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‘सावरकर ने कांग्रेस का अहसान कभी नहीं माना’: पीयूष बबेले

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लेखक और कांग्रेस नेता कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पीयूष बबेले से उनकी किताब ‘गांधीः सियासत और सांप्रदायिकता’ पर बातचीत.

 लेखक और राजनीतिक सलाहकार पीयूष बबेले से उनकी किताब ‘गांधीः सियासत और सांप्रदायिकता’ पर बात हुई. बबेले इस वक्त मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस कैंपेन कमेटी के प्रमुख कमलनाथ के मीडिया सलाहकार भी हैं. उनसे न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने विस्तार से बातचीत की. इस दौरान बबेले ने भी सभी सवालों का बेबाकी से जवाब दिया. 

एक सवाल के जवाब में बबेले कहते हैं कि सांप्रदायिक दंगों से हमेशा अल्पसंख्यक समुदाय को ही नुकसान झेलना पड़ता है, भले ही ये सांप्रदायिक हरकत बहुसंख्यक समुदाय करे या अल्पसंख्यक समुदाय. 

महात्मा गांधी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि गांधी जी समाज सुधारक नहीं थे, इसका मतलब यह नहीं है कि वो समाज को बिगाड़ने वाले थे लेकिन तब उनका पहला उद्देश्य भारत को औपनिवेशिक ताकत से आजादी दिलाना था. वे हिंदू कट्टरपंथ और मुस्लिम कट्टरपंथ दोनों के खिलाफ लड़ रहे थे. 

वीर सावरकर से लेकर मोहम्मद अली जिन्ना तक, बबेले की किताब आजादी की लड़ाई के लगभग हर अहम व्यक्तित्व के साथ गांधी के संवाद और संबंधों पर रोशनी डालती है. बबेले ने कहा कि सावरकर को कांग्रेस का अहसानमंद होना चाहिए. 

इसकी वजह बताते हुए बबेले ने कहा कि 1935 में प्रांतीय चुनाव के बाद जब कई जगहों पर कांग्रेस की सरकार बनी तब अनेक कैदियों की रिहाई की जाती है. उन्हीं में से एक सावरकर भी थे. वहीं, जब 1942 में कांग्रेस ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की बात करती है तो सावरकर इसके खिलाफ हो जाते हैं. सावरकर और जिन्ना अंग्रेजों के खिलाफ नहीं बल्कि गांधी के खिलाफ लड़ रहे थे जबकि गांधी हिंदू कट्टरपंथ और मुस्लिम कट्टरपंथ दोनों के खिलाफ लड़ रहे थे. 

इसके अलावा बबेले से देश में दिन प्रतिदिन बढ़ती सांप्रदायिकता, हिंदुत्व, आजादी का आंदोलन, सावरकर की रिहाई और जिन्ना द्वारा पाकिस्तान की मांग समेत इस इंटरव्यू में कई मुद्दों पर बातचीत हुई. 

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