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सत्यकथा : राज~लीला

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पुष्पा गुप्ता

एक बार एक राजा हुआ। जो बहुत बिजी रहता। इतना बिजी कि वह बरसों से एक अदद प्रेस कांफ्रेंस करने की चाह रखता था, मगर वह कर नहीं पा रहा था।
विरोधी राजा को बदनाम करने के लिए किसी मुहावरे का सहारा लेते। वह भी विदेशी। वे कहते कि राजा बिजी विदाउट बिजनेस है।
विरोधियों को विरोध के आगे कुछ न दिखता! यहां तक वे यह भी देखना भूल गए कि यात्राओं पर जाना एक काम है।

भूतपूर्व राजाओं को हर छोटी-बड़ी बात पर कोसना भी तो एक काम है।
सर्वदा अपनी और अपनी प्रशंसा करना भी काम है।
सेठ मित्रों से अपनी दोस्ती निभाना काम है।
फोटो खिंचवाना काम ही तो है।
भाषण देना तो काम है ही।
वैसे राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से देखा जाए तो राजा का सोना और जगना भी काम है। आम आदमी तो नींद खुलने पर जगता है और नींद आने पर सोता है।
मगर राजा… राजा जगता है,तो राष्ट्र के वास्ते, सोता है तो राष्ट्र के वास्ते। उसका कुछ भी व्यक्तिगत नहीं होता। सिवा तख्त और ताज के। और कुछ पर्सनल राज़ के।

दरअस्ल,यह भूमिका एक कहानी की थी। और वह कहानी शुरू होती है अब…
एक दिन की बात है कि राजा हमेशा की तरह बिजी था। वह अपने शाही किचन के दौरे पर था। जहां राजा के लिए सादा भोजन पक रहा था। राजा ने आटे को जोकि काजू का था,तर्जनी और मध्यमा से उठाकर देखा। संतुष्ट हुआ।
फिर वह वहां पहुंचा, जहां सब्जी बन रही थी। राजा ने मशरूम की सब्जी से उठती खुशबू को एक लंबी सांस भरकर सूंघा। प्रसन्न हुआ।

आंखें बंदकर वह किसी मधुर कल्पना में खोया हुआ था कि तभी मंत्री का आ धमका हुआ।
सलामी देने के बाद मंत्री बोला,’महाराज राज्य में भुखमरी बढ़ रही है!’
राजा काजू के आटे की रोटियों को देखते हुए बोला,’यार जो अनाज स्टोरेज में सड़ रहा है, उसे बंटवा दो न! एड़ियों पर क्यों उचक रहे हो!’
‘जी महाराज!’ यह कहकर मंत्री वहीं खड़ा रहा।
‘अब क्या है!’ राजा चिढ़ते हुए बोला।
‘महाराज टैक्स पर टैक्स लगने से मध्य वर्ग कंगला होता जा रहा है, उसमें असंतोष बहुत व्याप्त है!’

‘यार यही भी कोई समस्या है! वोट तो देने जाते नहीं! जो वोट देते हैं उनके लिए तो हमने औरी-फौरी योजनाएं चलवा दीं हैं… लोड क्यों लेते हो!’
व ‘महाराज! इतिहास गवाह है कि नेतृव यही वर्ग करता है और नेता भी इसी वर्ग से निकलता है!’
‘हूं…’ इस बार राजा थोड़ा गंभीर हुआ।
‘आमदनी घट रही है और महंगाई बढ़ रही है..’ मंत्री धीरे से बोला।

राजा कुछ सोचते हुए बोला,’ठीक है फिर…. प्रचार मंत्री से कहो कि घर-घर यह संदेश सबके मोबाइल पर चला दे!’ यह कहते हुए राजा ने अपना मोबाइल आगे बढ़ा दिया।
मंत्री ने राजा का मोबाइल देखा और मुस्कुरा दिया। अगले ही पल राज्य के सभी मोबाइल पर रंगीन चित्र से सुसज्जित एक संदेश प्रचारित हो गया।

संदेश यों था :
मैंने देखा कि कड़कड़ाती ठंड में मेरे हाथ में दस्ताने नहीं है,तभी मैंने एक आदमी देखा जिसके हाथ ही नहीं थे! प्रभु ने जो दिया है, उसमें ही खुश रहें। प्रभु ने जो दिया है,वो पर्याप्त है। इसलिए हर हाल में खुश रहें! जो किसी को जिम्मेदार ठहराता है,वो घोर अज्ञानी है। जो किसी को दोष देता है, वो निरा अभिमानी है।

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