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विज्ञान विश्व : ‘पशु-मानव’ विकास के लिए परमिशन

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 प्रखर अरोड़ा 

_जापान ने स्टेम सेल वैज्ञानिकों को पशु-मानव भ्रूण विकसित करने और उनपर शोध करने की अनुमति दे दिया है। टोक्यो यूनिवर्सिटी (University of Tokyo) में कार्यरत जापानी वैज्ञानिक हिरोमित्सु नकाउची (Hiromitsu Nakauchi) जो स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University) के शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व भी करते है उन्हें अब इस शोध के लिए सरकारी सहायता भी मिल सकेगी।_

इस शोध अनुमति के बाद अब हिरोमित्सु नकाउची अब किसी पशु में मानव कोशिकाओं को विकसित कर और फिर उन भ्रूणों को सरोगेट जानवरों में प्रत्यारोपित करने पर कार्य कर रहे है। 

_नकाउची का लक्ष्य मानव कोशिकाओं से बने अंगों के साथ ऐसे जानवरों का उत्पादन करना है जिससे निर्मित अंग अंततः लोगों में प्रत्यारोपित किया जा सकता है।_

कुछ समय से यह विवादित शोध कई देशों सहित जापान में भी कुछ शर्तों के साथ प्रतिबंधित था लेकिन जापानी सरकार ने हाल में ही मानव-पशु भ्रूण के निर्माण की अनुमति देते हुए नए दिशानिर्देश जारी कर दिया है। 

*संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, फ्रांस जैसे देशों में मानव-पशु भ्रूण बनाए गए हैं।* हालांकि ये देश इस तरह के शोध की अनुमति देता थे लेकिन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (National Institutes of Health) ने 2015 से इस तरह शोध कार्य के लिए वितीय सहायता पर रोक लगा दी है।

हिरोमित्सु नकाउची अब *मानव-चूहे, मानव-सुअर, मानव-भेड़* निर्मित हाइब्रिड भ्रूण विकसित करने की दिशा में कार्य कर रहें है। नकाउची का कहना है~

 _“मानव-चूहे हाइब्रिड भ्रूण लगभग 14.5 दिनों में ही विकसित हो जाते है जबकि मानव-सुअर भ्रूण लगभग 70 दिनों में विकसित होते है। इस अवधि में ज्यादातर अंग विकसित हो जाते है और इस प्रकार के भ्रूण का सरोगेट जानवरों में प्रत्यारोपित आसानी से किया जा सकता है। ऐसे शोधकर्ताओं को सावधानी के साथ कदम बढ़ाना चाहिये जिसमें जनता के साथ बातचीत और उनकी सहभागी भी संभव हो सके। यदि सहभागिता और सामंजस्य न हो ये चिंताजनक है और चिंता का विषय है।”_

इस विवादित शोध के संदर्भ में कुछ जैवविज्ञानी इस संभावना के बारे में चिंतित है की *मानव कोशिकाएं लक्षित अंग के विकास से जानवरों के मस्तिष्क विकास से परे भटक सकती हैं* और उनके विकास को प्रभावित कर सकती है।

 इस तथ्य पर नेचर से बातचीत में नकाउची ने कहा~

_“इन चिंताओं पर ध्यान रखकर इस प्रयोग को डिजाइन किया जायेगा हम केवल लक्षित अंग उत्पादन करने की कोशिश कर रहे है।”_

किसी सामान्य पशु भ्रूण में एक निश्चित अंग के उत्पादन के लिए आवश्यक जीन की कमी होती है। ऐसे में वैज्ञानिक उस पशु भ्रूण में मानव प्रेरित प्लुरिपोटेंट स्टेम (pluripotent stem: iPS) कोशिकाओं को इंजेक्ट कर देते है। 

आईपीएस कोशिकाएं वे है जिन्हें भ्रूण जैसी अवस्था में कई प्रकार के अंग को विकसित करने के उद्देश्य से संशोधित किया जाता है। 

जैसे-जैसे पशु भ्रूण विकसित होता है वह अंग बनाने के लिए मानव आईपीएस कोशिकाओं का उपयोग करता है जिसे वह अपनी कोशिकाओं के साथ नहीं बना सकता है। 

2017 में नाकाउची और उनके सहयोगियों ने चूहे के भ्रूण में चूहे की आईपीएस कोशिकाओं को इंजेक्ट किया था। 

इन शोधकर्ताओं का मकसद चूहे के अग्न्याशय का उत्पादन करना था जो रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में सक्षम हो सके।

 चूहे ने अग्न्याशय का गठन किया जो पूरी तरह से माउस कोशिकाओं से बना था लेकिन यह अग्न्याशय रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में पूर्णतः असफल रहा था। 

2018 में भी भेड़ के भ्रूण में मानव भ्रूणों को जोड़कर हाइब्रिड भ्रूण विकसित करने का प्रयास किया गया था जिसमें भ्रूणों को अग्न्याशय का उत्पादन नहीं करने के लिए डिज़ाइन किया गया था।

 28 दिनों तक विकसित होने वाले इस हाइब्रिड भ्रूण में बहुत कम मानव कोशिकाएँ देखी गयी थी जिससे यह शोध उतना प्रभावशाली न बन सका।

 वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया की शायद मनुष्यों और भेड़ों के बीच आनुवंशिक भिन्नता इसका प्रमुख कारण है।

 ऐसे में आणविक आधार को समझना और इस बाधा को दूर करने के लिए रणनीति विकसित करना आवश्यक होगा। 

हिरोमित्सु नकाउची कहते है~

 “अकेले अमेरिका में अंग प्रत्यारोपण प्रतीक्षा सूची में 116,000 से अधिक मरीज है जबकि पूरे विश्व में ऐसे रोगियों की संख्या दो करोड़ से भी ज्यादा है। हम तुरंत मानव अंगों को बनाने की उम्मीद नहीं करते है लेकिन इससे हमें अपने शोध को आगे बढ़ाने की अनुमति मिलती है। ऐसे प्रयास अंग प्रत्यारोपण वाले मरीजों की जिंदगी को बदल सकती है। मानव-पशु भ्रूण विवादों का विषय रहा है लेकिन हमारा लक्ष्य स्पष्ट है और पूरे विश्व को अवगत करा दिया है।”

    (चेतना विकास मिशन)

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