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संवेदनशीलता और इंसानियत भी सिरे से गायब:अमेठी अस्पताल में ताला

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                              -सुसंस्कृति परिहार

देश में नफ़रत का आलम कितना जोरों पर है यह पिछले दिनों हमने नए संसद भवन में दक्षिण दिल्ली से भाजपा के सांसद ,संघ की शाखाओं में पल्लवित पुष्पित रमेश बिधूड़ी की ऐतिहासिक कथित सनातनी स्पीच सुनी। उन्होंने उत्तर प्रदेश के बसपा सांसद दानिश अली के लिए जिस तरह की नफ़रती शब्दावली का इस्तेमाल किया और रवीन्द्र प्रसाद और हर्षवर्धन जैसे संघी मंत्री प्रफुल्लित नज़र आए।इससे यह स्पष्ट है कि यह  संघीय एजेंडा के तहत किया गया उनका पसंदीदा कार्यक्रम है। अफसोस इस बात का है कि सेन्ट्रल विस्टा में बैठकर आगे चलकर क्या क्या होने वाला है वह इसकी बानगी है।

देश को इस समय जिन आर्थिक और सामाजिक मसलों से दूर किया जा रहा है तथा उसे पूरी तरह एक वर्ग विशेष खासकर अल्पसंख्यक को निशाने पर रख राजनैतिक फायदे के लिए ध्रुवीकरण की कोशिश हो रही है वह पिछले आमचुनावों में हो चुकी है इसलिए इसका फायदा भाजपा को नहीं मिलने वाला।इस नफ़रत के खिलाफ जोड़ो जोड़ो भारत जोड़ो ने जो अलख जगाई है उससे लोगों के बीच सद्भाव विकसित हुआ है।जो देश की सनातन संस्कृति को पुष्ट कर रही है। बिधूड़ी की इसलिए चारों ओर थू थू हो रही है। इससे पूर्व कई दफ़ा साहिब जी सदन में तो नहीं किंतु सभाओं में कांग्रेस की विधवा,बारवाला और पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड कहकर महिलाओं को जो सम्मान दे चुके हैं  वह भी संघ की भाषा का अनूठा उद्धरण है।जब मुखिया ऐसा हो तो चेले के चालचलन पर ऐतराज करने से क्या होगा? सनातन का महात्म्य बताने वाले क्या इसका जवाब देंगे।

इधर महिला आरक्षण बिल में अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्ग की उपेक्षा ने सबका साथ सबके विकास की पोल पट्टी खोल दी है।कहां ये जा रहा है कि यह महिलाओं के लिए एक बड़ा शिगूफा है।शायद वे बहल जाएं अधिनियम नारीशक्ति वंदन नहीं उनका अधिकार है।देवी पूजा ,नारी पूजा की जगह उन्हें सिर्फ बराबरी की दरकार है। स्त्रियों से नफ़रत का इतिहास संघ की कार्य प्रणाली में साफ़ नज़र आता है। मनुवादी भला स्त्रियों को कभी भी बराबरी का दर्जा नहीं दे सकते।यह उनके आचरण में भी दिखाई देता है कि कितनी नफ़रत भरी है इनमें स्त्रियों के प्रति।

इनमें संवेदनशीलता और इंसानियत भी सिरे से गायब है।महिला पहलवानों, मणिपुर की महिलाओं के प्रति इनके रवैए जाहिराना तौर पर दुनिया देख चुकी है।हाल ही में इनकी सोनिया गांधी जी के प्रति नफ़रत का जो गुबार देखा गया वह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है हुआ यह है अमेठी स्थिति संजय गांधी अस्पताल में एक महिला की मौत हो जाती है कहां जा रहा है किसी चिकित्सक की लापरवाही से यह मौत हुई किंतु इस घटना के सैकड़ों भर्ती मरीजों और दूर दराज से आने वाले मरीजों के साथ जो व्यवहार सरकार ने किया है वह अक्षम्य अपराध है।इस अस्पताल में आनन-फानन में ताला जड़ दिया गया है। ये कैसी नफ़रत है एक सांसद और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष तथा पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नि और पुत्रवधु से।खुन्नस सोनिया गांधी से, ताला लगा दिया अस्पताल पर जो 350 बिस्तर वाला संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस रद्द करते हुए उसकी ओपीडी और सारी सेवाएं बंद कर दी गईं। 

चूंकि यह अस्पताल इंदिरा गांधी द्वारा बनवाया गया था और सोनिया गांधी इसके ट्रस्ट की चेयरपर्सन हैं तो गांधी परिवार से अपनी घृणा के चलते मोदी ने अस्पताल प्रशासन के स्पष्टीकरण का इंतजार करना उचित नहीं समझा और अपने ‘बुलडोजर न्याय’ की तर्ज पर आनन-फानन में लाइसेंस रद्द कर ताला लगवा दिया। ऐसा करते हुए तनिक यह भी नहीं सोचा गया कि इस अस्पताल में भर्ती मरीजों, ओपीडी में आने वाले रोगियों, कर्मचारियों, मजदूरों और निकटवर्ती दुकानदारों पर क्या बीतेगी।अस्पताल के समर्थन में  मुंशीगंज के व्यापारियों ने अपनी पूरी दुकानें बंद करके विरोध प्रदर्शन जताया। व्यापारियों ने अस्पताल के लाइसेंस की बहाली के लिए एसडीएम अमेठी को ज्ञापन देते हुए कहा कि अगर अस्पताल का लाइसेंस बहाल नहीं होगा तो हम लोगों का पूरा परिवार सड़क पर आ जाएगा। व्यापारियों ने प्रसाशन को चेतावनी देते हुए कहा कि आगे बड़ा प्रदर्शन करने को बाध्य होंगे।

यह अस्पताल 1986 से अमेठी में लगातार अपनी सेवाएं दे रहा है और रायबरेली सहित अन्य पड़ोसी जिलों में इकलौते बड़े चिकित्सा केंद्र के अलावा यहां पर एएनएम और जीएनएम जैसे कोर्स भी संचालित किए जाते हैं, जिसमें 1200 छात्र-छात्राएं अध्ययन करते हुए ट्रेनिंग ले रहे हैं। यहां पर लगभग 400 कर्मचारी काम करते हैं। 

सोनिया गांधी के प्रतिनिधि किशोरी लाल शर्मा ने कहा कि संजय गांधी अस्पताल को बंद करने का तरीका गलत है। किसी की गलती का दंड उस व्यक्ति को मिलना चाहिए न कि संस्था को। अस्पताल में ताला लगाने से जनता का नुकसान हो रहा है। इस अस्पताल में सभी लोग आते हैं और जाति, धर्म, भेदभाव से अस्पताल ऊपर है। आसपास के चार-पांच जिलों में इस स्तर का अस्पताल नहीं है।

नफ़रत के इन मसीहाओं को कौन समझाए जिनके दिल और दिमाग संकीर्णताओं से भरे हुए हैं।

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