मुनेश त्यागी
आज आजादी के अवसर पर बहुत सारी बातें हो रही हैं। आजादी के अमृत महोत्सव की बात हो रही है। घर घर तिरंगा फहराने की बात हो रही है और इसे लेकर बीजेपी ने राष्ट्रीय स्तर पर एक अभियान से छेड़ दिया है। उसका कहना है कि वह 14 और 15 अगस्त को देश के 24 करोड़ घरों पर तिरंगा फहराएंगी। तिरंगे को लेकर एक तरफ तो यह बातें हो रही हैं जैसे तिरंगा ही उनके लिए सब कुछ हो गया हो और वे हर घर पर तिरंगा फहराना चाहते हैं।
आखिर अब ऐसा क्या हो गया है कि वे इस तिरंगे को फहराने के लिए दीवाने से हो गए हैं? और आजादी का 75 वां अमृत महोत्सव मनाने की बात कर रहे हैं। मगर यहीं पर हमें यह जानना होगा कि मोदी जी आर एस एस के सदस्य हैं और आर एस एस के लोगों का, जब आजादी मिलने के वक्त, तिरंगे को राष्ट्रीय झंडा घोषित करने की बात की गई और तिरंगे झंडे को राष्ट्रीय झंडा घोषित कर दिया गया तो तब, आर एस एस का तिरंगे को लेकर क्या कहना था। आइए तिरंगे के बारे में आर एस एस के लोगों का क्या कहना था? क्या मान्यता थी? इसे उनके लोगों के कथनों से ही जानते हैं।
वी डी सावरकर जो हिंदुत्व का जनक था और जिसने 1923 में प्रतिपादित किया था कि यहां पर दो राष्ट्र हैं एक हिंदू और एक मुसलमान, ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते और वह तमाम जिंदगी भारत को तोड़ने की खंड खंड करने ही फिराक में लगा रहा, और आज भी आर एस एस और बी जे पी के लोगों का पूजनीय बना हुआ है, तो आइए जानते हैं कि सावरकर का तिरंगे झंडे के बारे में क्या कहना था? सावरकर कहता है,,,
“हिंदू किसी भी कीमत पर वफादारी के साथ अखिल हिंदू ध्वज यानी भगवा ध्वज के सिवा और किसी ध्वज को सलामी नहीं कर सकते।”
एमएस गोलवलकर, जिसे आर एस एस के लोग गुरु गोलवलकर भी कहते हैं,,,भारत के तिरंगे झंडे को लेकर गोलवलकर का कहना था कि
“भारत का झंडा एक ही रंग का और भगवा होना चाहिए। तीन का शब्द तो अपने आप में ही अशुभ है और तीन रंगों का ध्वज निश्चय ही बहुत बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालेगा और देश के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा।”
तिरंगे झंडे को लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने क्या कहा था, उन्हीं के शब्दों में जानते हैं,,,,,,
“भगवा रंग वाला ध्वज एकमात्र ऐसा ध्वज है जो हिंदुस्तान में राष्ट्रीय ध्वज होना चाहिए और हो सकता है। जो लोग भाग्य के प्रहार से सत्ता में आए हैं वे भले ही हमारे हाथों में तिरंगा दे दे लेकिन इसका कभी भी सम्मान और स्वामित्व हिंदुओं के पास नहीं होगा।”
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज बन गया। लेकिन तब भी आरएसएस ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया। गोलवलकर ने विचार नवनीत में राष्ट्रीय झंडे के मुद्दे पर अपने लेख “पतन ही पतन” में तिरंगे की अवमानना करते हुए लिखा था, “
“हमारे नेताओं ने हमारे राष्ट्र के लिए एक नया ध्वज तैयार किया है। उन्होंने ऐसा क्यों किया? यह पतन की ओर बहने तथा नकलचीपन का एक स्पष्ट प्रमाण है। कौन कह सकता है कि यह एक शुद्ध और राष्ट्रीय तथा स्वस्थ राष्ट्रीय दृष्टिकोण हैं? यह तो केवल एक राजनीति की जोड़जाड थी, केवल राजनीतिक कामचलाउ तत्कालिक उपाय था। यह किसी राष्ट्रीय अथवा राष्ट्रीय इतिहास तथा परंपरा पर आधारित किसी सत्य से प्रेरित नहीं था। वही ध्वज आज कुछ छोटे से परिवर्तनों के साथ राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपना लिया गया है। हमारा एक प्राचीन तथा महान राष्ट्र है जिसका गौरवशाली इतिहास है, तब क्या हमारा अपना कोई ध्वज नहीं था? क्या सहस्त्र वर्षों से हमारा कोई राष्ट्रीय चिन्ह नहीं था? निःसंदेह वह था। तब हमारे दिमागों में यह शून्यतापूर्ण रिक्तता क्यों?
आर एस एस खुलकर तिरंगे का अपमान करता रहा है और उस को बदनाम भी करता है गोलवलकर ने नागपुर में 14 जुलाई 1946 को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर इकट्ठे लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि,,,,,
भगवा ध्वज संपूर्णता के साथ हमारी महान संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। यह ईश्वर का प्रतिरूप है। हमें पक्का विश्वास है कि अंत में पूरा देश भगवा ध्वज को नमन करेगा।”
तो संक्षेप में यह है तिरंगे झंडे को लेकर आर एस एस और उसके लोगों का रुख। तिरंगे झंडे को आर एस एस के लोगों ने कभी स्वीकार नहीं किया। मोदी या आर एस एस के प्रवक्ताओं ने या अधिकारियों ने, तिरंगे झंडे को लेकर उस वक्त कहे गए अपमानपूर्ण शब्दों पर कोई खेद व्यक्त नहीं किया है और ना ही अपने उन तिरंगे झंडे विरोधी कथनों को वापस नहीं लिया है। तब वे सब मिलकर तिरंगे झंडे की ऐसी तैसी कर रहे थे और आज वे तिरंगा तिरंगा कर रहे हैं। आखिर माजरा क्या है? अब समय का तकाजा है या आर एस एस अपनी उस भूल और गलती को स्वीकारने में लगा है, यह तो वक्त ही बताएगा।
आज भारत के आजादी के अमृत महोत्सव का बड़े जोरों जोरों शोरों से प्रचार हो रहा है। मगर इसी आर एस एस का भारत की आजादी के आंदोलन में क्या योगदान था? इसे भी जानने की जरूरत है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने जन्म काल से ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का विरोधी था। भारतीय जनता को आजाद कराने के लिए और उसे लुटेरे अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाने के लिए, आर एस एस ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कोई कार्यवाही नहीं की, उल्टे वे अंग्रेजों का साथ देते रहे। उसमें वे भारत के एससी एसटी ओबीसी और किसानों मजदूरों को आजादी देने का विरोध कर रहे थे।
इस विषय में श्यामा प्रसाद मुखर्जी क्या कर रहे थे,उसकी एक बानगी, हम यहां पर प्रस्तुत कर रहे हैं। 26 जुलाई 1942 को बंगाल के गवर्नर को चिट्ठी लिखकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने “भारत छोड़ो आंदोलन” को हर हाल में कुचलने की सलाह दी थी तथा अंग्रेजों हुकूमत के प्रति अपनी वफादारी दोहराई थी। उसी का एक अंश देखिए,,,,
” प्रश्न यह है बंगाल में इस आंदोलन (भारत छोड़ो) से कैसे निपटा जाए? प्रांत का प्रशासन इस तरह से चलाया जाना चाहिए कि कांग्रेस द्वारा हर संभव कोशिश करने के बाद भी यह आंदोलन प्रांत में जड पकड़ने में असफल रहे। हम लोगों, विशेषकर जिम्मेदार मंत्रियों को चाहिए कि जनता को समझाएं कि कांग्रेस ने जिस स्वतंत्रता को हासिल करने के लिए आंदोलन शुरू किया है, वह स्वतंत्रता जनप्रतिनिधियों को पहले से ही हासिल है। कुछ मामलों में आपात स्थिति में यह स्वतंत्रता कुछ सीमित हो सकती है। भारतीयों को अंग्रेजों पर भरोसा करना चाहिए।”
इसी क्रम में हम देख सकते हैं कि पिछले 8 साल में लोगों की स्वतंत्रता को जितनी हानि मोदी सरकार ने पहुंचाई है, उससे ज्यादा किसी भी पूर्ववर्ती सरकार ने नहीं। आज किसानों मजदूरों नौजवानों मेहनतकशों और आम जनता को आजादी से लगभग महरूम कर दिया गया है। उनकी आजादियां लगभग छीन ली गई हैं। किसानों और मजदूरों को एक बार पुनः आधुनिक गुलाम बनाने की कोशिश की जा रही है।
आजादी के आंदोलन के समय ये ताकतें अंग्रेजों की बगलगीर थीं और आज भी ये ताकतें देशी विदेशी चंद पूजीपतियों की मदद करके भारत की जनता की आजादी छीन रही हैं। भारत की जनता की आजादी में, और उसको आजाद रखने में, इनकी कोई रुचि नहीं है। हमें इन आजादी विरोधी ताकतों को आज इसी प्रकार समझना चाहिए और इन से सावधान रहना चाहिए और इनकी आजादी विरोधी और तिरंगे झंडे का अपमान करने की हकीकत को, जनता के बीच में ले जाना चाहिए और वहां पर इनका भंडाफोड़ करना चाहिए और इनके बारे में जनता को अवगत कराना चाहिए। वर्तमान समय की यह सबसे बड़ी जरूरत है।