डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता
सनातन का सरल भाषा में अर्थ है ‘‘नित्य’’। वैदिक धर्म को ही सनातन धर्म की पंक्ति में सर्वप्रथम स्थान पर माना गया है। धर्म की परिभाषा शास्त्रों में , ‘‘धरणाद् धर्मः ’’ वर्णित की गई है। धर्म वही माना गया है जो कि मानव को सब प्रकार से विनाशकारी एवं अधोगति कर्म से मानव रोक कर जाति को उन्नति के पथ पर अग्रेषित करें।
इसके ही कारण वेदों में मात्र पारलैकिक सुख प्राप्ति का मार्ग बताकर ही वर्णित नहीं किया गया है वरन् वेद इस संसार में मानव के सर्वांगीर्ण विकास उन्नति और समृद्धि का मार्गदर्शक भी है।
सनातन धर्म का अत्यन्त ही लोकप्रिय अर्थ , ‘‘सनातनस्य घर्म इति सनातन धर्मः’’ है। यह धर्म परमात्मा (ईश्वर) द्वारा स्थापित धर्म है। अन्य घर्म तो महापुरूषों, संतों,-उपदेशकों द्वारा निर्मित-प्रचारित हो सकता है। कुछ धर्म पूर्व काल में थे , किन्तु वर्तमान में नहीं है तथा कुछ धर्म आज है ,पूर्व काल में नहीं थे किन्तु सनातन धर्म पूर्व काल में था तथा आज भी है यहीं इसकी प्रमुख विशेषता है।
सनातन धर्म अनादि और अनन्त है। सनातन धर्म सृष्टि के प्रारम्भ में होने से प्रलयकाल तक रहेगा क्योंकि वह नश्वर नहीं है। सनातन धर्म को दूसरे शब्दों में ‘‘ सनातनश्यचासो धर्मश्च ’’ अर्थात सनातन रूप से सृष्टि के प्रारम्भ से सृष्टि केे अंत समय तक रहने वाला धर्म है। विश्व के अनेक देशों में विविध धर्म आये और विलोपित हो गये। एक समय में उनका नाम इतिहास के पृष्ठों में था जैसे युनान,रोम ,मिश्र,जिनेवा, पर्शिया , बेबीलोन आदि। आज इन देशों की स्थिति क्या है ? कहने की कोई आवश्यकता नहीं। सनातन धर्म अमर है अतः इनके द्वारा बनाया गया धर्म भी अमर है तथा इस धर्म के मार्ग पर चलने वाला भी अपने शुद्ध नित्य परमात्मा के साक्षात्कार से एकाकार कर अमर हो जाता है।
‘‘ सार्वभौमिक सनातन धर्म ’’
इस संसार में ऐसा कोई तत्व (पदार्थ) नहीं है जो नष्ट नहीं होता है। इस सृष्टि में स्थायी , निश्चल तथा सदा स्थिर रहने वाला यदि कोई है तो वह एकमात्र कालजयी घर्म ही है। इसलिये विवेकशील मानव का परमकर्तव्य है कि वह अमृत रूपी धर्म का सदैव पान करता रहे।
आज विश्व में विज्ञान ने क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दिये है। महिनों वर्षो की यात्रा कुछ ही घण्टों में की जाने लगी। जल-थल-वायु मार्गो पर शीघ्र एवं निर्भीक होकर यात्रा की जाने लगी। टेलीविजन और टेलीफोन ने आमने सामने खड़ा कर दूरी कम कर दी है। विज्ञान ने मानों प्रकृति पर विजय की दुन्दुभि बजा दी हो किन्तु इतना सब होने पर भी मानव अन्तर से शांत और सुखी नही है। चारों ओर शस्त्रों की दौड़ चल रही है। प्रत्येक राष्ट्र भयभीत हो रहा है। तीक्ष्णतम मारक यंत्रों के निर्माण में लग गया है।
सनातन धर्म सार्वभौम घर्म है क्योंकि सारी वसुधा ही अपना कुटुम्ब (परिवार) है -वसुधैव कुटुम्बकम्। सनातन घर्म सबकों कल्याणकारी कामना दृष्टि से देखता है –
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत्।।
सनातन धर्म ही आज विश्व में शत-प्रतिशत कल्याणकारी धर्म है। वह विश्वबन्धुत्व ,विश्वशांति, विश्वकल्याण, विश्व का विकास चाहता है न कि विनाश। आज विश्व में शिक्षक ,शासक विद्यार्थी , माता-पिता ,भाई-बहन पुत्र-पुत्री सभी को अपने-अपने धर्म को समझकर निष्ठापूर्वक उसका पालन अनुसरण करना चाहिये। सभी को एक-दूसरे के अधिकारों की रक्षा करना चाहिये तथा अपने कर्तव्य का भी पालन करना चाहिये। इसीलिये भारत में वर्णाश्रम व्यवस्था सनातन वैदिक धर्म में रखी गई है। शरीरविज्ञान में स्वयं सिद्ध है कि शरीर में हाथ पैर और मस्तिष्क, नाक, कान, ऑख आदि की विशेषताएं है तथा सबके कार्य -कर्तव्य भी भिन्न है। वैसे ही चारों वर्णो की अपनी एक उपयोगिता भी है। प्रत्येक को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिये। भगवान् श्रीकृष्ण ने भी गीता में कहा है –
सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृता:।।
गीता: 14-48
इस प्रकार सभी वर्णों को स्वार्थ का त्याग कर जनता की सेवा करने के लिये अपने अपने कर्तव्य का पालन नितान्त आवश्यक है। भारतीय आश्रम व्यवस्था भी धर्म पालन एवं समाज में अनुशासन निर्माण में अद्वितीय है।
ये सब विशेषताएँ अन्य धर्मो में नगण्य दृष्टिगत होती है अतः सनातन धर्म ही सार्वभौम धर्म कहा गया है। सनातन धर्म में प्रमुख रूप से 10 लक्षणों को बताया गया है ,ये भगवान् मनु ने सनातन धर्म के निरूपण में भी बतलाएँ है
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विधा सत्यमक्रोघो दशकं धर्म लक्ष्णम्।।
ये 10 ही लक्षण सनातन धर्म को सार्वभौम धर्म के उच्च शिखर पर स्थापित करते हैं। इन लक्षणों में विश्व के अन्य सभी धर्मो के लक्षण निहित हैं। प्रायः सभी धर्म इन्हें मान्यताएँ देते है।
सनातन धर्म अन्तर्राष्ट्रियता एवं विश्वबन्धुत्व की भावना से ओतप्रोत है , अस्तु आज भी सनातन है और रहेगा।