पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) प्रतापगढ़ के सांगीपुर से गिरफ्तार किए गए युवक अजय प्रताप सिंह की एसटीएफ कस्टडी के दौरान हुई मौत को मानवाधिकार के लिहाज से गंभीर चिंता का विषय मानते हुए इसकी जांच करने, दोषियों पर मुकदमा दर्ज कर मुकदमा चलाने की मांग करता है।
18 मार्च को अमर उजाला अखबार में प्रकाशित खबर के मुताबिक 17 मार्च को स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) लखनऊ ने 45 वर्षीय अजय प्रताप को उनके घर से हिरासत में लिया। एसटीएफ का कहना था कि अजय प्रताप के खिलाफ लखनऊ के गोमतीनगर थाने में एनडीपीएस के तहत मुकदमा दर्ज है, और वे उसी संबंध में उन्हें पूछताछ के लिए ले जा रहे हैं। परिजनों ने बताया कि अजय प्रताप की तबियत खराब है। उन्होंने अजय प्रताप के इलाज का पर्चा भी एसटीएफ के लोगों को दिखाया, लेकिन एसटीएफ वाले नहीं माने और उन्हें लेकर चले गए।
एसटीएफ की कस्टडी में जाने के बाद अजय प्रताप की तबियत खराब हो गई और और अस्पताल पहुंचने से पहले ही उनकी मौत हो गई। अमर उजाला में प्रकाशित खबर के मुताबिक जब अजय प्रताप को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया, तो एसटीएफ वाले उन्हें किसी दूसरे नाम से अस्पताल में भर्ती कराकर भाग गए। जाहिर है ऐसा उन्होंने इसलिए किया कि इसे हिरासत में मौत न साबित किया जा सके। इससे यह भी पता चलता है कि इस मौत के लिए जिम्मेदार एसटीएफ के लोग इस मामले को सामान्य मौत दिखाना चाहते है, और यह उनके द्वारा किया जा रहा दूसरा आपराधिक कृत्य है।
यह पूरी घटना एसटीएफ की अराजक और गैरकानूनी और आपराधिक कार्यवाही को उजागर करती है। अजय प्रताप की बेटी ने एसटीएफ के खिलाफ सांगीपुर थाने में एफआईआर दर्ज कराई है, लेकिन एक मानवाधिकार संगठन के नाते हम इसे मानवाधिकार हनन की अति गंभीर घटना मानते हैं।
पुलिस हिरासत में हुई मौत की कई घटनाओं में सुप्रीम कोर्ट ने इसे हत्या का मामला मानते हुए सम्बन्धित पुलिस वालों के खिलाफ मुकदमा चलाने की रूलिंग दी है।
सीआरपीसी की धारा 46 कहती है कि गिरफ्तारी के दौरान पुलिस किसी की हत्या नहीं कर सकती और सीआरपीसी की धारा 176(1) कहती है कि यदि पुलिस हिरासत में किसी व्यक्ति की मौत होती है, वह गायब हो जाता/जाती है या महिला के साथ बलात्कार होता है तो न्यायिक मजिस्ट्रेट उसकी न्यायिक जांच का आदेश दे सकता है।
यह मामला भी पुलिस की एलिट एजेंसी एसटीएफ की हिरासत में हुई मौत का है, इसलिए यह जांच और हत्या के मुकदमे का विषय है।
गौरतलब है इस मामले में घर के लोगों ने एसटीएफ के लोगों को अजय प्रताप की बीमारी के बारे में आगाह भी किया और बीमारी का पर्चा भी दिखाया, फिर भी एसटीएफ ने इस तथ्य की अनदेखी करते हुए उसे हिरासत में लिया। यह गिरफ्तार व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का सरासर हनन है और न्यायिक प्रक्रिया की अवहेलना का मामला है। हिरासत में भी व्यक्ति की जीवन की रक्षा अधिकार संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है, एसटीएफ के लोगों ने इसकी अवहेलना की है, जो कि आपराधिक कृत्य है।
गौरतलब है कि 2020-2022 तक पूरे देश में 4,400 मौतें हिरासत में हुई, जिसमें उत्तर प्रदेश में अकेले 21% मौत हुई हैं जो पूरे देश में सबसे अधिक है। यह किसी भी लोकतंत्र के लिए शर्मनाक आंकड़ा है। अगर इस तरह की घटनाओं को संज्ञान में न लेकर, कारवाही न की गई तो इसे रोका नहीं जा सकेगा।
अतः पीयूसीएल हिरासत में हुई मौत की इस घटना पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए निम्नलिखित मांग करता है:
1. पुलिस हिरासत में हुई इस मौत की न्यायिक जांच कराई जाय।
2. संबंधित एसटीएफ के अधिकारियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाय, ताकि वे जांच को, उनसे जुड़े गवाहों को प्रभावित न कर सकें।
3. संबंधित एसटीएफ के लोगों पर हत्या का मुकदमा चलाया जाए।
4. मृतक के आश्रित परिजनों को मुआवजा दिया जाय।