शशिकांत गुप्ते
अठारवी सदी में जन्में कवि गिरधरजी रचित काव्य में मानव जीवन को आदर्श रूप में जीने के लिए मार्ग दर्शन है।
बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछिताय
काम बिगारै आपनो, जग में होत हंसाय॥
जग में होत हंसाय, चित्त में चैन न पावै।
खान पान सन्मान, राग रंग मनहिं न भावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय, दु:ख कछु टरत न टारे।
लगभग तीन सौ वर्ष बाद भी गिरधर कवि के उपदेश प्रासंगिक है।
वर्तमान में सर्वत्र विचारहीनता ही दिखाई देती है।
धार्मिक आयोजनों में लोगों की तादाद को श्रद्धालु कहा जाता है।
काश सच में इतनी संख्या में लोगों में श्रद्धा जाग जाए तो अंधश्रद्धा निर्मूलन का बीड़ा उठाने वालों को घर में बैठ जाना चाहिए।
सामाजिक क्षेत्र में समाज के लोगों की उपस्थिति को लोगों की सामाजिक उन्नति का द्योतक समझा जाता है। यह उन्नति भौतिक है या मानसिक परिपक्वता है,यह मानो विज्ञान के लिए खोज का विषय है।
सांस्कृतिक क्षेत्र में उपस्थिति लोगों को संस्कारित करने के लिए मानी जाती है,वर्तमान में सांस्कृतिक गतिविधियों के नाम पर संस्कारों को धता बताने वाले धारावाहिक,मनोरंजन के नाम पर द्विअर्थी संवाद के साथ फूहड़ता के नाम पर हास्य परोसा जा रहा है।
राजनैतिक कार्यक्रमों में लोगों की उपस्थिति को भूल से समर्थकों की तादाद समझा जाता है।
यह सब हर क्षेत्र में व्याप्त विचारविहीनता के कारण हो रहा है।
उपर्युक्त सारे क्षेत्रों में सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
बशर्ते प्रत्येक मानव में मानवीयता जागृत हो जाए?
किसी विचारक ने कहा है।मनुते इति मानवः पश्यते इति पशु
अर्थात जो मनन करने की योग्यता रखता है वही मानव होता है,जो सिर्फ देखता है वह पशु ही है। तात्पर्य विचारहीनत के कारण मानव के मानस का विकास अवरूद्ध होकर मानव, अत्याधुनिक तकनीक के द्वारा रोबोट (Robot) निर्मित हो रहा है।
जो दूसरों के रिमोट के निर्देश पर ही चलता है। औरउतना ही चलता है,जितनी चाबी भरी राम ने उतना चले खिलौना
प्रत्यक्ष उदाहरण ट्रैफिक प्वाइंट पर सिग्नल लगे होने बावजूद वहां ट्रैफिक पुलिस के तैनात होने की आवश्यकता होती है?
यह शर्म की बात है या गर्व की यह समझ में आजाएगा तो विचारहीनता भी समझ में आ जाएगी।
शशिकांत गुप्ते इंदौर