शोभा शुक्ला – सीएनएस
फैला रहा है जो जेंडर अधिकार कार्यकर्ता सदियों से उपयोग करते आए हैं। उदाहरण के लिए, जेंडर विरोधी लोगों ने ‘जिनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन’ नामक जेंडेर-विरोधी षड्यंत्र रचा और ‘जिनेवा’ शब्द का उपयोग किया जिससे कि लगे कि यह ‘न्याय’ और ‘अधिकार’ संबंधित है। पर असल में यह अधिकार-विरोधी, जेंडर-विरोधी और प्रतिगामी है। न तो यह अंतर-सरकारी समझौता है, न ही क़ानूनी रूप से बाध्य है, पर ऐसा धोखा देता है जिससे कि सरकारों को गुमराह कर सके, जेंडर समानता को पीछे धकेल सके और पितृसत्तात्मकता की जड़ मज़बूत कर सके।”

मानवाधिकार के लिए चिकित्सक समूह (फिजिशियन फॉर ह्यूमन राइट्स) में कानून, शोध और पैरवी निदेशक डॉ पायल शाह इस बात से सहमत हैं: “मैं वैश्विक हित-धारकों से जेंडर समानता और स्वास्थ्य सेवाओं के पक्ष में त्वरित करवाई करने का आह्वान करती हूँ जिससे कि अमरीका द्वारा वित्तीय-सहायता की बंदी और स्वास्थ्य सेवा के अपराधिकरण (जैसे कि कुछ देशों में गर्भपात ग़ैर कानूनी है) के कुप्रभाव को पलटा जा सके। हमें “प्रजनन हिंसा” को भी उजागर करना होगा, जिसमें प्रजनन स्वायत्तता की विनाशकारी, व्यवस्थित वंचना पर ध्यान केंद्रित हो सके।”
यदि यही हाल रहा तो यह तय है कि हम सतत विकास लक्ष्य-5 (जेंडर समानता) और लक्ष्य-3 (स्वास्थ्य अधिकार) को पूरा नहीं कर सकेंगे। इन लक्ष्य और 1995 की बीजिंग घोषणा की दिशा में जो भी थोड़ी-बहुत प्रगति हुई है, वह आज अधिकार-विरोधी दबाव के चलते खतरे में है। प्रतिगामी ‘जिनेवा सर्वसम्मति घोषणा’ (जेंडर-विरोधी जिनेवा कंसेंस डिक्लेरेशन) , मैड्रिड प्रतिबद्धता (जेंडर-विरोधी मैड्रिड कमिटमेंट), और गैग नियम (या गैग रूल जो अमरीकी सरकार का जेंडर विरोधी पुराना हथियार है), महिलाओं और जेंडर विविधता वाले लोगों के अधिकारों और शारीरिक स्वायत्तता के हिंसक कटौती के चंद उदाहरण हैं।
शारीरिक स्वायत्तता की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि जेंडर असमानता हमारी पीढ़ी के साथ समाप्त हो, हमारी सरकारों को तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक है। सर्वविदित है कि अभी एक लंबा सफ़र बाक़ी है।
शोभा शुक्ला – सीएनएस (सिटीज़न न्यूज़ सर्विस)
(शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) की संस्थापिका-संपादिका हैं, नारीवादी कार्यकर्ता हैं, और लोरेटो कॉन्वेंट कॉलेज की भौतिक विज्ञान की वरिष्ठ सेवानिवृत्त शिक्षिका हैं।
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