आराधना पांडेय
जनवरी 2025 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। यह आयोजन गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर आस्था और परंपरा का प्रतीक है। हर बार की तरह लाखों श्रद्धालु यहां डुबकी लगाने और पुण्य अर्जित करने आएंगे। लेकिन इस बार, यह पवित्र स्थल गंभीर सवालों के घेरे में है। क्या यह पवित्र जल अब स्नान और आचमन के योग्य है? नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की हालिया रिपोर्ट में जो खुलासे हुए, वे न केवल चिंता बढ़ाते हैं, बल्कि हमारे विश्वास को भी झकझोरते हैं।
गंगा और यमुना, जो पवित्रता और आध्यात्मिकता की प्रतीक मानी जाती हैं, अब बढ़ते प्रदूषण और untreated सीवेज के कारण संकट में हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज में प्रतिदिन लगभग 128.28 एमएलडी मलजल बिना किसी शोधन के गंगा और यमुना में प्रवाहित हो रहा है। संगम पर स्नान करने वाले श्रद्धालु इस बात से अनजान होते हैं कि जिस पानी को वे पवित्र मानते हैं, वह न केवल स्नान बल्कि आचमन के लिए भी असुरक्षित हो चुका है।
प्रयागराज में हर दिन लगभग 289.97 एमएलडी सीवेज 81 नालों से निकलता है। हालांकि, इस सीवेज के उपचार के लिए मौजूदा 10 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) की क्षमता केवल 178.31 एमएलडी है। इसका अर्थ है कि 128.28 एमएलडी सीवेज बिना शोधन के सीधे नदियों में गिर रहा है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि 81 नालों में से 44 नाले अब तक अनटैप्ड हैं। इनमें से 73.80 एमएलडी मलजल सीधे गंगा में प्रवाहित हो रहा है।
एनजीटी की एक पीठ, जिसकी अध्यक्षता जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव कर रहे हैं, ने इस स्थिति को लेकर गहरी नाराजगी जताई है। जुलाई 2024 में प्रस्तुत एक संयुक्त समिति की रिपोर्ट के आधार पर एनजीटी ने कहा कि 90 एमएलडी और 50 एमएलडी क्षमता वाले एसटीपी के लिए अभी तक निविदा प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। वहीं, 43 एमएलडी वाले एसटीपी का निर्माण कार्य मार्च 2024 में शुरू हुआ है, लेकिन उसकी प्रगति धीमी है।
एक अन्य बड़ी समस्या यह है कि प्रयागराज के लगभग 1,66,456 घर अभी भी सीवेज नेटवर्क से नहीं जुड़े हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि इन घरों से निकलने वाला सीवेज मौजूदा एसटीपी तक पहुंचेगा या प्रस्तावित नए एसटीपी पर निर्भर करेगा।
उत्तर प्रदेश सरकार ने एनजीटी को बताया कि नवंबर 2024 तक 44 में से 17 नालों को टैप कर लिया जाएगा और इन्हें एसटीपी से जोड़ा जाएगा। इस प्रक्रिया से 11.61 एमएलडी सीवेज का उपचार संभव होगा। इसके अलावा, तीन नए एसटीपी-90 एमएलडी, 43 एमएलडी और 50 एमएलडी की क्षमता वाले-प्रयागराज में बनाए जा रहे हैं, जिनसे सीवेज उपचार की क्षमता में सुधार होगा।
एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह सभी अनटैप्ड नालों को समयबद्ध तरीके से टैप करे और सीवेज का प्रवाह पूरी तरह से रोके। पीठ ने यह भी कहा कि गंगा और यमुना का जल न केवल स्नान योग्य बल्कि पीने योग्य होना चाहिए।
महाकुंभ की चुनौतियां?
महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन से पहले गंगा और यमुना की जल गुणवत्ता में सुधार करना अत्यंत आवश्यक है। एनजीटी ने सुझाव दिया है कि सभी स्नान घाटों पर जल की गुणवत्ता को दर्शाने वाले डिस्प्ले बोर्ड लगाए जाएं। यह श्रद्धालुओं को सूचित रखने और उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए जरूरी है।
महाकुंभ 2025 में प्रयागराज के पवित्र संगम में स्नान करने आते हैं। लेकिन इस आयोजन के साथ कई चुनौतियां भी सामने हैं, खासकर गंगा और यमुना नदियों के बढ़ते प्रदूषण और अधूरी तैयारियों को लेकर। नदी विशेषज्ञ और पर्यावरण कार्यकर्ता सौरभ सिंह का कहना है कि गंगा को लेकर एक बड़ा भ्रम है। वे कहते हैं, “गंगा हमारे पापों को शुद्ध कर सकती है, लेकिन हमारे द्वारा फैलाए गए कचरे और प्रदूषण को नहीं। गंगा को पवित्र बनाए रखने के लिए हमें अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा। हमारे पास संसाधन, तकनीक और विशेषज्ञता है, लेकिन ईमानदारी और समर्पण की कमी है।”
सौरभ सिंह आगे कहते हैं कि सरकार ने कई फैक्ट्रियों को बंद कराया और प्रदूषण नियंत्रण नियमों को सख्त किया है, लेकिन नतीजे अब भी संतोषजनक नहीं हैं। उनका सुझाव है कि महाकुंभ से पहले ऐसा इंतजाम होना चाहिए कि श्रद्धालु साफ पानी में स्नान कर सकें, न कि गंदे और प्रदूषित पानी में।
कैसी चल रही हैं तैयारियां?
महाकुंभ 2025 की तैयारियों के तहत शहर में बड़ा बदलाव लाने का प्रयास हो रहा है। लेकिन इस बदलाव की प्रक्रिया में शहर की स्थिति कुछ और ही कहानी बयां करती है। शहर में प्रवेश करते ही टूटी-फूटी सड़कों, धूल के गुबार, सड़क किनारे टूटे-फूटे मकानों और बिखरे मलबे का दृश्य देखने को मिलता है।
प्रयागराज के नागरिक पिछले एक साल से इस अराजकता को झेल रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे शहर में हाल ही में कोई भयंकर आपदा आई हो। शहरवासियों में इस स्थिति को लेकर गहरी असंतोष है, और सड़कों के किनारे चर्चा करते लोग इस बात का सबूत हैं। महाकुंभ के आयोजन को भव्य बनाने के लिए सुंदरीकरण के कार्यों से गुजर रहा है। लेकिन यह कार्य अपने उद्देश्य से भटकता हुआ प्रतीत हो रहा है। 30 नवंबर 2024 तक इस सुंदरीकरण कार्य को पूरा करने का लक्ष्य था, परंतु यह अब तक अधूरा है।
शहर के हर मोहल्ले और सड़क पर खुदाई और निर्माण कार्य की धीमी गति लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गई है। बैरहना, रामबाग, लीडर रोड, हिम्मतगंज, करैली और ख़ुल्दाबाद जैसे इलाकों में तोड़-फोड़ का आलम ऐसा है कि लोग इसे किसी प्राकृतिक आपदा की तरह देख रहे हैं। नगर निगम, विकास प्राधिकरण और अन्य विभाग इस कार्य में लगे हैं, लेकिन उनके बीच तालमेल की कमी से काम में देरी हो रही है।
महाकुंभ की तैयारियों का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा गंगा रिवर फ्रंट परियोजना है, जिसका निर्माण कार्य तेज़ी से चल रहा है। 12 किलोमीटर लंबी इस परियोजना का उद्देश्य प्रयागराज को एक पर्यावरणीय और सांस्कृतिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करना है। यह परियोजना रसूलाबाद घाट से नागवासुकी मंदिर तक, सूरदास से छतनाग और कर्जन ब्रिज के समीप महावीर पुरी तक फैलेगी।
इस रिवर फ्रंट को लखनऊ के गोमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर डिजाइन किया जा रहा है। इसमें इंटरलॉकिंग, बोल्डर क्रेट और स्लोप पिचिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। परियोजना का उद्देश्य तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को एक सुरक्षित और आकर्षक अनुभव प्रदान करना है। रिवर फ्रंट के किनारे बेंच, सेल्फी प्वाइंट और मनोरम स्थल बनाए जाएंगे।
महाकुंभ 2025 की तैयारियों को लेकर सरकार ने बड़े दावे किए हैं, लेकिन जमीन पर स्थिति कुछ और ही नजर आती है। संगम क्षेत्र में चल रहे निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं। जगह-जगह मिट्टी और मलबे के ढेर लगे हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दावा है कि दिसंबर 2024 तक सभी कार्य पूरे कर लिए जाएंगे।
सरकार की प्रमुख घोषणाएं:
1.5 लाख से अधिक शौचालयों का निर्माण।
10,000 सफाई कर्मचारियों की तैनाती।
7,000 से अधिक बसों की व्यवस्था।
मेला क्षेत्र में 25 सेक्टरों का निर्माण और 30 पंटून ब्रिज की स्थापना।
सफाई की निगरानी के लिए आईसीटी आधारित मॉनिटरिंग सिस्टम।
गंगा-यमुना नदी के घाटों का सौंदर्यीकरण और पुनरुद्धार।
महाकुंभ की स्नान तिथियां
महाकुंभ 2025 के दौरान स्नान पर्व श्रद्धालुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण होंगे। इन तिथियों पर लाखों श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाएंगे। शाही स्नान: 14 जनवरी: मकर संक्रांति (पहला शाही स्नान), 29 जनवरी: मौनी अमावस्या (दूसरा शाही स्नान), 3 फरवरी: बसंत पंचमी (तीसरा शाही स्नान) होगा। इसके अलावा 13 जनवरी: पौष पूर्णिमा पर, 12 फरवरी: माघी पूर्णिमा और 26 फरवरी: महाशिवरात्रि पर संगम तट पर स्नान होगा।
महाकुंभ के दौरान गंगा स्नान के महत्व को देखते हुए संगम क्षेत्र पर रिवर फ्रंट का निर्माण किया जा रहा है। यह परियोजना न केवल श्रद्धालुओं के लिए सुविधाजनक होगी, बल्कि प्रयागराज को एक पर्यावरणीय और सांस्कृतिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करेगी।
जल निगम के कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन डिवीजन द्वारा गंगा और यमुना के सात घाटों का पुनरोद्धार किया जा रहा है। इनमें बलुआ घाट, कालीघाट, रसूलाबाद घाट, छतनाग घाट, नागेश्वर घाट, मौजगिरी घाट और पुराना अरैल घाट शामिल हैं। इन घाटों पर कुल 11.01 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, और 30 नवंबर 2024 तक सभी कार्य पूरे होने की उम्मीद है। प्रोजेक्ट मैनेजर रोहित कुमार राणा का कहना है कि इन घाटों पर आधुनिक सुविधाओं के साथ-साथ सौंदर्यीकरण का भी ध्यान रखा गया है।
सरकार की चुनौतियां
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की है कि महाकुंभ के दौरान वीआईपी मूवमेंट पर रोक लगाई जाएगी, ताकि श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो। उत्तर प्रदेश सरकार ने बिजनौर से बलिया तक जीरो डिस्चार्ज नीति लागू करने की भी योजना बनाई है, जिसके तहत किसी भी उद्योग को गंगा-यमुना में अपशिष्ट प्रवाहित करने की अनुमति नहीं होगी।
महाकुंभ की तैयारियों में अब भी कई चुनौतियां हैं:
- निर्माण कार्यों की धीमी गति।
- गंगा और यमुना में लगातार हो रहा प्रदूषण।
- बढ़ते यातायात और भीड़ प्रबंधन की समस्या।
- निर्माण की गुणवत्ता और समयसीमा का पालन।
प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार अनूप मिश्र कहते हैं, “महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक व्यवस्था, पर्यावरणीय संतुलन और सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा की भी परीक्षा है। अगर सरकार और संबंधित एजेंसियां समय पर अपनी योजनाओं को अंजाम तक पहुंचा पाती हैं, तो महाकुंभ 2025 न केवल एक भव्य आयोजन होगा, बल्कि यह प्रयागराज को वैश्विक पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करने का एक बड़ा अवसर भी बनेगा। यह महाकुंभ केवल श्रद्धालुओं का नहीं, बल्कि हमारी आस्था और पर्यावरणीय चेतना का संगम भी होगा।”
“महाकुंभ 2025 न केवल आस्था का पर्व है, बल्कि यह प्रयागराज शहर की क्षमताओं और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की परीक्षा भी है। सुंदरीकरण और विकास के नाम पर शहर में जो अव्यवस्था फैल रही है, उसे जल्दी से जल्दी सुलझाना होगा। फिलहाल, प्रयागराज शहर धूल के गुबार और अधूरे वादों के बीच अपने भविष्य की ओर देख रहा है।”
क्या गंदगी में नहाएंगे श्रद्धालु
गंगा की स्वच्छता और पुनर्जीवन से जुड़ा मुद्दा भारत की सबसे बड़ी पर्यावरणीय और सांस्कृतिक चुनौतियों में से एक है। इस नदी के तट पर बसे 97 शहरों में लगभग 45 करोड़ लोग निवास करते हैं। इन शहरों से हर दिन 3,000 मिलियन लीटर प्रदूषित जल गंगा में गिराया जाता है। जबकि गंगा को साफ करने के लिए स्थापित जल शोधन संयंत्रों की क्षमता केवल 1,200 मिलियन लीटर प्रतिदिन है। इसका मतलब है कि गंगा में गिरने वाले गंदे पानी का 60% हिस्सा बिना शोधन के सीधे नदी में प्रवाहित हो रहा है।
गंगा को साफ करने के लिए 2014 से अब तक 37,000 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया गया है। इस राशि में से लगभग 25,000 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन परिणामस्वरूप गंगा के पानी की गुणवत्ता में केवल 20% सुधार दर्ज किया गया है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) की रिपोर्ट के अनुसार, नदी के कई हिस्सों में अब भी जैविक ऑक्सीजन की मांग (BOD) का स्तर मानक से चार गुना अधिक है।
आंकड़े बताते हैं कि गंगा को बचाने के प्रयास अभी भी पर्याप्त नहीं हैं। योजनाओं के क्रियान्वयन में धीमी गति, प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी इस समस्या को और जटिल बना रही है। गंगा की सफाई केवल सरकारी प्रयासों से संभव नहीं है। हर भारतीय को जागरूक होकर गंगा की रक्षा में अपनी भूमिका निभानी होगी। जब तक प्रदूषण के स्रोतों को जड़ से समाप्त नहीं किया जाता और जलशोधन संयंत्रों की क्षमता में वृद्धि नहीं होती, तब तक गंगा का पुनर्जीवन अधूरा रहेगा। गंगा को फिर से जीवनदायिनी बनाने के लिए सभी को भगीरथ प्रयास करने की आवश्यकता है। केवल तभी गंगा की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर को पुनर्स्थापित किया जा सकेगा।
योजनाएं और उनके अधूरे परिणाम
वरिष्ठ पत्रकार ललित गर्ग ने इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि गंगा नदी की वर्तमान स्थिति देश और सरकारों के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। उन्होंने कहा कि गंगा की सफाई, उसे प्रदूषण मुक्त करने और नदियों के माध्यम से आर्थिक विकास, धार्मिक आस्था और पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास वर्षों से किए जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘नमामि गंगे’ जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं शुरू कीं, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद गंगा की स्थिति संतोषजनक नहीं है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने हाल ही में अपनी टिप्पणी में कहा कि प्रयागराज में गंगा का पानी इतना प्रदूषित हो गया है कि वह आचमन के लायक भी नहीं रह गया है।
गंगा सफाई के लिए 2014 में ‘नमामि गंगे’ परियोजना शुरू की गई, जिसमें अब तक लगभग 40,000 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। 450 से अधिक परियोजनाएं शुरू की गईं, जिनमें सीवर व्यवस्था को दुरुस्त करना, जल शोधन संयंत्र स्थापित करना, गंगा तटों पर वृक्षारोपण, जैव विविधता को संरक्षित करना, और गंगा घाटों की सफाई जैसे कार्य शामिल थे। लेकिन इन सभी प्रयासों के बावजूद गंगा की हालत में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है।
ललित गर्ग के अनुसार, गंगा को प्रदूषित करने में औद्योगिक कचरा, रासायनिक अपशिष्ट, और नगर निगम का अनुपचारित सीवेज प्रमुख कारक हैं। उत्तरकाशी में सुरंग निर्माण के मलबे को गंगा किनारे फेंकने और गंगा की सहायक नदियों में प्रदूषित जल के प्रवेश को रोकने में विफलता इन समस्याओं को और गंभीर बना रही है। महाकुंभ, जो पवित्रता और मोक्ष का पर्व है, अब सवालों के घेरे में है। सरकार को चाहिए कि वह गंगा की निर्मलता सुनिश्चित करे।
गर्ग कहते हैं, “गंगा की स्वच्छता के लिए केवल सरकार के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। समाज में जागरूकता और नागरिकों की भागीदारी भी उतनी ही जरूरी है। ललित गर्ग का मानना है कि गंगा केवल एक नदी नहीं, करोड़ों भारतीयों की आस्था और जीवन रेखा है। लेकिन सरकार और नागरिकों की उदासीनता इसे बुरी तरह प्रदूषित कर रही है। महाकुंभ 2025 केवल धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह जल संसाधन प्रबंधन की एक परीक्षा भी है। उत्तर प्रदेश सरकार के सामने चुनौती यह है कि वह श्रद्धालुओं की आस्था को सुरक्षित रखते हुए नदियों के पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखे।”
(प्रयागराज से आराधना पांडेय की रिपोर्ट)
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