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यूक्रेन के नेतृत्वकर्ता के साहस को सलाम

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पुष्पा गुप्ता (शिक्षिका)

   _एक छोटा सा देश महाबली रूस से के सामने 26 दिन से टिका हुआ है। ज़ेलेंसकी एक महान योद्धा हैं । पर क्या वे एक महान नेता भी हैं ? एक खूबसूरत देश और उसके लाखों नागरिकों का जीवन संकट में है । क्या एक नेता के बतौर इस युद्ध को टालना उनकी जिम्मेदारी नहीं थी , जिसमें वे नाकामयाब रहे।_
    टोनी ब्रेन ने कहा है - ऑल वार रिप्रेजेंट फैल्यूअर आफ डिप्लोमेसी...!"
_हर युद्ध  राजनीति की विफलता है। हर उलझा हुआ मसला  सुलझने के लिए पहले राजनीति की कुंडी खड़काता है ,जब दरवाजा नहीं खुलता तभी युद्ध के मैदान में जाता है। जेलेंस्की ने इस कुंडी की आहट क्यों नहीं सुनी ?_
    लेकिन इस कूटनीतिक विफलता के बावजूद वे हमारे और तमाम दुनिया के हीरो हैं। ऐसा क्यों है ?

शायद इसलिए क्योंकि बचपन से हमें वीरता की कहानियां सुनाई जाती हैं। ये कहानियां हमारे अचेतन में घर कर गई हैं। साहस और शौर्य हमारे सर्वोच्च जीवन मूल्य हैं जबकि बातचीत से मसले को सुलझाना जिसे आम भाषा में हम कूटनीति या निगोशिएशन की कला कह सकते हैं , को हमने कभी सम्मान नहीं दिया।
इन कहानियों का एक असर यह भी है कि एक व्यक्ति के रूप में हमारे जीवन मूल्य एक राष्ट्र के रूप से बिल्कुल उलट हैं । व्यक्ति के रूप में हिंसा बुरी बात है पर जब एक सैनिक दूसरे सैनिक को मारता है तो वह वीर कहलाता है।
शायद वीरता एक ओवररेटेड वैल्यू है। शांति के दिनों में एक नागरिक मर जाए तो इसे सरकार की विफलता माना जाता है मगर युद्ध के दिनों में नागरिक की मृत्यु बलिदान है। यह अजीब है । जीवन की कीमत मरने के कारणों से कैसे तय हो सकती है?
;कुछ साल पहले मैंने एक प्लाट खरीदा था । जब मैंने कंस्ट्रक्शन शुरू किया तो पता चला पड़ोस वाले की इमारत मेरे प्लाट के एक कोने में बहुत अंदर तक घुस आई है । बहुत झगड़ा हुआ । फिर जिस दलाल ने मुझे वह प्लाट दिलाया था।
उसने एक मीटिंग बुलाई। उसने अपने वाकचातुर्य से हम सभी को एक सम्मानजनक समझौते के लिए तैयार कर लिया । हमने साथ चाय पी , थोड़ा-थोड़ा गम खाया और ले देकर मामले को निपटा लिया।
उस दलाल ने एक संभावित खून खराबे को टाल दिया । इस तरह के लोगों को हम वह सम्मान नहीं देते जो लड़ने वालों को देते हैं । हम आए दिन अखबारों में पढ़ते हैं , पड़ोसियों में मामूली विवाद हुआ ,बात बढ़ी और हत्या हो गई!
सोचिए यदि वहां कोई व्यक्ति बातचीत के हुनर से मसले को सुलझा देता तो एक इंसान की जिंदगी बच सकती थी।
वाक् चातुर्य और निगोशियेशन स्किल्स के हुनर को जीवन जीने की कला माना जाना चाहिए। शायद हमें अपने स्कूलों के पाठ्यक्रम में इसे शामिल करना चाहिए।
और हां हर देश में शहीदों के स्मारक के साथ एक स्मारक उन लोगों का भी बनाया जाना चाहिए जिन्होंने कोई युद्ध टाल दिया था।
(चेतना विकास मिशन)

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