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बदहाल बीएमएचआरसी को देख अब्दुल जब्बार भाई की याद आई

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आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है
पत्थरों में चीख़ हर्गिज़ कारगर होगी नहीं

अलीम बजमी
न्यूज एडिटर,
दैनिक भास्कर भोपाल

भोपाल मेमोरियल हॉस्पीटल एंड रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) की बदइंतजामी का मामला शहर में चर्चा में है। जन संगठनों ने मोर्चा खोल रखा है। लेकिन बिगड़ी स्थितियों में सुधार नजर नहीं आ रहा। हालांकि प्रबंधन को जगाने की पूरी कोशिशें हो रही है। केंद्र सरकार के संज्ञान में भी बीएमएचआरसी का मामला लाए जाने की कवायद चल रही है। इस मौके पर एक योद्धा की याद आ रही है। उस शख्स का नाम था, अब्दुल जब्बार। वो भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के मुखिया रहे। समय-समय पर वे गैस पीड़ितों के हक में मुखर रहते। आज उनकी कमी शिद्दत से खल रही है। ऐसा कोई लम्हा नहीं गुजर रहा, जब जब्बार भाई की कुर्बानियां, उनका समर्पण याद न आ रहा हो। काश वे हमारे बीच होते। बीएमएचआरसी को लेकर उनके दिल में दर्द था। वे हमेशा इस संस्थान को लेकर गंभीर रहते। दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि आखिरी वक्त में उन्हें बीएमएचआरसी में वाजिब इलाज नहीं मिला। उनके हार्ट में प्राब्लम होने पर उन्हें बीएमएचआरसी में भर्ती कराया गया। जहाँ से एक हफ्ता बाद ही उनको वापस कमला नेहरु अस्पताल शिफ्ट किया गया। इसके बाद ओल्ड चिरायु अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कहने का आशय इतना है कि कमला नेहरू अस्पताल और बीएमएचआरसी ने उनका इलाज संवेदनशीलता के साथ नहीं किया। यानी लापरवाही बरती। नतीजे में उनकी जान चली गई। यह एक उदाहरण नहीं है। ऐसे कई उदाहरण हमको गैस पीड़ितों के बीच जाने पर मिल जाएंगे। कहने का आशय इतना है कि अब्दुल जब्बार को इन संस्थानों ने जब गंभीरता से नहीं लिया तो अन्य मरीजों का कैसा इलाज हो रहा होगा….? उन्हें कितनी गंभीरता से लिया जा रहा होगा…? इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। दुष्यंत कुमारजी के शे्र याद आते हैं…..
इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके—जुर्म हैं
आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फ़रार

पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं

न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये

मेरा आशय किसी पर इल्जाम या तोहमत लगाना नहीं है। न ही मैं पूर्वाग्रह से ग्रस्त हूं। न किसी से ईष्या रखता हूं। ख्वाइश इतनी है कि मानवीय सरोकार की खातिर बीएमएचआरसी से हरेक गैस पीड़ित को विश्वस्तरीय इलाज मिले। यहां का संस्थागत ढांचा सुधरे। डॉक्टरों की कमी दूर हो। अनुभवी और दक्ष लोगों को संस्थान में अवसर मिले। निरंतर सभी उपकरण काम करें। दवाईयों, डायलिसिस के लिए किसी मरीज को भटकना न पड़े। एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी वगैरह पूर्व की तरह हो। डॉक्टरों समेत पैरा मेडिकल स्टॉफ की भीड़ बढ़े। यहां हिचकियां ले रही तमाम लैब अपनी पूर्ण क्षमता और आधुनिक उपकरणों के साथ काम करें। वहीं गैस पीड़ितों को गैस राहत अस्पतालों में भी बेहतर इलाज का प्रबंध हो।

वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिये।

लहू-लुहान नज़ारों का ज़िक्र आया तो
शरीफ़ लोग उठे दूर जा के बैठ गए

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