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*संजय जोशी को मिल सकती है भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी*

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*जोशी के पार्टी अध्यक्ष बनने से संघ और संगठन सहित पार्टी को मिलेगी मजबूती*

*क्‍या शिवराज, वसुंधरा को पीछे छोड़ पार्टी के शीर्ष पद आसीन होंगे संजय जोशी?*

*विजया पाठक*

भाजपा पिछले एक वर्ष से अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया में जुटी हुई है। लगभग एक वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद अभी भी यह तय नहीं हो पा रहा है कि भाजपा का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा। विशेषज्ञों के अनुसार पहले दिन राष्ट्रीय अध्यक्ष के जिन नामों शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और संजय जोशी को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से जोड़कर देखा जा रहा है। उस नाम से पर्दा कब उठेगा अभी कह पाना संभव नहीं। हालांकि विश्वस्त सूत्रों के अनुसार भाजपा आगामी 06 अप्रैल को पार्टी के स्थापना दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के नाम से पर्दा उठाने की तैयारी में है। चर्चा इस बात को लेकर है कि इस बार पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष संघ के मर्जीनुसार बनाने पर मुहर लग सकती है। हालांकि कुछ वरिष्ठ संघ कार्यकर्ताओं ने इशारों में संजय जोशी का नाम घोषित किये जाने को लेकर अपनी सहमति भी जताई है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि भाजपा का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनैतिक पार्टी नहीं बल्कि संगठन का कार्यकर्ता होगा। इससे एक ओर जहां भाजपा और संघ के तनावपूर्ण रिश्तों में सुधार आयेगा वहीं दूसरी ओर संगठन के कुशल कार्य अनुभव का फायदा पार्टी को मिलेगा।

*लंबे समय से मुख्य धारा से दूर रहे हैं जोशी*

अगर भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर पूर्व संगठन मंत्री संजय जोशी को चुनती है तो 18 साल से चल रहा जोशी का वनवास खत्म हो जाएगा। आरएसएस ने 21 से 23 मार्च तक तीन दिन बेंगलुरु में हुई प्रतिनिधि सभा की बैठक में वर्तमान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के जरिये कथित पार्टी हाईकमान (गुजरात लॉबी) को संदेश दे दिया था कि अब कोई डमी नाम अथवा अन्य बहाना नहीं चलेगाl इससे साफ़ हो जाता है कि नव संवत्सर में राम नवमी के बाद भाजपा को नया अध्यक्ष मिल जाएगा, ऐसे में यह भी जाहिर है कि नाम पर निर्णय से पहले संघ प्रमुख और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच संवाद जरूरी है, जो वर्षों से बाधित है। इसी दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में संजय जोशी के नाम पर भी सहमति बनने की उम्मीद जताई जा रही हैl हालांकि यह संदेश मिलने के बाद से भाजपा में आंतरिक खलबली मची हैl

*पहली बार संघ कार्यालय पहुंचे मोदी*

नागपुर में संघ मुख्यालय पर प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का 30 मार्च को पहुंचना पहली ऐसी घटना है जो संघ के इतिहास में दर्ज हुई, हालांकि वह माधव नेत्र चिकित्सालय के शिलान्यास समेत विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लिया, लेकिन संघ के नजदीकी सूत्र बताते हैं कि इसी दौरान मोदी और जोशी की मुलाकात भी हुई है। यदि दोनों पुराने घनिष्ठ फ़िर मिले तो उनके बीच दो दशक से चल रही कड़वाहट के दूर होने का फायदा निश्चित तौर पर भाजपा को मिलेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दरअसल ढाई दशक पूर्व ‘मोदी और जोशी’ की जोड़ी या यूं कहें, गहरी दोस्ती की नींव तब हिल गई थी जब वर्ष 2000 में गुजरात के सीएम केशू भाई पटेल बने। इस दौरान पार्टी के निर्देश पर दोनों को गुजरात से बाहर होना पड़ा था, लेकिन मोदी दो साल के भीतर ही दिल्ली से ताकतवर होकर लौटे तो सीएम की कुर्सी पर काबिज हो गए, यहां से उतरे तो दिल्ली के तख्त पर बैठ गए।

*संघ का बढ़ेगा वर्चस्व*

संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है। ऐसे में अगर पार्टी ने जोशी को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना तो निश्चित ही यह संघ की जीत होगी और इससे पार्टी में संघ का वर्चस्व और बढ़ेगा। जाहिर है कि जोशी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए चुने जाने का फायदा कहीं न कहीं पार्टी को मिलेगा। पार्टी कार्यकर्ता संघ की कार्यशैली से परिचित होंगे और संगठनात्मक शक्ति को मजबूती मिलेगी।

*लंबे समय से राजनीतिक वनवास*

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक संजय जोशी का नाम अचानक भाजपा अध्यक्ष पद के लिए उभरकर आया है। यह एक संयोग है या फिर किसी खास रणनीति का हिस्सा, इस पर फिलहाल अटकलें ही चल रही हैं। लेकिन भाजपा की वर्तमान राजनीति में यह नाम निश्चित ही चौंकाने वाला है। ऐसा नहीं है कि जोशी इस पद के योग्य नहीं है, उनकी गिनती कुशल संगठकों में होती हैं।

*भाजपा को बहुत अच्छे से समझते हैं जोशी*

मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्री वाले 62 वर्षीय संजय जोशी भाजपा के मैकेनिज्म को भी बखूबी समझते हैं। वे संघ के पूर्वकालिक प्रचारक हैं। 1989-90 में संजय जोशी को आरएसएस ने संगठन को मजबूत करने के लिए गुजरात भेजा था। उस समय उन्हें संगठन मंत्री का पद दिया गया था, जबकि नरेन्द्र मोदी संगठन मंत्री के रूप पहले से ही काम कर रहे थे। दोनों ने ही मिलकर पार्टी को मजबूत किया और 1995 में भाजपा ने पहली बार गुजरात में सरकार बनाई। उस समय मुख्यमंत्री पद के लिए मोदी और जोशी का नाम भी चला था, लेकिन दावेदारी में दोनों पिछड़ गए। इसी बीच मोदी को दिल्ली भेज दिया गया और जोशी संगठन महामंत्री बन गए। इसके साथ ही गुजरात में उनका दबदबा भी बढ़ गया।

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