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गांधी-जेपी की विरासत के लिए देश भर में सर्व सेवा संघ ने किया 12 अगस्त तक संकल्प सत्याग्रह का ऐलान

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उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित सर्व सेवा संघ परिसर में बुल्डोजर लगाकर गांधी और जेपी की विरासत को ढहाए जाने का मामला एक बार फिर तूल पकड़ने लगा है। 22 जुलाई 2024 को बनारस में गांधी और जेपी के समर्थकों ने सत्याग्रह किया और ऐलान किया कि सर्व सेवा संघ परिसर में वो किसी भी कीमत होटल अथवा माल नहीं बनने देंगे। मानस मंदिर की तर्ज पर राजघाट पर संविधान मंदिर बनाया जाएगा। इस बीच बनारस में सिविल जज (सीनियर डिविजन) रितेश अग्रवाल की अदालत ने 29 जुलाई 2024 को फैसला सुनाने की तारीख मुकर्रर की है। सिविल कोर्ट में यह मामला इसलिए लटका हुआ था कि एक साल के अंदर फैसला आने से पहले बारी-बारी से पांच जजों के तबादले होते गए।

सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल ने सोमवार को ऐलान किया है कि मोदी सरकार की मनमानी के खिलाफ देश भर में 12 अगस्त तक संकल्प सत्याग्रह होगा। इस दौरान आंदोलन, धरना और हस्ताक्षर अभियान अभियान चलाए जाएंगे। चंदन पाल के मुताबिक, “05 अगस्त 2024 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर गांधी के अनुयायी उपवास रखेंगे। इस बाबत देश भर के सर्वोदय मंडलों को विशेष निर्देश जारी किए गए हैं। बनारस में 12 अगस्त से राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ के गेट पर सत्याग्रह शुरू होगा। यह आंदोलन अनिश्चित काल तक चलेगा। हर रोज एक सत्याग्रही मेन गेट पर पहुंचकर सत्याग्रह करेगा और धरना देगा। बनारस के सिविल कोर्ट से न्याय नहीं मिलने पर सर्व सेवा संघ इस मामले को हाईकोर्ट लेकर जाएगा।”

मोदी सरकार ने पिछले साल सर्व सेवा संघ परिसर पर बुल्डोजर चलवाकर गांधी और जेपी की विरासत मटियामेट कर दी थी। फिलहाल इस परिसर पर रेलवे का कब्जा है। दूसरी ओर, गांधी विद्या संस्थान पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का कब्जा है। इस केंद्र के मुखिया हैं वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय। गांधी विद्या संस्थान पर कब्जे के समय उन्होंने वादा किया था कि वह जेपी की लाइब्रेरी को ठीक कराएंगे। साथ ही उसे बेहतर ढंग से संचालित करेंगे। हालत यह है कि जेपी की याद में खोली गई लाइब्रेरी की दुर्लभ पुस्तकें दीमक चाट रही हैं। एक वक्त वो भी था जब यह लाइब्रेरी बीएचयू से अच्छी हुआ करती थी। दुनिया भर से लोग यहां गांधीवाद पर रिसर्च करने आया करते थे। मौजूदा समय में जेपी लाइब्रेरी का हाल बुरा है। किताबों और दुर्लभ पांडुलिपियों को दीमक चाट रहे हैं। सर्व सेवा संघ से जुड़े रामधीरज खुलेआम आरोप लगाते हैं, “जेपी लाइब्रेरी की तमाम कीमती पुस्तकें और दुर्लभ पांडुलियों की चोरी की जा रही है। मौके पर तैनात कर्मचारी उसे उठाकर तस्करों के हाथों बेच रहे हैं।”

कमिश्नर की नीयत पर सवाल

“सर्व सेवा संघ परिसर बुरी हालत में है। परिसर में गांधी प्रतिमा तो मौजूद है, लेकिन वहां चबूतरे की रेलिंग गायब है। चबूतरा बैठने लायक नहीं है। गंदगी का साम्राज्य है। हाल यह है कि आप वहां थोड़ी देर भी खड़ा नहीं रह सकते। परिसर में साफ-सफाई का कोई इंतजाम नही है। चौतरफा घास-फूस उगी हुई है। परिसर के अंदर किसी कर्मचारी की तैनाती नहीं की गई है। सुरक्षी गार्ड तक नहीं हैं। सर्व सेवा संघ का समूचा परिसर बदहाल हालत में है। अभी रेलिंग गायब हुई है। कुछ पेड़ और पिलर भी गायब हैं। आशंका है कि कुछ दिनों में चोर सब कुछ उठाकर ले जाएंगे।”

“बनारस के तत्कालीन डीएम कौशलराज शर्मा ने सर्व सेवा संघ परिसर के बगल में एक हिस्से को बलपूर्वक कुछ दिनों के लिए हमारी जमीन गुजरात की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी को वर्कशॉप के लिए दिलवा दी थी। यह वही कंपनी है जिसे काशी विश्वनाथ धाम बनाने का ठेका दिया गया था। कंपनी ने अगस्त 2022 में ही जमीन खाली करने का वादा किया था, लेकिन वो कंपनी संस्था की जमीन पर अभी तक कब्जा जमाए बैठी है। इस जमीन का न सर्व सेवा संघ को कोई किराया मिला और इस समय रेलवे भी उससे कोई किराया वसूल नहीं पा रही है। कंपनी गुजरात की है और उसके मालिकों के सिर पर सत्तारूढ़ दल के दिग्गज नेताओं के हाथ है, इसलिए इस मामले में कोई सवाल उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। फिलहाल मौके पर कुछ मलबा पड़ा है और वहां सिर्फ एक गार्ड रहता है।”

गांधीवादी नेता रामधीरज यह भी कहते हैं, “सर्व सेवा संघ की इमारतों को ढहाने के बाद के जो मलबा निकला, वो कहां गया, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। रेलवे के पास भी इसका कोई रिकार्ड नहीं है। सब कुछ गायब कर दिया गया। पंखे भी और फर्नीचर भी। रेलवे के लोग कुछ किताबें नागेपुर लेकर आए थे और खेत में फेंककर चले गए थे। उन किताबों का कोई रिकार्ड रेलवे के पास नहीं है। फर्नीचर और दरवाजे-खिड़की, पुराने गाटर गायब हैं। सर्व सेवा संघ परिसर में गोलमाल और अनियमितता के लिए सीधे तौर पर बनारस के मौजूदा कमिश्नर कौशलराज शर्मा जिम्मेदार हैं। गांधी और जेपी की विरासत पर बुल्डोजर चलवाने के लिए असल जिम्मेदार भी वही हैं।”

राम धीरज यह भी कहते हैं, “मानस मंदिर की तर्ज पर सर्व सेवा संघ परिसर में संविधान मंदिर बनाया जाएगा। हम किसी भी कीमत यहां होटल अथवा माल नहीं बनने देंगे। हमने राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजकर इस मामले की न्यायिक जांच कराने की मांग उठाई है। ज्ञापन में कहा गया है कि तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री की सहमति से नियमनुसार जमीन बेची गई थी। सर्व सेवा संघ ने स्टेट बैंक के जरिये चालान से पैसा जमा किया था। पिछले 65 सालों में रेलवे ने कभी आपत्ति नहीं जताई कि यह जमीन उनकी है। इस विवाद की जड़ में मौजूद कमिश्नर कौशलराज शर्मा हैं। उन्होंने पीएम कार्यालय और रेलवे विभाग को गुमराह किया है। गांधी जी ने विनोवा भावे को पहला सत्याग्रही बनाया था, जिन्होंने इस आश्रम को स्थापित किया था। मोदी सरकार ने ऐतिहासिक धरोहर को मटियामेट कर दिया।”

संसद में उठेगा मामला

22 जुलाई 2024 को राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ परिसर के बाहर सत्याग्रह के लिए जुटे आंदोलनकारियों ने कहा कि एक साल पहले बनारस प्रशासन ने प्रधानमंत्री कार्यालय के इशारे पर आचार्य विनोबा भावे की प्रेरणा से स्थापित राजघाट परिसर एवं लोकनायक जयप्रकाश नारायण के प्रयास से निर्मित विश्व स्तरीय शोध केंद्र-गांधी विद्या संस्थान को षडयंत्र पूर्वक कब्जा कर लिया था। इसके अधिकांश भवनों को बिना किसी अदालती आदेश के गैरकानूनी तरीके से गिरा दिया। बनारस के आला अधिकारियों ने यह झूठ भी फैलाया कि सर्व सेवा संघ ने रेलवे की जमीन पर कब्जा कर रखा है जबकि सर्व सेवा संघ ने नॉर्दर्न रेलवे से 1960, 1961 और 1970 में तीन बैनामे के जरिए 12.89 एकड़ जमीन खरीदी थी। राजस्व अभिलेख- खतौनी में भी सर्व सेवा संघ का नाम दशकों से अंकित था।

सर्व सेवा संघ के मामले को लेकर देश भर के गांधीवादी नेता और जेपी के अनुयायी लामबंद हो रहे हैं। संसद में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आंदोलनकारियों को भरोसा दिया है कि वह इस मामले को संसद में जोर-शोर से उठाएंगे। इस बीच, राष्ट्रपति को एक ज्ञापन प्रेषित किया गया, जिसमें यह मांग की गई है कि सर्व सेवा संघ प्रकरण की न्यायिक जांच की जाए और दोषी पाए जाने वाले लोगों को दंडित किया जाए। गांधी की विरासत को क्षतिपूर्ति सहित सर्व सेवा संघ को वापस किया जाए।

सत्याग्रह में सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल, उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष राम धीरज, सर्व सेवा संघ के मंत्री अरविंद कुशवाहा, अरविंद अंजुम, सत्येंद्र सिंह, मध्य प्रदेश से भूपेश भूषण आदि ने उपवास रखा। आज के कार्यक्रम में शामिल होने वालों में मुख्य रूप से आईकैन के संयोजक अरविंद मूर्ति, दीपक ढोलकिया, नूतन मालवी, लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान के सुशील कुमार, बिहार सर्वोदय मंडल के सत्यनारायण, ध्रुव कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता नंदलाल मास्टर, वरिष्ठ गांधीवादी प्रो सोमनाथ रोड़े, चंपारण से पंकज, पटना से किसान नेता उमेश मुस्तफा, गुड़गांव से सतीश मराठा, मऊ से अनोखेलाल, ओडिशा से विपिन भाई, राजेश मानव, शिवकांत त्रिपाठी, चंद्रशेखर सिंह, प्रदीप रजक आदि शामिल हुए।

कांग्रेस नेताओं ने दिया साथ

कांग्रेस के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अजय राय और प्रवक्ता संजीव सिंह, सेवादल के प्रमोद पांडे समेत बड़ी संख्या में पार्टी के कार्यकर्ता गांधीवादी आंदोलनकारियों को समर्थन देने मौके पर पहुंचे। आंदोलनकारी जब गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण के लिए परिसर में जाने लगे तो पुलिस ने सभी को रोक दिया। काफी जद्दोजहद के बाद सिर्फ पांच लोगों को माल्यार्पण की अनुमति दी गई। माल्यार्पण के बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने कहा, “बीजेपी और आरएसए के लिए महात्मा गांधी से ज्यादा जरूरी गोड़से हो गए हैं। गांधी आज पूरी दुनिया में पूजे जा रहे हैं और मोदी के संसदीय क्षेत्र में इनकी विरासत पर बुल्डोजर चलवाया जा रहा है। गांधी का जीवन और उनका काम काफ़ी विस्तृत है। उनके विचारों को लेकर असहमतियां हो सकती हैं, लेकिन केवल असहमतियों को रेखांकित करके हम उनकी विरासत का अपमान करने की मूर्खता ही कर पाएंगे। आज ज़रूरत ख़ुद से सवाल पूछने की है, क्या उन्हें याद करना बुद्धिमता है या फिर उन्हें भुला देना बुद्धिमता होगी? “

राय ने यह भी कहा, “गांधीजी के साथ जो होना था वह 30 जनवरी, 1948 की शाम को ही हो चुका है। इसलिए हमें गांधीजी की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। हमें अपने लिए गांधीजी की चिंता करने की ज़रूरत है और हमें उनकी विरासत में दिलचस्पी लेनी चाहिए। गांधीजी ने हम लोगों के सामने कुछ आदर्श विचार रखे थे। सार्वजनिक जीवन के लिए भी उन्होंने हमें ख़राब लोगों के लिए ख़राब होना नहीं सिखाया बल्कि ख़राब लोगों के प्रति ईमानदार होना और बिना किसी हिंसा के बहादुरी से लड़ना सिखाया। अन्याय के ख़िलाफ़ अहिंसक संघर्ष के तौर पर इसे आज भी अपनाया जा सकता है। हम इसके लिए गांधीजी को श्रेय दे भी सकते हैं और नहीं भी दे सकते हैं लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि हम उस राह को अपनाएं।”

1961 में बना था संघ भवन

गांधी के विचारों को दुनिया भर में फैलाने के लिए मार्च 1948 में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद सर्व सेवा संघ की स्थापना की गई थी। विनोबा भावे के मार्गदर्शन में 62 साल पहले सर्व सेवा संघ भवन की नींव रखी गई। सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय मंत्री डॉ. आनंद किशोर के मुताबिक साल 1960 में इस ज़मीन पर गांधी विद्या संस्थान की स्थापना की कोशिशें शुरू हुईं। भवन का पहला हिस्सा साल 1961 में बनाया गया और साल 1962 में जय प्रकाश नारायण यहां खुद रहा करते थे। आचार्य विनोबा भावे की पहल पर सर्व सेवा संघ ने ये ज़मीन 1960, 1961 एवं 1970 में रेलवे से खरीदी हैं। डिवीज़नल इंजीनियर नार्दन रेलवे, लखनऊ द्वारा हस्ताक्षरित तीन रजिस्टर्ड सेल डीड हैं। यह भवन 3 बार में पूरा बन सका था। जैसे-जैसे जमीनें खरीदी जाती रही, वैसे-वैसे भवन बनता चला गया। करीब 1971 तक तीन बार में यहां निर्माण पूरा हुआ। दावा है कि यह भवन गांधी स्मारक निधि और जयप्रकाश नारायण द्वारा किए गए दान-संग्रह से बनवाया गया था।

बनारस के जिलाधिकारी एस. जलिंगम ने पिछले साल सर्व सेवा संघ परिसर पर गांधी-जेपी के अनुयायियों के हक का दावा खारिज कर दिया था। बाद में प्रशासन ने समूची जमीन रेलवे के हवाले कर दी थी। रेलवे प्रशासन ने जमीन से कब्जा हटाने और इमारतों को ढहाने का जून 2023 में ही नोटिस चस्पा कर दिया था। रेलवे की इस कार्रवाई के खिलाफ गांधी के समर्थकों ने करीब डेढ़ महीने तक सत्याग्रह आंदोलन और प्रदर्शन किया।

इस बीच यह मामला हाईकोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। शीर्ष अदालत में जाने-माने अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सर्व सेवा संघ की ओर से पैरवी की। उन्होंने भवन के गांधी, जेपी और बिनोवा से जुड़े इतिहास से बारे में जानकारी देते हुए ध्वस्तीकरण रोकने का आग्रह किया और अदालत में दलील दी, “महात्मा गांधी के विचारों का प्रचार करने के लिए आचार्य विनोबा भावे ने साल 1948 में सर्व सेवा संघ की स्थापना की थी। करीब 63 साल पुरानी ऐतिहासिक इमारतों प्रशासन ढहाने की कोशिश कर रहा है। “सुप्रीम कोर्ट में तमाम दलीलों के बावजूद सर्व सेवा संघ को कोई राहत नहीं मिल सकी। शीर्ष अदालत ने वादी पक्ष को निचली अदालत में रिवीजन याचिका दाखिल करने का निर्देश दिया था।

मोदी सरकार की नीयत पर सवाल

गांधी-जेपी के समर्थकों के लाख प्रयास के बावजूद प्रशासन और रेलवे के अधिकारियों ने 22 जुलाई 2023 को सामान बाहर निकलवा दिया था। वहां रह रहे लोगों को जबरिया बेदखल कर दिया गया। लाइब्रेरी और दफ्तरों को खाली करा लिया गया। बाद में रेलवे ने वहां अपना बैनर लगा दिया था। संघ सेवा संघ परिसर में एक पोस्ट ऑफिस भी थी, जिसे गिराने के लिए दो दिन की मोहलत दी गई है। लाइब्रेरी की काफी किताबें बाहर फेंक दी गईं थीं। उस समय आठ लोगों को हिरासत में लिया गया था।

सर्व सेवा संघ की संपत्ति का विवाद तब सुर्खियों में आया जब एक कथित व्यक्ति की शिकायत के आधार पर रेलवे ने सर्व सेवा संघ की जमीन पर अपना दावा ठोका। बाद में डीएम ने सर्व सेवा संघ के निर्माण को अवैध बताते हुए समूची संपत्ति का फैसला उत्तर रेलवे के पक्ष में कर दिया। मुकदमे के दौरान उत्तर रेलवे के अफसरों ने कहा था कि साल 1960, 1961 और 1970 में सभी जमीनें कूटरचित दस्तावेजों के जरिये खरीदी गई है।

सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल कहते हैं, “कांग्रेस सरकार की पहल पर राजघाट स्थित परिसर के लिए तीन पंजीकृत सेल डीड के जरिये जमीन खरीदी थी। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद मार्च 1948 में सर्व सेवा संघ की स्थापना हुई थी। विनोबा भावे के नेतृत्व में राजघाट पर लगभग 62 साल पहले सर्व सेवा संघ भवन की नींव रखी गई। इसका मकसद महात्मा गांधी के विचारों का प्रचार-प्रसार करना था। साल 1960 में इसी परिसर में गांधी स्टडी सेंटर खोला गया था। समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण की पहल पर इमारतों का पहला हिस्सा साल 1961 में बनाया गया और दूसरा 1962 में बना। परिसर में गांधी विद्या संस्थान की एक विशाल लाइब्रेरी भी है, जिसमें तमाम पुस्तकें मौजूद हैं।”

चंदन यह भी कहते हैं, “आचार्य विनोबा भावे की पहल पर दान के पैसे से सर्व सेवा संघ की जमीनें साल 1960, 1961 और 1970 में उत्तर रेलवे से खरीदी गई थी। डिवीज़नल इंजीनियर नार्दन रेलवे, लखनऊ द्वारा हस्ताक्षरित तीन रजिस्टर्ड सेल डीड मौजूद हैं। करीब 1971 तक यहां निर्माण 3 बार में पूरे हुए। गांधी स्मारक निधि और जयप्रकाश नारायण द्वारा जुटाई गई दान की धनराशि से सर्व सेवा संघ परिसर में सभी निर्माण कार्य कराए गए थे। कितनी अजीब बात है कि देश के जिन महापुरुषों का नाम समूची दुनिया में लिया जाता है उनकी विरासत को ही बनारस की सरकार ने अवैध बता दिया। जमीन खरीदने के लिए कूट-रचित दस्तावेज तैयार कराने का आरोप उन शख्सियतों के माथे मढ़ा गया, जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपने जान की बाजी तक लगा दी थी।”

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