन्द कर दी है ,
रोजगार देने व बेरोजगारी मिटाने के दावे व वादे सिर्फ नेताओ के भाषणों व उनके चुनावी घोषणा पत्रों तक ही सीमित हो गए है,
मजबूरन लोगो को जिस कार्य की आस नही थी वो करना पड़ता है ,मतलब जैसे स्नातकोत्तर व उच्च शिक्षित व्यक्ति को चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी की नौकरी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, और जो कार्य को उसने कभी करने का सोचा भी नही था वो करना पड़ता है,
खैर कार्य कोई छोटा बड़ा नही होता है किंतु इस प्रकार से देश की मेघावी प्रतिभाओं का हास हो रहा है ,
विकास के नाम पर सड़के ,विद्यालय ,महाविद्यालय , चिकित्सालय की जगह नेताओ की बड़ी -बड़ी मूर्तिया बनाई जा रही है जिसका कोई औचित्य नही है,
दरअसल सरकारे चाहती ही नही है कि विकास हो बेरोजगारी घटे रोजगार के अवसर बढ़े,
क्योंकि अगर ऐसा कोई सरकार कर देंगी तो फिर उनका चुनावी मुद्दा खत्म हो जाएगा जिससे उनकी राजनीति खत्म हो जाएगी,
सरकारो को चाहिए की वो अपने निजी राजनीतिक हितों को तिलांजलि देकर के जनहित के कार्य करे जो इन राजनेताओ के लिए कभी भी सम्भव नही है,
जनता को चाहिए की वो निजी हितों से ऊपर उठकर ऐसे प्रत्याशियों को ही वोट व समर्थन प्रदान करे जो उनकी बात व इस बेरोजगारी रूपी दीमक व बीमारी को जड़ से मिटाने के लिए देश की संसद , विधानसभा , राज्य सभा मे देशहित ,राज्यहित के लिए आवाज उठाए,
भरत गहलोत
जालोर राजस्थान