डॉ. विकास मानव
त्राटक एकाग्रता की साधना है, हठ-योग की साधना है, जहां हम अपने मन के साथ जबरदस्ती करते हैं। त्राटक की साधना में हम अपने मन को एकाग्र करके एक बिंदू पर ठहरा देते हैं और एक जगह ठहरने के कारण मन को आगे गति करने का अवसर नहीं मिलता है।
अतः हमारे विचार रुक जाते हैं। यानि हमारा चेतन मन शांत होता जाता है और अचेतन मन जागने लगता है। क्योंकि हमने अपना ध्यान विचारों से हटाकर एक बिंदू पर ठहरा दिया होता है।
त्राटक सप्रयास चेतन मन को शांत कर अचेतन मन को जगाने का एक उपाय है। त्राटक में रीढ़ का सीधा होना अनिवार्य है। रीढ़ यदि झुकी हुई रही तो शरीर तनाव में रहता है जिससे विचार चलते रहते हैं और चेतन मन शांत नहीं होता है।
चेतन मन तभी शांत होता है जब हमारा शरीर तनावरहित शांत और शिथिल अवस्था में हो और श्वास नाभि तक जाती हो और अचेतन भी तभी सक्रिय होता है जब शरीर शिथिल हो और श्वास गहरी होकर नाभि तक जाती हो! नींद में हमारी श्वास नाभि तक जाती है तभी तो अचेतन सक्रिय हो जाता है और हमारे विचारों को स्वप्न बनाकर दिखाता रहता है!
रीढ़ अगर सीधी होगी तो शरीर शिथिल होगा और हमारी श्वास स्वतः ही नाभि तक जाएगी और अचेतन सक्रिय होने लगेगा।
त्राटक में हम दीवार पर स्थित किसी बिंदु पर, दीये की लौ पर या सर्वप्रिय के चित्र पर केंद्रित होते हैं — बिना पलक झपकाये, एकटक देखते हुए. या फिर आईने में अपनी ही दोनों आंखों में एकटक देखते रहते हैं। पलकें नहीं झपकाते हैं यदि पलकें झपकाते हैं तो विचार आने लगते हैं जिससे चेतन मन सक्रिय रहता है।
हमारी दोनों आंखों का विचारों से अंतर्संबंध निहित है। विचार आने के साथ ही हमारे भीतर चित्रों में भी दिखाई देते हैं! जिस काम या व्यक्ति का विचार आता है तो वह भीतर फिल्म की तरह उभरता है और यह काम आंखें करती है। इसलिए आंखें विचारों के साथ गति करती है।
यदि आंखें ठहरेंगी तो विचार ठहरेंगे क्योंकि आंखों के ठहरते ही विचारों का भीतर चित्रों में दिखना बंद हो जाएगा तो विचारों को गति करने के लिए सीढ़ी ही नहीं मिलेगी! अतः हम निर्विचार होंगे और चेतन मन से अचेतन पर चले जाएंगे!
त्राटक में रीढ़ को सीधी रखना और पलकों को नहीं झपकाना यह दोनों बातें आवश्यक है। यह दोनों बातें त्राटक साधना का आधार है। रीढ़ सीधी नहीं रही और पलकें झपकती रही तो त्राटक में प्रवेश करना बहुत मुश्किल होगा।
जब हम अपलक एकटक देखते हुए त्राटक करते हैं तो हमारी दोनों आंखें त्राटक वाले विषय पर केंद्रित हो जाती है और ठहर जाती है। ज्यों ही दोनों आंखें ठहरती हैं तो वे दोनों आंखों के मध्य में स्थित आज्ञा चक्र के चुंबकीय क्षेत्र में आ जाती है।
आज्ञा चक्र जिसे तीसरी आंख कहा गया है यह उर्जा के प्रति बहुत ही संवेदनशील है। इसे उर्जा मिल ही नहीं पाती है, हमारी देखने की सारी ऊर्जा दोनों आंखों से बाहर देखने में ही खर्च हो जाती है इसलिए आज्ञा चक्र को उर्जा नहीं मिल पाती है। जैसे ही हम दोनों आंखों को एक बिंदु पर ठहरा देते हैं तो दोनों आंखों की उर्जा बिंदु से टकराकर वापस लौट आती है और जैसे ही उर्जा वापस लौटती है तो हमारी दोनों आंखें तो बिंदु को देख रही होती है.
अतः बिंदु से वापस लौटती उर्जा को आज्ञा चक्र आपनी ओर खींच लेता है, हमारी दोनों आंखों की उर्जा आज्ञा चक्र में प्रवेश करने लगती है और आज्ञा चक्र सक्रिय होने लगता है। त्राटक आज्ञा चक्र को भी सक्रिय करता है लेकिन यहां पर हम अचेतन में प्रवेश करने के लिए आज्ञा चक्र का उपयोग भर कर रहे हैं! न कि उसे सक्रिय कर रहे हैं!!
ज्यों ही हमारी दोनों आंखों की देखने वाली उर्जा केंद्र से टकराकर वापस लौटकर आज्ञा चक्र में प्रवेश करती है तो दोनों आंखें आज्ञा चक्र से पूरी तरह सम्मोहित हो जाती है और अपनी जगह पर पूरी तरह से ठहर जाती है।
दोनों आंखों के ठहरते ही हमारे विचारों को गति देने के लिए भीतर चित्र बनने बंद हो जाते हैं और विचारों को रूकना पड़ता है क्योंकि बिना भीतर चित्र बने विचारों का आना संभव नहीं है। और हमारा ध्यान भी विषय पर केंद्रित होता है इसलिए भी विचारों का आना मुश्किल हो जाता है।
त्राटक में हम सजगता पूर्वक चेतन मन से अचेतन मन में प्रवेश करते हैं। विचार से निर्विचार में प्रवेश करते हैं। अतः त्राटक विधि दोनों आंखों को तीसरी आंख द्वारा एक बिंदु पर ठहराकर अचेतन में प्रवेश करने का एक महत्वपूर्ण उपाय है।
त्राटक का अभ्यास करते हुए एक बार यदि हमें अनुभव में आ जाता है कि कैसे दोनों आंखों को ठहराते हुए विचारों को रोककर अचेतन में प्रवेश किया जाता है तो फिर हमें त्राटक की कोई जरूरत नहीं रह जाती है। हम आंख बंद करके भी दोनों आंखों को ठहराकर सीधे अचेतन में प्रवेश कर सकते हैं।
ज्योंही हम अपनी आंखों को बंद कर भीतर ठहराएंगे हमारे विचार रुक जाएंगे और हमारा अचेतन में प्रवेश हो जाएगा साथ ही दोनों आंखों की बाहर देखने वाली ऊर्जा आज्ञा चक्र में प्रवेश करने लगेगी।
चेतन से अचेतन में प्रवेश करना। विचारों से निर्विचार में प्रवेश करना यही ध्यान है। यही साक्षी है। विचार नहीं होंगे तो हम सिर्फ देखने वाले होंगे यानि साक्षी होंगे।
त्राटक का हम किसी सिद्धी प्राप्त करने या तिसरी आंख को सक्रिय करने के लिए उपयोग करते हैं तो अचेतन में प्रवेश नहीं कर पाते हैं और तीसरे तल पर विचारों में ही उलझकर रह जाते हैं। क्योंकि सिद्धी और तीसरी आंख का सक्रिय होना अचेतन में प्रवेश करने के बाद स्वतः घटने वाली घटनाएं हैं और बाद में स्वतः घटने वाली घटनाओं को हम पहले सप्रयास नहीं घटा सकते हैं।
सिद्धी और तीसरी आंख चौथे तल निर्विचार की घटनाएं है जबकि हम खड़े है तीसरे विचारों के तल पर!! अतः त्राटक का हमें अचेतन में प्रवेश करने के लिए ही उपयोग करना है न कि तीसरी आंख को सक्रिय करने या सिद्धी प्राप्त करने के लिए!!
शुरू शुरू में बार-बार रीढ़ भी झुकती है और पलकें भी झपकती है क्योंकि यह दोनों बातें हमारी आदत में नहीं होती है और शरीर का अभ्यास भी नहीं होता है। धीरे-धीरे अभ्यास होता जाता है और त्राटक में हमारा प्रवेश हो जाता है। जिस तरह से रात को नींद में जाने के लिए दिन में काम करके शरीर को थकाना जरूरी है उसी तरह से एक घंटे त्राटक करने से पहले एक घंटे का चलना, नाचना या खेलना जरूरी है।
इतना श्रम हो कि पसीना निकल आए और गहरी श्वास से शरीर आक्सीकृत हो जाए ताकि त्राटक में प्रवेश करना आसान हो सके।
हर ध्यान विधि प्रयास और समय मांगती है। हम यदि सतत संकल्प और धैर्य पूर्वक प्रयास जारी रखते हैं तो परिणाम सुनिश्चित है!
त्राटक की विधि को पढ़कर, सुनकर, वीडियो देखकर प्रयोग करना निरापद नहीं. इसलिए यहाँ लिखना अप्रासंगिक है.